भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए नई पहचान के साथ नवजीवन का आगाज
यूएनडीपी की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में LGBTQI+ समुदाय के लगभग 75 फीसदी लोगों ने अपने यौन अभिविन्यास या लैंगिक पहचान की वजह से भेदभाव का सामना किया है, और लगभग 63 फीसदी लोग अवसाद से जुड़े रोगों के शिकार हैं।
नई दिल्ली (आरएनआई) एक ट्रांसजेंडर महिला बाहा होमस्ला कहती हैं कि डर- यही वो अहसास था जो मुझे यह जानने के बाद हुआ कि मैं सबसे अलग हूं। मुझे अपने आसपास अपने जैसे कोई दूसरे नजर नहीं आए। जब मेरे रंग-ढंग मेरी पैदायशी पहचान से अलग दिखने लगे, तो लोगों ने मेरा मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। मुझे कमरे में बंद कर दिया गया और वहीं अपनी जिंदगी गुजारने को कहा गया।
दुनिया भर के लाखों LGBTQI+ व्यक्तियों को नॉन बाइनरी होने की वजह से तानों, कलंक व भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इनमे से कई तो दोहरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
यूएनडीपी की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में LGBTQI+ समुदाय के लगभग 75 फीसदी लोगों ने अपने यौन अभिविन्यास या लैंगिक पहचान की वजह से भेदभाव का सामना किया है, और लगभग 63 फीसदी लोग अवसाद से जुड़े रोगों के शिकार हैं। ये हालात तब और भी बदतर हो जाते हैं जब वो लोग, इसके साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदाय से आते हों। बाहा होमस्ला के साथ, बिहार के एक आदिवासी समुदाय से होने के कारण, इस हद तक भेदभाव हुआ कि उन्हें अन्तत: घर से भागना पड़ा।
दुनिया भर में बाहा होमस्ला जैसे अनगिनत लोगों को अपने घर व बाहर, सभी जगहों पर नफरत भरी प्रतिक्रिया मिलती है, जिससे उनके स्कूल छोड़ने, कामकाज छोड़ने, घर से बाहर कर दिए जाने और स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने से बचने का खतरा रहता है। जो व्यक्ति अपनी असली पहचान के सहारे ही जीने का साहस दिखाते भी हैं, उन्हें भी अक्सर अपना पैदाइशी नाम छोड़ना पड़ता है। इसके साथ ही सामने नई चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं। खासतौर पर सरकारी कल्याण योजनाओं तक पहुंच मुश्किल हो जाती है, क्योंकि उसके लिए एक वैध पहचान पत्र होना बेहद आवश्यक होता है।
अधिकतर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पास अपने जन्मनाम के ही पहचान पत्र होते हैं, जिससे वो इन योजनाओं तक पहुंच हासिल नहीं कर पाते हैं। उन्हें पहचान पत्र के अभाव में, रोजगार तलाश करने, घर किराए पर लेने या फिर स्वास्थ्य सुविधाएँ प्राप्त करने में भी बहुत संघर्ष करना पड़ता है। ट्रांसजेंडर समुदाय, HIV संक्रमण के उच्च जोखिम में रहता है, और उन्हें प्रजनन आयु के अन्य वयस्कों की तुलना में, HIV से संक्रमित होने का खतरा 13 गुना अधिक होता है।
एड्स के इलाज के लिए एंटीरैट्रोवायरल थैरेपी (ART) बेहद आवश्यक होती है, जो सरकार की तरफ से निशुल्क उपलब्ध कराई जाती है, लेकिन इसके लिए वैध पहचान पत्र होना जरूरी होता है। इसलिए संवेदनशील स्थिति में जी रहे ट्रांसजैंडर व्यक्तियों के लिए विशेष प्रकार के कार्यक्रम स्थापित करना ज़रूरी हो जाता है।
\यूएनडीपी के नेतृत्व में आरम्भ की गई SCALE पहल में, भेदभाव वाले कानूनों व एचआईवी से जुड़े अपराधीकरण का सामना करने के प्रयासों को पुख्ता किया जा रहा है, जिससे दुनिया भर में इस समुदाय की सेवाओं तक निर्बाध पहुंच बनाई जा सके। भारत में यूएनडीपी, SCALE परियोजना के तहत, ट्रांसजेंडर समुदायों को मान्य पहचान पत्र मुहैया करवाने के लिए, ‘दोस्ताना सफर’ जैसी समुदाय-आधारित संस्थाओं के साथ काम करता है।
इस परियोजना के तहत, सामाजिक न्याय व सशक्तिकरण मंत्रालय के राष्ट्रीय पोर्टल पर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का पंजीकरण करवाया जाता है। इस पोर्टल के जरिए उन्हें जिला अधिकारियों से ट्रांसजेंडर पहचान पत्र मिलने में आसानी हो जाती है। ट्रांसजेंडर कार्ड मिलने के बाद नए नाम से बैंक खातों व पैन कार्ड को प्रासंगिक रखना सम्भव हो जाता है।
इसके अलावा मंत्रालय भी, SMILE योजना के तहत, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समर्थन प्रदान करता है। हाशिए पर धकेले हुए व्यक्तियों के समर्थन व आजीविका हेतु आरम्भ की गई SMILE योजना, ट्रांसजेंडरों के पुनर्वास, चिकित्सा सुविधाओं, परामर्श, शिक्षा व कौशल निर्माण पर काम करती है।
‘दोस्ताना सफर’ की संस्थापक रेशमा प्रसाद कहती हैं कि ट्रांसजेंडर पहचान पत्र से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच व सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सब्सिडी पर अनाज लेने के लिए राशन कार्ड, बैंक खाता खोलने, ड्राइविंग लाइसेंस आदि दस्तावेज़ लेने में सुविधा होती है, जो उनके लिए नए अवसर प्रदान करने में मददगार साबित होते हैं।
पोर्टल उपलब्ध होने के बावजूद, कम संख्या में पंजीकरण देखने को मिला है- अब तक केवल 20 हजार ट्रांसजेंडर प्रमाण-पत्र व पहचान पत्र जारी किए गए हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, यह आंकड़ा देश के लगभग 4 लाख की संख्या वाले ट्रांसजेंडर समुदाय के मात्र 5 फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। यूएनडीपी, भारत सरकार व जमीनी स्तर पर काम कर रही संस्थाओं के साथ मिलकर, यह सुनिश्चित करने के प्रयास कर रहा है कि ज्यादा से ज्यादा ट्रांसजेंडर व्यक्ति, पोर्टल पर पंजीकरण करवाएं और अपने पहचान पत्र हासिल करें।
साथ ही इस परियोजना को अधिक लोगों तक पहुंचाने व किसी भी तरह की भ्रामक जानकारी से निपटने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं। बाहा होमस्ला और उनके जैसे अनगिनत व्यक्तियों के लिए अपने नए नाम के साथ ट्रांसजेंडर पहचान पत्र का अर्थ है- सम्मान व समानता युक्त नए जीवन की शुरुआत।
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