मथुरा के एक निजी स्कूल के कुछ शिक्षकों के खिलाफ जांच शुरू

मथुरा (आरएनआई) उत्तर प्रदेश के मथुरा में चल रहे एक निजी स्कूल के कुछ शिक्षकों के खिलाफ दो महिला शिक्षिका की शिकायत पर पुलिस ने जांच शुरू कर दी है।
शिकायत में कहा गया है,कि ये शिक्षक छात्राओं से उनके वस्त्रों के संबंध में ऊल जलूल सवाल कर छेड़ने के आदि रहे हैं। शिक्षिकाओं ने ऐसी ही आप बीती दास्तान उत्तर प्रदेश महिला आयोग एवं पुलिस को लिखित शिकायत में दी है। हैरत की बात तो यह है,कि ऐसी घटनाओं की शिकायत निरंतर स्कूल प्रशासन को मिलती रही, लेकिन ऐसे शिक्षकों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं हुयी। अंत में यह मामला पुलिस तक पहुंच गई है।
उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले हुई घटनाओं के कारण गर्ल्स और बॉयज़ के सेक्शन को अलग किया गया था, लेकिन इसके पीछे गंभीर कारण थे। उन्होंने बताया कि कुछ जेंट्स टीचर्स की गर्ल्स सेक्शन में एंट्री बैन थी, फिर भी वे वहां जाने की कोशिश करते थे,लेकिन इसके बावजूद उनपर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। हाल फिलहाल में आये शिक्षकों का प्रवेश भी कुछ क्षेत्रों में प्रतिबंधित है।
उन्होंने यह भी बताया कि स्कूल में फोटो खींचना और मोबाइल फोन लाना प्रतिबंधित था, खासकर जूनियर टीचर्स के लिए। लेकिन उन्हें सीनियर होने के नाते डॉक्यूमेंटेशन के लिए फोन रखने की अनुमति दी गई थी। पर जब उन्होंने घटनाओं के सबूत भी इकट्ठे किए तो इसके बाद उन्हें ही निशाना बनाया गया। उनसे कहा गया कि वे किसी से बात न करें, बाकी स्टाफ को भी उनसे दूरी बनाने को कहा गया।
शिकायत में कहा गया है कि उन्होंने इसकी जानकारी स्कूल मैनेजमेंट को दी, लेकिन डायरेक्टर ने केवल इतना कहा कि जैसा चल रहा है, वैसे ही चलने दो। हम अपने स्तर पर कार्रवाई कर लेंगे,लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यह जवाब असंतोषजनक था और उन्हें निराशा हुई।
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रिंसिपल, वाइस प्रिंसिपल और एक अन्य वरिष्ठ स्टाफ का बर्ताव बहुत ही मनमौजी और बदतमीज़ था। इनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं मानी जाती थी और इनका बोलबाला पूरे स्टाफ में रहता था। जूनियर टीचर्स की बातों को सुना नहीं जाता था, और उनकी शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया जाता था।
एक और शिक्षक की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जब उस शिक्षक ने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई, तो उन्हें चुप करा दिया गया। उस शिक्षक को समर्थन देने की कोशिश में उन्होंने भी अपनी आवाज उठाई, लेकिन नतीजा यह हुआ कि उन्हें भी परेशान किया गया।
उन्होंने बताया कि कई शिक्षक इन स्थितियों से परेशान होकर खुद स्कूल छोड़ चुके हैं। उन्होंने बताया कि उनके सामने सात से आठ शिक्षकों स्कूल छोड़ चुके हैं, क्योंकि वह इस दुर्व्यवहार को सहन नहीं कर सके।
उन्होंने बताया कि स्कूल में नियम केवल जूनियर स्टाफ पर लागू होते थे, जबकि सीनियर या 'चहेते' स्टाफ को कुछ भी करने की छूट थी। वेतन में कटौती, छुट्टियाँ न देना और अपमानजनक भाषा जैसे व्यवहार आम हो चुके थे।
सैलरी को लेकर भी उन्होंने गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि स्कूल ने उनसे अतिरिक्त कार्य करवाया लेकिन कई महीनों तक उन्हें सैलरी नहीं दी गई। उन्होंने बताया कि उन्हें न तो जॉइनिंग लेटर दिया गया, न टर्मिनेशन लेटर, और ना ही सैलरी स्लिप। जब उन्होंने बोर्ड ड्यूटी करने की बात कही, तो उन्हें कहा गया कि आपको हम बोर्ड ड्यूटी नहीं करने देंगे।
उन्होंने आगे बताया कि सीबीएसई के नियमों की कई बार अवहेलना की जाती थी – जैसे कि स्कूल फैक्ट्री एरिया में स्थित है, जो कि सीबीएसई गाइडलाइंस के खिलाफ है। वहाँ कोई फायर सेफ्टी सुविधा नहीं थी, और न ही छात्रों की सुरक्षा की गारंटी। उन्होंने कहा कि डमी एडमिशन भी दिए जाते थे, जो सीबीएसई के नियमों के विपरीत है। साथ ही शिक्षकों से जबरदस्ती एडमिशन लाने के लिए दबाव भी बनाया जाता था।
उन्होंने कहा, "स्कूल की बाहर से बहुत बड़ी इमेज है, लेकिन अंदर की हालत बिलकुल खराब है। जो लोग अंदर हैं, वे सब जानते हैं। लोग इज्जत के डर से चुप रह जाते हैं, लेकिन यही चुप्पी सिस्टम को सड़ा रही है।
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