मनीष सिंह की रवानगी के बाद अब पत्रकारों को प्रताड़ित करने वाले सिंह की कब होगी रवानगी?
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भोपाल (आरएनआई) मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव द्वारा शपथ ग्रहण करने के बाद से ही स्पष्ट हो गया था कि विवादित अधिकारी मनीष सिंह अब जल्दी ही लूपलाइन में जाएंगे यह वही मनीष सिंह है जो कांग्रेस कार्यकाल में अर्जुन सिंह के खास रहे मोती सिंह के सुपुत्र होने के साथ कांग्रेस शासन काल में ही इनकी नियुक्ति हुई थी। भाजपा शासन में भी 18 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान की कठपुतली बनकर इंदौर नगर निगम, उज्जैन कलेक्टर, इंदौर कलेक्टर रहकर मुख्यमंत्री की किचन केबिनेट के मेंबर बनकर मैडम साधना सिंह की साधना करते रहे और इकबाल के बुलंद हौसलों के सहारे सत्ता पर हावी होकर चौहान के इशारे पर मोहन यादव, कैलाश विजयवर्गीय रमेश मैदोला, ही नहीं चौहान के भाजपा के अंदर राजनीतिक विरोधी रहे नेताओं को अपमानित तथा प्रताड़ित करने के साथ उनको कई विवादों-आरोपों में घेरने का षड्यंत्र यही मनीष सिंह करते थे। यह वही मनीष सिंह है जो भ्रष्टाचार के साथ-साथ अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी अपमानित करने में बाज नहीं आते थे। मुख्यमंत्री के नए प्रमुख सचिव बने राघवेंद्र सिंह भी इसे परेशान रहे।
मनीष सिंह की रवानगी के बाद अब जनसंपर्क विभाग को किसी पुलिस थाने की तर्ज पर चलाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भानेज दामाद आईपीएस आशुतोष प्रताप सिंह संचालक जनसंपर्क विभाग जो असली घोटालेबाज होकर पत्रकारों को प्रताड़ित करने के साथ साथ कई पत्रकारों का शोषण कर अपने स्वार्थो के लिए शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक विरोधियों तथा उनके विरोधी पत्रकारों को भी परेशान करने के साथ कई पत्रकारों के नियम विरुद्ध अधिमान्यता और श्रद्धा निधि समाप्त करने के अलावा कई पत्रकारों को पुलिस के झूठे प्रकरणो में फंसाया गया। हकीकत में शिवराज सिंह चौहान ने अपने इस रिश्तेदार को जनसंपर्क विभाग में भाजपा की नहीं खुद के लिए काम करने के लिए तैनात किया था। विज्ञापनो मे भाई भतीजावाद, धांधली, कमीशन का खेल, हदें पार कर अब तो शिखर पर पहुंच गया था। इतना ही नहीं आशुतोष प्रताप सिंह जो खुद यौन शोषण के आरोपों से घिरे होकर भोपाल जिला न्यायालय में यौन शोषण प्रकरण का सामना कर रहा है उसके बावजूद भी इन्हें अभी तक जनसंपर्क विभाग से क्यों नहीं रवानगी दी गई? सूत्रो अनुसार वह अभी भी अपने जनसंपर्क विभाग में काले कारनामों (विज्ञापन तथा सर्वेक्षण के नाम पर किए गए करोड़ों रुपए के भुगतान) को रफा दफा करने में लगे हैं।
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