मांगें पूरी नहीं हुईं तो सरकार को मुश्किल का सामना करना होगा: ‘किसान गर्जना’ रैली में बोले किसान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध किसानों के संगठन ने सोमवार को यहां रामलीला मैदान में ‘किसान गर्जना’ रैली की और चेतावनी दी कि अगर समय पर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो राज्यों और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
नयी दिल्ली, 19 दिसंबर 2022, (आरएनआई)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध किसानों के संगठन ने सोमवार को यहां रामलीला मैदान में ‘किसान गर्जना’ रैली की और चेतावनी दी कि अगर समय पर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो राज्यों और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
भारतीय किसान संघ (बीकेएस) द्वारा आयोजित रैली में भाग लेने के लिए पंजाब, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों के हजारों किसान अत्यधिक ठंड का सामना करते हुए ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल और बसों से दिल्ली पहुंचे।
बीकेएस के एक सदस्य ने कहा कि वे कृषि गतिविधियों पर जीएसटी को वापस लेने और ‘पीएम-किसान’ योजना के तहत प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता में वृद्धि सहित सरकार से राहत उपायों की मांग करते हैं।
बीकेएस द्वारा जारी एक नोट में कहा गया, “यदि समय पर किसानों की मांग पर ध्यान नहीं दिया गया तो राज्य और केंद्र सरकारों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा।”
किसानों ने आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति को खत्म करने और लागत के आधार पर उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य का भी आह्वान किया है।
दिसंबर 2018 में शुरू की गई योजना के तहत सभी जोत भूमि वाले किसान परिवारों को तीन समान किस्तों में प्रति वर्ष 6,000 रुपये की सहायता प्रदान की जाती है।
मध्य प्रदेश के इंदौर से आए नरेंद्र पाटीदार ने कहा कि खेती से जुड़ी मशीनरी और कीटनाशकों पर जीएसटी हटाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “बढ़ती लागत और मुद्रास्फीति के साथ, हमें कोई लाभ नहीं होता हैं। सरकार को हमारी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। डेयरी उद्योग पर भी जीएसटी नहीं लगाया जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “"यहां तक कि जो पेंशन (पीएम-किसान के तहत आय समर्थन) वे प्रदान कर रहे हैं वह पर्याप्त नहीं है। मौजूदा स्थिति में कोई 6,000 रुपये या 12,000 रुपये में परिवार कैसे चला सकता है?”
कई किसानों ने कहा कि अगर सरकार ने तीन महीने के भीतर उनकी मांगों को पूरा नहीं किया तो वे विरोध तेज करेंगे।
महाराष्ट्र के रायगढ़ के प्रमोद ने सरकार पर किसानों पर जीएसटी थोपने और कंपनियों को सब्सिडी देने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, “वे बीज पर भी जीएसटी लगाते हैं। कम से कम इसके (जीएसटी) के बारे में कुछ न किया जाना चाहिए। जो पेंशन वे प्रदान करते हैं वह एक मजाक है। केवल 6,000 रुपये से कोई अपने परिवार का पालन कैसे कर सकता है? (केंद्रीय कृषि मंत्री) नरेंद्र तोमर ने कहा है इसे बढ़ाकर 12,000 रुपये किया जाएगा, लेकिन यह भी काफी नहीं है।”
इस बीच, पंजाब के फिरोजपुर के सुरेंद्र सिंह ने दावा किया कि सरकार ने पीएम-किसान योजना के तहत पिछली दो किस्त नहीं दी।
उन्होंने कहा, “पेंशन को न केवल बढ़ाकर 15,000 रुपये किया जाना चाहिए, बल्कि समय पर वितरित भी किया जाना चाहिए। किसान भी कुशल मजदूर हैं, हमें कम से कम सम्मान तो दिया जाना चाहिए।”
नागपुर से आए किसान अजय बोंद्रे ने कहा कि पहले आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) बीजों के खिलाफ विरोध किया गया था, लेकिन सरकार ने उनकी मांग नहीं सुनी।
उन्होंने कहा कि अन्य देशों के शोध कहते हैं कि जीएम बीज न केवल हमारे लिए बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक होंगे। जब तक हमें इस पर अनुसंधान का विवरण प्रदान नहीं किया जाता है और कुछ सबूत नहीं मिलता है कि यह विश्वसनीय है, हम जीएम बीजों का उपयोग करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं।
पश्चिम बंगाल के उत्तरी दिनाजपुर के कंचन रॉय ने कहा कि कई लोगों ने खेती छोड़ दी है क्योंकि वे लागत वहन नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि वे पश्चिम बंगाल से दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश में पलायन कर रहे हैं। क्या सरकार को इस बात का एहसास है कि देश भर में महंगाई कैसे बढ़ रही है और वह अब भी चाहती है कि हम सिर्फ 6,000-12,000 रुपये से गुजारा करें।
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