'भारत की संस्कृति और रामायण को अलग करके देखा ही नहीं जा सकता' : अमित शाह

अमित शाह ने कहा कि आंदोलन से अनभिज्ञ होकर इस देश के इतिहास को पढ़ ही नहीं सकता। 1528 से हर पीढ़ी ने इस आंदोलन को वाचा दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समय में ही यह परवान चढ़ा और स्वप्न सिद्ध हुआ। राम जन्मभूमि का इतिहास लंबा। राजाओं, संतों, निहंगों और कानून विशेषज्ञों ने इस लड़ाई में अपना योगदान दिया है। इन सभी योद्धाओं का आज हम विनम्रता से स्मरण करना चाहता हूं।

Feb 10, 2024 - 14:51
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'भारत की संस्कृति और रामायण को अलग करके देखा ही नहीं जा सकता' : अमित शाह

नई दिल्ली (आरएनआई) केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में शनिवार को नियम 193 के तहत ‘ऐतिहासिक श्रीराम मंदिर के निर्माण और श्रीराम लला की प्राण प्रतिष्ठा’ विषय पर चर्चा में भाग लिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि आज किसी का जवाब नहीं दूंगा। मैं मन की बात और जनता के मन की बात देश के सामने रखना चाहता हूं। वह आवाज, जो वर्षों से अदालत के कागजों में दबी हुई थी। 22 जनवरी 2024 के बारे में भले ही कुछ लोग कुछ भी कहें, वह दिन दस सहस्त्र से भी ज्यादा वर्षों के लिए ऐतिहासिक दिन बना रहेगा।

1528 से चल रही संघर्ष और अन्याय के खिलाफ लड़ाई की जीत का दिन है।  22 जनवरी 2024 का दिन समग्र भारत की आध्यात्मिक चेतना के पुनर्जागरण का दिन है। देश की कल्पना राम और राम चरित्र के बगैर नहीं हो सकते। राम और राम का चरित्र भारत के जनमानस का प्राण है। संविधान की पहली प्रति से लेकर महात्मा गांधी के आदर्श भारत की कल्पना तक राम का नाम लिया जाता रहा।

भारत की संस्कृति और रामायण को अलग करके देखा ही नहीं गया। कई भाषाओं, संस्कृतियों और धर्मों में रामायण का जिक्र है। कई सारे देशों ने रामायण को स्वीकारा और आदर्श ग्रंथ के रूप में प्रस्थापित किया है। राम और रामायण से अलग देश की कल्पना हो ही नहीं सकती। ये लड़ाई 1528 से लड़ी जा रही थी। दशकों तक लड़ाई चली। तकरीबन 1858 से कानूनी लड़ाई चल रही थी। 330 साल के बाद कानूनी लड़ाई का आज अंत आया है और रामलला अपने गर्भगृह के अंदर विराजमान हैं। 

अमित शाह ने कहा कि आंदोलन से अनभिज्ञ होकर इस देश के इतिहास को पढ़ ही नहीं सकता। 1528 से हर पीढ़ी ने इस आंदोलन को वाचा दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समय में ही यह परवान चढ़ा और स्वप्न सिद्ध हुआ। राम जन्मभूमि का इतिहास लंबा है। राजाओं, संतों, निहंगों और कानून विशेषज्ञों ने इस लड़ाई में अपना योगदान दिया है। इन सभी योद्धाओं का आज हम विनम्रता से स्मरण करना चाहता हूं।

गिलहरी की तरह कई लोगों ने अपना योगदान दिया। 1990 में जब आंदोलन ने गति पकड़ी, उससे पहले से ही भाजपा का देश की जनता को वादा था। हमने पालमपुर कार्यकारिणी के अंदर प्रस्ताव पारित करके कहा था कि राम मंदिर के निर्माण को धर्म से नहीं जोड़ना चाहिए। यह देश की चेतना की पुनर्जागृति का आंदोलन है। जब हम घोषणा पत्र में कहते थे कि राम मंदिर बनाना हो, तीन तलाक हटाना हो, समान नागरिक संहिता लाना हो, अनुच्छेद 370 हटाना हो, तो कहा जाता था कि भाजपा ऐसे ही वादा करती है। लोग कहते थे कि हम वोट हासिल करने के लिए ऐसा करते हैं। जब हम वादा पूरा करते हैं तो उसका भी विरोध करते हैं। 

अमित शाह ने कहा कि भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी जो बोलते हैं, वो करते हैं। हम 1986 से कह रहे थे कि वहां भव्य राम मंदिर बनना चाहिए। कुछ लोग यहां प्रतिक्रिया दे रहे थे। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की खंडपीठ के फैसले से आप वास्ता रखते हैं या नहीं? आप फैसले से कैसे कन्नी काट सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने भारत के पंथ निरपेक्ष चरित्र को उजागर किया है। दुनिया के किसी देश में ऐसा नहीं हुआ, जब बहुसंख्यक समाज ने अपनी आस्था का निवर्हन करने के लिए इतनी लबी लड़ाई लड़ी हो और इंतजार किया हो। हमने राह देखी है, लड़ाई लड़ी है। हवन में हड्डी नहीं डालनी चाहिए। साथ में जुड़ जाओ, इसी में देश का भला है।

2014 से 2019 तक लंबी कानूनी लड़ाई चली। निहंगों ने लड़ाई शुरू की थी। आडवाणी जी ने सोमनाथ से अयोध्या के लिए यात्रा निकाली, जनजागृति फैलाई। अशोक सिंघल जी इसे चरम सीमा पर ले गए और आखिर में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोदी जी ने जनआकांक्षा की पूर्ति की। कोई एक देश अपने बहुसंख्यक समाज की धार्मिक विश्वास की पूर्ति के लिए धैर्य रखकर सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाता रहे, यह बात देश के लोकतांत्रिक इतिहास में लिखी जाएगी।

शाह ने कहा कि जो संतों ने सुझाया, उससे भी कई गुना कठोर 11 दिन का व्रत इस देश के प्रधानमंत्री ने किया। 11 दिन वे शैया पर नहीं सोए। 11 दिन नारियल पानी पीकर उपवास किया। 11 दिन राममय रहना, राम भक्ति में रचे-बसे रहना, हर सांस को राम से जोड़कर प्राण प्रतिष्ठा में शामिल हो। 11 दिन में मां शबरी, गिलहरी, वानर, भालू, जटायु से जुड़े राम के स्थानों पर जाकर उन्होंने रामकाज के लिए श्रद्धांजलि दी। जब पूजन का समय आया, तब कोई राजनीतिक नारे नहीं लगाए, हर रोज राम का भजन अलग-अलग भाषाओं में ट्वीट किया। यम, नियम, तप, उपासना से उन्होंने भक्ति की। मैं उस दिन दिल्ली में लक्ष्मी नारायण मंदिर में बैठा था, जनता की आंखों में आंसू थे। जय श्रीराम पूरी वानर सेना का जय घोष था। विजय-पराजय के भाव बगैर मोदी जी ने बड़ी शालीनता से समारोह में हिस्सा लिया। जय श्रीराम का नारा जय सियाराम हो गया। विभाजन की बात करने वालों से मेरा करबद्ध निवेदन है कि समय को पहचानो। जिसने संन्यास नहीं लिया, जो संन्यासी है, जो देश का शासक है, जो प्रधान सेवक है, ऐसा व्यक्ति भक्ति की चेतना फैलाता है। ऐसी मिसाल दुनिया में शायद ही कहीं मिलेगी। मोदी जी ने अनेक समय पर नेतृत्व के गुण का परिचय दिया है।

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