भारत में चीनी घुसपैठ विवादित सीमा पर स्थायी नियंत्रण की समन्वित ‘विस्तारवादी रणनीति’ : अध्ययन

अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के एक अध्ययन के अनुसार अक्साई चिन क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण आकस्मिक घटनाएं नहीं हैं बल्कि विवादित सीमा क्षेत्र पर स्थायी नियंत्रण पाने की रणनीतिक रूप से सुनियोजित और समन्वित ‘विस्तारवादी रणनीति’ का हिस्सा हैं।

Nov 11, 2022 - 20:45
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भारत में चीनी घुसपैठ विवादित सीमा पर स्थायी नियंत्रण की समन्वित ‘विस्तारवादी रणनीति’ : अध्ययन

न्यूयॉर्क, 11 नवंबर 2022, (आरएनआई)। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के एक अध्ययन के अनुसार अक्साई चिन क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण आकस्मिक घटनाएं नहीं हैं बल्कि विवादित सीमा क्षेत्र पर स्थायी नियंत्रण पाने की रणनीतिक रूप से सुनियोजित और समन्वित ‘विस्तारवादी रणनीति’ का हिस्सा हैं।

नीदरलैंड में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ डेल्फ्ट तथा नीदरलैंड डिफेंस एकेडमी ने ‘हिमालय क्षेत्र में बढ़ता तनाव: भारत में चीनी सीमा अतिक्रमण का भू-स्थानिक विश्लेषण’ विषयक अध्ययन किया। उन्होंने पिछले 15 साल के मौलिक आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए अतिक्रमण का भू-स्थानिक विश्लेषण किया।

बृहस्पतिवार को जारी अध्ययन में कहा गया, ‘‘हम देखते हैं कि संघर्ष को दो स्वतंत्र संघर्षों- पश्चिम और पूर्व में अलग-अलग किया जा सकता है जो अक्साई चिन तथा अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख विवादित इलाकों के इर्दगिर्द है। ’’

अध्ययनकर्ताओं ने कहा, ‘‘हमारा निष्कर्ष है कि पश्चिम में चीनी अतिक्रमण रणनीतिक रूप से नियोजित हैं जिनका उद्देश्य स्थायी नियंत्रण पाना है, या कम से कम विवादित क्षेत्रों की स्पष्ट यथास्थिति बनाकर रखना है।’’

अध्ययन करने वाले दल ने ‘घुसपैठ’ (इन्कर्जन) को भारत के क्षेत्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्य इलाकों में सीमा के आसपास चीनी सैनिकों की पैदल या वाहनों से किसी तरह की गतिविधि के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने एक मानचित्र पर 13 ऐसे स्थान चिह्नित किये हैं जहां बार-बार घुसपैठ होती है।

अनुसंधानकर्ताओं ने 15 साल के आंकड़ों में प्रत्येक वर्ष घुसपैठ की औसतन 7.8 घटनाएं देखीं। हालांकि भारत सरकार का आकलन इससे बहुत अधिक है।

भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर सीमा विवाद है। चीन, अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है, वहीं भारत इसका विरोध करता है। अक्साई चिन लद्दाख का बड़ा इलाका है जो इस समय चीन के कब्जे में है।

भारत सरकार के 2019 के आंकड़ों के अनुसार चीन की सेना ने 2016 से 2018 के बीच 1,025 बार भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की। तत्कालीन रक्षा राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने नवंबर 2019 में लोकसभा को बताया था कि चीन की सेना ने 2016 में 273 बार घुसपैठ की जो 2017 में बढ़कर 426 हो गयीं। 2018 में इस तरह की घटनाओं की संख्या 326 रही।

नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, अध्ययनकर्ताओं ने भारत में 2006 से 2020 तक चीनी घुसपैठ की घटनाओं के बारे में नये आंकड़ों को संग्रहित कर इनका विश्लेषण सांख्यिकीय पद्धतियों से किया।

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि संघर्ष को दो क्षेत्रों- पश्चिम या मध्य (अक्साई चिन क्षेत्र) और पूर्व (अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र) में बांटा जा सकता है।

विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘भारत की पश्चिमी और मध्य सीमाओं पर चीनी घुसपैठ स्वतंत्र और आकस्मिक घटनाएं नहीं हैं जो त्रुटिवश हो जाती हों।’’

