महिला से क्रूरता पर भारतीय न्याय संहिता में जरूरी बदलावों पर विचार करे केंद्र : सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, शीर्ष अदालत ने 14 साल पहले केंद्र से दहेज विरोधी कानून पर फिर से विचार करने को कहा था क्योंकि बड़ी संख्या में शिकायतों में घटना के अतिरंजित संस्करण देखने को मिलते हैं।

May 4, 2024 - 05:20
 0  1.2k
महिला से क्रूरता पर भारतीय न्याय संहिता में जरूरी बदलावों पर विचार करे केंद्र : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 और 86 में आवश्यक बदलाव करने पर विचार करने को कहा है ताकि झूठी या अतिरंजित शिकायतें दर्ज करने के लिए इसके दुरुपयोग को रोका जा सके। शीर्ष अदालत ने कहा कि सहनशीलता और सम्मान एक अच्छे विवाह की नींव हैं। छोटे-मोटे झगड़ों को तूल नहीं देना चाहिए। इस टिप्पणी के साथ ही शीर्ष अदालत ने एक महिला के उसके पति के खिलाफ दायर दहेज-उत्पीड़न के मामले को रद्द कर दिया। साथ ही पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को भी खारिज कर दिया जिसमें पति की उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया गया था।


जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, शीर्ष अदालत ने 14 साल पहले केंद्र से दहेज विरोधी कानून पर फिर से विचार करने को कहा था क्योंकि बड़ी संख्या में शिकायतों में घटना के अतिरंजित संस्करण देखने को मिलते हैं। भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 के मुताबिक किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार अगर महिला के साथ क्रूरता करेगा तो उसे तीन साल तक की कैद की सजा दी जाएगी और इसके लिए उस पर जुर्माना भी लगेगा। वहीं धारा 86 क्रूरता की परिभाषा का विस्तार करती है। इसमें महिला को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की हानि पहुंचाना शामिल है।

धारा 85-इसमें पति या रिश्तेदार की क्रूरता पर तीन साल की सजा का प्रावधान
धारा 86-इसमें महिला को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह का आघात पहुंचाना

पीठ ने कहा कि वह एक जुलाई से लागू होने वाली भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 और 86 पर गौर करेगी। ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या संसद ने इस पर न्यायालय के सुझाव पर गंभीरता से गौर किया है। शीर्ष अदालत ने रजिस्ट्री को इस फैसले की एक-एक प्रति केंद्रीय कानून और गृह सचिव को भेजने का निर्देश दिया है, जो इसे कानून और न्याय मंत्री के साथ-साथ गृह मंत्री के समक्ष रखेंगे। 

पीठ ने कहा कि वह एक जुलाई से लागू होने वाली भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 और 86 पर गौर करेगी। ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या संसद ने इस पर न्यायालय के सुझाव पर गंभीरता से गौर किया है। शीर्ष अदालत ने रजिस्ट्री को इस फैसले की एक-एक प्रति केंद्रीय कानून और गृह सचिव को भेजने का निर्देश दिया है, जो इसे कानून और न्याय मंत्री के साथ-साथ गृह मंत्री के समक्ष रखेंगे।

पीठ ने कहा, यह कुछ और नहीं बल्कि आईपीसी की धारा 498ए का शब्दशः पुनरुत्पादन है। अंतर सिर्फ इतना है कि आईपीसी की धारा 498ए की व्याख्या, अब एक अलग प्रावधान के माध्यम से है, यानी भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 86। हम संसद से अनुरोध करते हैं कि ऊपर बताए गए मुद्दे पर गौर करें और दोनों नए प्रावधानों के लागू होने से पहले धारा 85 और 86 में आवश्यक बदलाव करने पर विचार करें।

पीठ ने कहा, एक अच्छे विवाह की नींव सहनशीलता, समायोजन और एक दूसरे का सम्मान करना है। प्रत्येक विवाह में एक-दूसरे की गलती के प्रति एक निश्चित सहनीय सीमा तक सहनशीलता अंतर्निहित होनी चाहिए। छोटे-मोटे झगड़े, छोटे-मोटे मतभेद सांसारिक मामले हैं और जो कुछ भी स्वर्ग में बनाया गया है उसे नष्ट करने के लिए इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, कई बार, एक विवाहित महिला के माता-पिता और करीबी रिश्तेदार बात का बतंगड़ बना देते हैं। महिला, उसके माता-पिता और रिश्तेदारों के दिमाग में सबसे पहली चीज जो आती है वह है पुलिस, मानो पुलिस ही सभी बुराइयों का रामबाण इलाज है। मामला पुलिस तक पहुंचते ही पति-पत्नी के बीच सुलह की पर्याप्त संभावना भी नष्ट हो जाती है।

पीठ ने कहा, 'अदालत को कोशिश करनी चाहिए कि इस तरह के हर मामले में ‘क्रूरता क्या है?’ यह निर्धारित करने में सभी झगड़ों को उस दृष्टिकोण से तौला जाना चाहिए। पक्षों की शारीरिक और मानसिक स्थिति, उनके चरित्र और सामाजिक स्थिति को हमेशा ध्यान में रखा जाना चाहिए। अत्यधिक तकनीकी और अति-संवेदनशील दृष्टिकोण विवाह संस्था के लिए विनाशकारी साबित होगा।’

पीठ ने कहा, वैवाहिक विवादों में मुख्य पीड़ित बच्चे होते हैं। पति-पत्नी अपने दिल में इतना जहर भरकर लड़ते हैं कि वे एक पल के लिए भी नहीं सोचते कि अगर शादी टूट जाएगी तो उनके बच्चों पर क्या असर होगा। जहां तक बच्चों के पालन-पोषण का सवाल है, तलाक बहुत ही संदिग्ध भूमिका निभाता है।

पीठ ने कहा, सभी मामलों में, जहां पत्नी उत्पीड़न या दुर्व्यवहार की शिकायत करती है, आईपीसी की धारा 498ए को अपने आप लागू नहीं किया जा सकता है। आईपीसी की धारा 506(2) और 323 के बिना कोई भी एफआईआर पूरी नहीं होती। प्रत्येक वैवाहिक आचरण, जो दूसरे को परेशान कर सकता है, क्रूरता की श्रेणी में नहीं हो सकता है। पति-पत्नी के बीच रोजमर्रा की शादीशुदा जिंदगी में होने वाली मामूली चिड़चिड़ाहट, झगड़े भी क्रूरता की श्रेणी में नहीं आ सकते हैं।

Follow RNI News Channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaBPp7rK5cD6XB2

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

RNI News Reportage News International (RNI) is India's growing news website which is an digital platform to news, ideas and content based article. Destination where you can catch latest happenings from all over the globe Enhancing the strength of journalism independent and unbiased.