मंदिर माफी की जमीनों की कृषि आमदनी पुजारियों को होने के बाद मंदिर और भगवन की हालत पर नागरिक हैरान?
पुजारी बन गए करोड़पति और कॉलोनाइजर, आय_व्यय_के साथ मंदिर माफी भूमि की जमीन पर खेती भूमि पर खरीद बीज और फसल विक्रय का नही हे लेखा जोखा?
गुना (आरएनआई) शहर और जिले के मंदिरों में नियुक्त पुजारी तथा पंडितो की माली हालतो को देखते हुए उनके जीवन यापन हेतु मंदिरो में वर्षो पूर्व उस समय कृषि भूमि दी गई थी।जब आमदनी और उन मंदिरो में आए नगण्ड् थी, तब मंदिरो के पुजारियों के सामने उनके रखरखाव व उनके व्यवस्थापन को लेकर तत्कालीन समय जमीन दी गई, जिनको मंदिर माफी जमीन की कृषि भूमि का नाम दर्जा दिया गया।
जिनसे मंदिर का रखरखाव व उनके अधिकृत पुजारी और जुड़े पण्डो का परिवार पालन पोषण चलता रहे। इन मंदिर माफी भूमियों का अधिपत्य शासन के प्रबंधक (अधिकारी) कलेक्टर होते हैं।
शहर अथवा जिले में वर्तमान इस समय दर्जनों मंदिरो जिनकी हालत खस्ता है और उनसे जुड़ी जमीनों की कृषि आमदनी से उन मंदिरो का बेहतर रखरखाव और व्यवस्थाएं भी खस्ता हाल में हैं। पूर्व में उक्त भूमियों को जब इन मंदिरों को सौंपा गया था तब उनकी शासकीय और बाजार मूल्य कोडियो में था। अब वर्तमान में इन मंदिर माफी की जमीनों की भूमियों पर उनके पंडित और पुजारियों के द्वारा कृषि नही की जा रही हैं। पूर्व में मिली इन मंदिरों की भूमियों से हुई आमदनी से कुछ पुजारी व पंडितो की माली हालत गरीबी से उठकर अमीरी में तब्दील होकर धनाड्या सेठो में हो गई हैं।
वर्तमान में इन मंदिरों हालत जीर्ण शीर्ण होती जा रही हैं,इन मंदिरो पर न ही बोर्ड लगे है जिसमे मंदिर का नाम और प्रबंधक का नाम भी नही हैं, वही इन मंदिरो की जमीन पर कोई बोर्ड प्रदर्शित हैं।
इस सब मंदिरो में आने वाले लोगो का कहना हैं कि इन मंदिरो के पुजारियों ने इन्हे अपने निजी मंदिर और भूमियों को स्वयं का घोषित कर दिया हैं। मंदिर दर्शनों से जुड़े लोगो का यह भी कहना हैं कि ये पुजारी वर्षो पूर्व गरीब थे लेकिन वर्षो से उन भूमियों की आय से वे करोड़पति,बड़े व्यापारी और कोलोनाइजर्स बन गए हैं। वही मंदिरो की जमीन प्रशासन और अधिकारियों की अनभिज्ञता से बेची जा रही हैं या उनका दोहन करते हुए व्यापारिक उद्देश्य में प्रयोग किया जाकर लाभ अर्जित किए जा रहा है।
जानकार बताते हैं कि मंदिर जमीनों में कोलोनाइजरों ओर पुजारियों ने उनका व्यवसायिक उपयोग कर धन अर्जित किया जा रहा हैं। वही भगवान के मंदिरो को इन पुजारियों ने अमीर बनते ही पण्डो को जिम्मेदारी सौंप दी हैं,वह भी ठेका प्रथा पर हैं।
आपको बताते चले कि सरकार की मंशा थी कि पुजारी इन पूर्व में दी मंदिर माफी की जमीनों कि आमदनी से जीवन यापन करके मंदिर का रखरखाव करे,लेकिन इन मंदिर के पुजारियों ने इन्हे धंधे में तब्दील कर दिया, परिस्थिति बदली पुजारी अमीर हो करोड़पति बन गए भी मंदिर और भगवान वैसे ही है जैसे वर्षो पूर्व थे। तब सरकार को इन गरीब से अमीर बने पुजारियों से उक्त मंदिर और जमीन शासन हित में उन वाकई गरीब को दिया जाना उचित हैं या सरकार उन्हे सब नियमो को शिथिल करते हुए अपने अधीन करे।
जब जमीन मंदिरो को दी गई थी तब और अब वर्तमान की स्थिति में जमीन आसमान का अंतर हैं, भगवान आज भी वैसे ही बैठे जब जमीन मिली थी तब के अनुसार, पुजारी गरीब से करोड़पति बन गए! जबकि उनकी गरीबी और माली हालत को देखते हुए जमीन मंदिर को और खेती से जीवन यापन को यह दी गई थी?
इन जमीनों के उपयोग और दुरुपयोग पर शासन और प्रशासन की नजर आखिर क्यों नही हैं? वही इन भूमियों पर आय_व्यय_के साथ मंदिर माफी भूमि की जमीन पर खेती भूमि पर खरीद बीज और फसल विक्रय का नही हे लेखा जोखा?
वही जिन अधिकारियों को इनपर नजर रखी जानी चाहिए वे अधिकारी की शासन के नियमो और उनके सही पालन कराने की मंशा पर ही सवाल उठ रहे हैं?
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