'माता-पिता के बीच विवाद के चलते नाबालिग का अधिकार नहीं छीन सकते', उच्च न्यायालय का आदेश

न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बारे में बताया गया है और इसमें विदेश यात्रा का अधिकार शामिल है और किसी भी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया के तहत ही उसके अधिकार से वंचित किया जा सकता है।' कोर्ट ने कहा कि इस मामले में लड़की के पिता ने किसी अदालत से कोई आदेश नहीं लिया है।

Jan 9, 2025 - 14:00
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'माता-पिता के बीच विवाद के चलते नाबालिग का अधिकार नहीं छीन सकते', उच्च न्यायालय का आदेश

मुंबई (आरएनआई) बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा है कि माता-पिता के बीच चल रहे वैवाहिक विवाद के चलते नाबालिग का पासपोर्ट हासिल करने और उसके विदेश यात्रा करने के अधिकार को नहीं छीना जा सकता। उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक मामले में यह आदेश दिया, जिसकी प्रति गुरुवार को उपलब्ध हुई। उच्च न्यायालय ने पुणे क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय (आरपीओ) को 17 वर्षीय लड़की को दो सप्ताह के भीतर पुराने आवेदन पत्र पर ही पासपोर्ट जारी करने का निर्देश दिया। 

पुणे पासपोर्ट कार्यालय ने नवंबर 2024 में लड़की की मां को एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया था कि उनकी बेटी के पासपोर्ट आवेदन पर कार्रवाई नहीं की जाएगी क्योंकि लड़की के पिता ने इस पर आपत्ति जताई और सहमति देने से इनकार कर दिया। नाबालिग लड़की के माता-पिता के बीच विवाद चल रहा है और दोनों तलाक ले रहे हैं। 

इसके खिलाफ नाबालिग लड़की ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। अब सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता लड़की के संवैधानिक अधिकार को सिर्फ इसलिए नहीं छीना जा सकता क्योंकि उसके पिता ने सहमति देने से इनकार कर दिया है। नाबालिग लड़की अपनी मां के साथ रह रही है और वह एक होनहार छात्रा है, जिसने कक्षा 10 की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की है। लड़की को एक स्टडी दौरे में भाग लेने के लिए स्कूल द्वारा जापान भेजा जा रहा है। 

न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बारे में बताया गया है और इसमें विदेश यात्रा का अधिकार शामिल है और किसी भी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया के तहत ही उसके अधिकार से वंचित किया जा सकता है।' कोर्ट ने कहा कि इस मामले में लड़की के पिता ने किसी अदालत से कोई आदेश नहीं लिया है। न्यायालय ने कहा कि आज के समय में विदेश यात्रा को एक काल्पनिक मामला नहीं माना जा सकता है, बल्कि यह आधुनिक जीवन की एक अहम जरूरत बन गया है।

न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और अद्वैत सेठना की खंडपीठ ने ऐसे मामलों में मशीनी दृष्टिकोण अपनाने के लिए पासपोर्ट प्राधिकरण की भी खिंचाई की। पीठ ने कहा कि इस मामले में लड़की की मां ने एक घोषणापत्र दिया है, जिस पर अब पासपोर्ट प्राधिकरण को विचार करना चाहिए।

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