भूल जाने के अधिकार पर कानून तय करेगा सुप्रीम कोर्ट, वेबसाइट से फैसला हटाने के मद्रास एचसी के फैसले पर रोक
शीर्ष अदालत ने नोटिस जारी करते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। पीठ ने कहा, इस बीच मद्रास हाईकोर्ट के निर्देश स्थगित रहेंगे। हमें कानून को सुलझाना होगा।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या कोई आरोपी किसी आपराधिक मामले में दोषमुक्त होने के बाद भूल जाने के अपने अधिकार के तहत डिजिटल प्लेटफॉर्म समेत सार्वजनिक डोमेन से अदालत के निर्णयों को हटाने की मांग कर सकता है। हालांकि, इससे जुड़े एक मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए शीर्ष अदालत ने यह भी कहा, ऐसे मामलों में अदालतों के आदेश से पूरे निर्णय को सार्वजनिक डोमेन से हटाने के गंभीर नतीजे हो सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ बंगलूरू की कानूनी डाटाबेस वेबसाइट इंडियन कानून की ओर से हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। कंपनी ने बताया कि हाईकोर्ट ने उससे उस फैसले को वेबसाइट से हटाने को कहा है, जिससे दुष्कर्म और धोखाधड़ी के मामले में बरी व्यक्ति की पहचान उजागर हो रही थी। पीठ ने कहा, अदालत यह आदेश कैसे दे सकती है? ऐसे निर्णय को सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से हटाने के आदेश के गंभीर परिणाम होंगे।
शीर्ष अदालत ने नोटिस जारी करते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। पीठ ने कहा, इस बीच मद्रास हाईकोर्ट के निर्देश स्थगित रहेंगे। हमें कानून को सुलझाना होगा। वेबसाइट की ओर से पेश वकील अबिहा जैदी ने कहा कि हाईकोर्ट के निर्णय से याचिकाकर्ता और आम जनता को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत मिली अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जैदी ने कहा, केरल और गुजरात हाईकोर्ट ने माना है कि भूल जाने का कोई अधिकार नहीं है, जबकि वर्तमान मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने इसके विपरीत दृष्टिकोण अपनाया है। इसलिए विभिन्न उच्च न्यायालयों के विरोधाभासी निर्णयों से कानून का एक वास्तविक प्रश्न उभर रहा है।
पीठ ने हाईकोर्ट में अपील करने वाले आरोपी के वकील से पूछा, मान लीजिए कि आपको बरी किया जा रहा है, तो हाईकोर्ट वेबसाइट को निर्णय को हटाने का निर्देश कैसे दे सकता है। फैसला सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा बन जाता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, बाल यौन शोषण जैसे मामले में, पीड़ितों या गवाहों के नाम हटाने या छिपाने के लिए कह सकते हैं। यह कोर्ट का अधिकार क्षेत्र है, पर निर्णय हटाने के लिए कहना दूर की कौड़ी है।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, इस मिसाल से अन्य मामलों में भी निर्णयों को हटाने के अनुरोध हो सकते हैं। विवादित निर्देश की अनुमति देने से उन लोगों के लिए भी मामला बन सकता है, जो किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए और बाद में सजा काट चुके हैं। वे भी निर्णयों में अपनी पहचान छिपाने का दावा करेंगे। लोग यह भी कह सकते हैं, देखिए मेरे वाणिज्यिक रहस्य शामिल हैं, मध्यस्थता का मामला है। इसमें निर्णय को वापस ले लो, इसके बहुत गंभीर परिणाम होंगे।
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