'मतदाता सूची में सुधार के लिए महज 89 अपील की गईं', चुनाव आयोग ने खारिज किया हेराफेरी का विपक्ष का आरोप
अगले कुछ महीनों में बिहार और अन्य राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में विपक्षी दल मतदाता सूची में गड़बड़ी के मुद्दे को और आक्रामकता के साथ उठाएंगे। चुनाव आयोग अपने रुख कायम है कि ईपीआईसी नंबरों के दोहराव का मतलब डुप्लीकेट या फर्जी मतदाता नहीं है।

नई दिल्ली (आरएनआई) चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में हेराफेरी के विपक्ष के आरोपों को खारिज कर दिया है। चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों ने बताया कि मतदाता सूची में सुधार के लिए महज 89 अपील ही की गईं। दरअसल, संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मतदाता सूची पर विस्तृत चर्चा की मांग की थी। कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने 2024 के विधानसभा चुनाव के लिए महाराष्ट्र की मतदाता सूची में कथित फर्जीवाड़े और मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) नंबरों के दोहराव का दावा किया था। इससे पहले राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया था कि 2019 से 2024 तक महाराष्ट्र की मतदाता सूची में करीब 30 लाख मतदाताओं के नाम जोड़े गए हैं। दिल्ली में तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप लगाया था। अब चुनाव आयोग के सूत्रों का कहना है कि लगाए गए आरोप तथ्यों से परे हैं।
6-7 जनवरी 2025 को प्रकाशित विशेष सारांश संशोधन के दौरान जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 24 के तहत शायद ही कोई पहली या दूसरी अपील की गई हो या मतदाता सूची (धारा 22) या समावेशन (धारा 23) में किसी प्रविष्टि में सुधार किया गया हो। विशेष सारांश संशोधन (एसएसआर) में मतदाता सूची की समीक्षा करना और मतदाता सूची का मसौदा जारी करना शामिल है। यह अक्सर चुनावों से पहले कराया जाता है। इसका मकसद नए पात्र मतदाताओं को जोड़कर एक न्यायसंगत और पारदर्शी मतदान प्रक्रिया को बनाए रखना है। इसमें 18 साल के हो चुके लोग या अपना निर्वाचन क्षेत्र बदलने वाले लोग शामिल हैं। इसमें डुप्लिकेट और मृत मतदाताओं को हटाना भी शामिल है।
महाराष्ट्र में सिर्फ 89 अपील दर्ज की गईं। देश में 13,857,359 बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) थे और मतदाता सूची में बदलाव के लिए केवल 89 अपील की गईं। इसलिए जनवरी 2025 में एसएसआर के पूरा होने के बाद प्रकाशित मतदाता सूचियों को निर्विवाद रूप से स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
आरपी अधिनियम 1950 की धारा 24 को 20 सितंबर, 1961 को जोड़ा गया था, जो वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त के जन्म से बहुत पहले की बात है। सूत्रों के मुताबिक, अगर कोई कहता है कि जिस मतदाता सूची पर मतदान हुआ है वह सही नहीं है, तो उन्होंने 1961 में सरकार की ओर से प्रस्तावित और 1961 में संसद की ओर से पारित चुनाव कानून का पालन करने की भी परवाह नहीं की है। अगले कुछ महीनों में बिहार और अन्य राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, इसलिए विपक्षी दलों की ओर से इस मुद्दे को और आगे बढ़ाने के आसार हैं। चुनाव आयोग ने पिछले दिनों कई बार कहा है कि ईपीआईसी नंबरों के दोहराव का मतलब डुप्लीकेट या फर्जी मतदाता नहीं है। वह अपने तर्क पर कायम है और अपनी बात को साबित करने के लिए लगातार डेटा जारी कर रहा है।
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