महरौली पुरातत्व पार्क के अंदर के ढांचों का है धार्मिक महत्व, एएसआई ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश रिपोर्ट में एएसआई ने कहा कि शेख शहीबुद्दीन की कब्र पर एक शिलालेख कहता है कि इसका निर्माण वर्ष 1317 ईस्वी में हुआ था। पुनर्स्थापना और संरक्षण के लिए किए गए संरचनात्मक बदलावों ने इस स्थान की ऐतिहासिकता को प्रभावित किया है।
नई दिल्ली (आरएनआई) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि महरौली पुरातत्व पार्क के अंदर दो संरचनाएं धार्मिक महत्व रखती हैं, क्योंकि मुस्लिम श्रद्धालु प्रतिदिन आशिक अल्लाह दरगाह और 13वीं शताब्दी के सूफी संत बाबा फरीद की चिल्लागाह पर आते हैं।
शीर्ष अदालत के समक्ष पेश रिपोर्ट में, एएसआई ने कहा कि शेख शहीबुद्दीन (आशिक अल्लाह) की कब्र पर एक शिलालेख कहता है कि इसका निर्माण वर्ष 1317 ईस्वी में हुआ था। पुनर्स्थापना और संरक्षण के लिए किए गए संरचनात्मक बदलावों ने इस स्थान की ऐतिहासिकता को प्रभावित किया है।
इसके साथ ही एएसआई ने दलील दी कि यह मकबरा पृथ्वीराज चौहान के गढ़ के करीब है और प्राचीन स्मारक व पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम के तहत 200 मीटर के नियामक क्षेत्र में आता है। इसके अनुसार, किसी भी मरम्मत, नवीनीकरण या निर्माण कार्य को सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति से ही किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत जमीर अहमद जुमलाना की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली के महरौली पुरातत्व पार्क के अंदर सदियों पुरानी धार्मिक संरचनाओं के संरक्षण की मांग की गई थी, जिसमें 13वीं शताब्दी की आशिक अल्लाह दरगाह (1317 ईस्वी) और बाबा फरीद की चिल्लागाह शामिल हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली विकास प्राधिकरण ने उनकी ऐतिहासिकता का आकलन किए बिना अतिक्रमण हटाने के नाम पर संरचनाओं को ध्वस्त करने की योजना बनाई है। जुमलाना ने 8 फरवरी को दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है।
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