इसमें कहा गया, ‘‘अनुसंधानकर्ताओं ने देखा कि समय के साथ आमतौर पर घुसपैठ की संख्या बढ़ रही है, वहीं वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पूर्व और मध्य क्षेत्रों में संघर्ष समन्वित विस्तारवादी रणनीति का हिस्सा हैं।’’

अध्ययन के वरिष्ठ लेखक सुब्रह्मण्यम और नॉर्थवेस्टर्न के मैककॉर्मिक स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर वाल्टर पी मर्फी ने कहा कि पश्चिम और मध्य में हुई घुसपैठ की संख्या का समय के साथ अध्ययन करके, “सांख्यिकीय रूप से यह स्पष्ट हो गया कि ये घुसपैठ आकस्मिक नहीं हैं। इनके अचानक होने की संभावना बहुत कम है, जो हमें बताती है कि यह एक समन्वित प्रयास है।’’

सुब्रह्मण्यम ने कहा, ‘‘पश्चिमी क्षेत्र में अधिक घुसपैठ होने की बात आश्चर्यजनक नहीं है। अक्साई चिन एक रणनीतिक क्षेत्र है जिसे चीन विकसित करना चाहता है, इसलिए यह उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह चीन के और तिब्बत तथा शिनजियांग के चीनी स्वायत्त क्षेत्रों के बीच एक महत्वपूर्ण मार्ग है।’’

अध्ययन में जून 2020 में गलवान संघर्ष का उल्लेख किया गया है जिसमें 20 भारतीय जवानों की मौत हो गयी थी तथा चीन के सैनिक भी मारे गये थे जिनकी संख्या अज्ञात है। रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय क्षेत्र में चीनी घुसपैठ की खबरें अब रोजाना की बात हो गयी है।

इसमें कहा गया, ‘‘दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों के बीच बढ़ता तनान वैश्विक सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है। क्षेत्र के सैन्यीकरण का नकारात्मक पारिस्थितिकीय असर है।’’

भारत और चीन के बीच पिछले 29 महीने से अधिक समय से पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध जारी है।

भारत लगातार कहता रहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अमन-चैन द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास के लिए आवश्यक हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि देश केवल अपने से जुड़ी कार्रवाइयों पर प्रतिक्रिया नहीं देते, बल्कि अपने मित्र गठबंधनों तथा प्रतिद्वंद्वी देशों के समूहों से जुड़ी कार्रवाइयों पर भी सक्रियता दिखाते हैं।

इसमें कहा गया, ‘‘क्वाड में भारत की भागीदारी, अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा संवाद, चीन-भारत सीमा पर चीनी गतिविधि के लिए ‘ट्रिगर’ के रूप में काम कर सकता है। दूसरी ओर, चीन पाकिस्तान के साथ सहयोगात्मक गतिविधियों में शामिल है, और अफगानिस्तान में पश्चिमी शक्तियों के वापस होने के बाद जो शून्य बन गया है, उसमें जगह बनाने के लिए तैयार है।’’

अध्ययन के अनुसार, ‘‘चीन की विदेश नीति तेजी से आक्रामक हो गई है, वह ताइवान के आसपास अपने सैन्य अभ्यास बढ़ा रहा है और दक्षिण चीन सागर में उपस्थिति बढ़ा रहा है। चीन की विस्तारवादी नीतियों का मुकाबला करने के लिए ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन तथा अमेरिका ने एक साझेदारी की है और भारत के लिए एक विकल्प है कि वह खुद को इन तीनों देशों के साथ संयोजित करे।’’

अध्ययन में कहा गया है कि भारत और चीन लगातार उच्च सतर्कता बरत रहे हैं और इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि निकट भविष्य में इस स्थिति में सुधार होगा। लेकिन संघर्ष का समाधान अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, विश्व अर्थव्यवस्था और हिमालय के क्षेत्र में विशिष्ट पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए अत्यंत लाभकारी होगा।

नेचर ह्यूमनिटीज और सोशल साइंस कम्युनिकेशन्स द्वारा 2021 में प्रकाशित शोधपत्रों में सुब्रमण्यम और उनके सहयोगियों ने इस बात का अध्ययन किया था कि किस-किस समय घुसपैठ अधिक होने की आशंका है।

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