'भूमि का स्वामित्व किसी को खनन का अधिकार नहीं देता', शीर्ष अदालत ने कहा- राज्य सरकार को रॉयल्टी का अधिकार
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि जिस व्यक्ति को प्रमाणपत्र जारी किया जाता है उसे खदानों या खनिजों के उत्पादन और निपटान को दर्शाते हुए रिटर्न दाखिल करना होता है। इसके लिए रॉयल्टी निर्धारित की जाती है।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भूमि का स्वामित्व किसी को खनन करने का अधिकार तब तक नहीं देता, जब तक कि उसके पास खनिज नियमों के अनुसार अप्रूवल प्रमाणपत्र न हो। शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी के साथ पंजाब सरकार की अपील को स्वीकार कर लिया और हाईकोर्ट के 2007 के आदेश को खारिज कर दिया।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि जिस व्यक्ति को प्रमाणपत्र जारी किया जाता है उसे खदानों या खनिजों के उत्पादन और निपटान को दर्शाते हुए रिटर्न दाखिल करना होता है। इसके लिए रॉयल्टी निर्धारित की जाती है। ईंट भट्टे चलाने वाले मेसर्स ओम प्रकाश ईंट भट्टे और अन्य ने दावा किया था कि उन्होंने निजी मालिकों से अलग-अलग जमीनें लीज पर ली हैं। वे अपने ईंट भट्टों में ईंट बनाने के लिए उक्त जमीनों से मिट्टी की खुदाई करते थे। उन्होंने कहा कि खान एवं खनिज (विनियमन एवं विकास) अधिनियम, 1957 अथवा पंजाब माइनर मिनरल कंसेशन रूल्स, 1964 के तहत राज्य सरकार को ईंट मिट्टी के उपयोग पर रॉयल्टी लगाने का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने तर्क तर्क दिया कि रॉयल्टी का आकलन करने और वसूली के लिए नोटिस भेजने की अपीलकर्ताओं की कार्रवाई अवैध है। दूसरी ओर राज्य सरकार ने कहा कि भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 42 (2) के अनुसार ईंट मिट्टी समेत प्रत्येक खनिज उसके पास निहित हैं। इसने यह भी तर्क दिया कि 1957 के अधिनियम की धारा 15 के तहत राज्य सरकार को रॉयल्टी वसूलने का प्रावधान करने के लिए नियम बनाने का अधिकार है। लिहाजा राज्य सरकार के खनिज नियमों के तहत अपीलकर्ता रॉयल्टी लगाने के हकदार हैं। पीठ ने कहा, जब यह स्वीकार किया जाता है कि ईंट मिट्टी खनिज नियमों के तहत एक लघु खनिज है, तो राज्य सरकार को लघु खनिजों के उत्पादन और निपटान पर रॉयल्टी लगाने का अधिकार मिल जाता है। रॉयल्टी के मूल्यांकन के आदेश के खिलाफ खनिज नियमों के तहत अपील का प्रावधान है।
पीठ ने यह भी बताया कि 1 जून, 1958 को भारत सरकार ने 1957 अधिनियम के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक अधिसूचना प्रकाशित की, जिसके द्वारा ईंट मिट्टी को 1957 अधिनियम में एक लघु खनिज घोषित किया गया था। शीर्ष अदालत ने गौर किया कि इस मामले में हाईकोर्ट वास्तविक मुद्दे से चूक गया। जहां तक उक्त भूमि के स्वामित्व का सवाल है, प्रतिवादी मालिक नहीं थे।
पीठ ने खनिज नियमों की ओर भी ध्यान दिलाया। नियम 3 में रॉयल्टी के भुगतान से छूट का प्रावधान है और ईंटों के निर्माण के लिए ईंट मिट्टी की खुदाई के संबंध में छूट का प्रावधान नहीं है। इस मामले में अदालत ने कहा कि तीनों अदालतों ने अनावश्यक रूप से उक्त भूमि या उसमें मौजूद खनिजों के स्वामित्व के मुद्दे पर विचार किया है। जब यह साबित हो जाता है कि खनिज नियमों के तहत राज्य सरकार ईंट मिट्टी के खनन की गतिविधि पर रॉयल्टी लगाने की हकदार है तो उक्त भूमि के स्वामित्व का मुद्दा अप्रासंगिक हो जाता है।
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