‘महिला को 26 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने की अनुमति नहीं’, हाईकोर्ट ने न्यायिक प्रक्रिया का हवाला दिया

महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि वह अनचाही गर्भावस्था को समाप्त करना चाहती है। आगे बताया गया है कि महिला की एक चार वर्षीय बेटी भी है। याचिकाकर्ता इस समय अपने पति से अलग रही है और दोनों के बीच तलाक की कार्रवाई चल रही है।

Jul 8, 2024 - 17:39
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‘महिला को 26 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने की अनुमति नहीं’, हाईकोर्ट ने न्यायिक प्रक्रिया का हवाला दिया

मुंबई (आरएनआई) बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 28 वर्षीय महिला को 26 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार कर लिया है। अदालत ने इस मामले में न्यायिक विवेकका हवाला दिया है। अदालत ने यह भी कहा है कि इस मामले में महिला ने जितना सामाजिक विरोध झेला है, उतना ही विरोध बच्चे के जैविक पिता ने भी झेला है। महिला ने अदालत में दावा किया है कि जिस दौरान वह अपने पति के साथ तलाक की कार्रवाई को अंजाम दे रहीं थीं, उसी दौरान एक दोस्त ने उन्हें गर्भवती कर दिया।  

न्यायमूर्ति ए एस गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने इस गंभीर स्थिति पर चिंता जताई। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि जैविक पिता को भी बराबर की जिम्मेदारी लेनी होगी। अदालत ने इस मामले में एक प्रभावी तंत्र की कमी पर भी चिंता जताई। न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि कानूनी विवेक के मद्देनजर गर्भ समाप्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने यह भी कहा कि महिला ने गर्भ समाप्त करने की अनुमति सामाजिक विरोध को झेलने के बाद मांगी। 

महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि वह अनचाही गर्भावस्था को समाप्त करना चाहती है। याचिका में आगे बताया गया है कि महिला की एक चार वर्षीय बेटी भी है। याचिकाकर्ता इस समय अपने पति से अलग रही है और दोनों के बीच तलाक की कार्रवाई चल रही है। महिला ने बताया कि वह अपने एक दोस्त के साथ संबंध में थी और इस दौरान वह गर्भवती हो गई। पीठ ने यह बात की स्वीकारी कि महिला का अपने शरीर पर पूरा अधिकार है लेकिन, मेडिकल रिपोर्ट कहती है कि गर्भ समाप्त करने से कुछ शारीरीक समस्याएं आ सकतीं हैं।

अदालत ने आगे कहा कि समाजिक विरोध की वजह से महिला अपनी गर्भावस्था को समाप्त करना चाहती है। इसके साथ ही महिला ने अपनी आर्थिक स्थिति को देखते हुए भी अदालत में याचिका दायर की है। अदालत ने आगे कहा कि इन सभी कारणों को गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए अपवाद के रूप में नहीं माना जा सकता। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि शिशु के जन्म बाद याचिकाकर्ता गोद लेने की प्रक्रिया पर विचार कर सकती हैं।

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