भागवत गीता प्रतियोगिता
हिंदी भाषा, संस्कृत भाषा और खास तोर पर भागवत गीता के प्रचार प्रसार के लिए हमारे माननीय प्रधान मंत्री ने बहुत कुछ किया है। प्रधान मंत्री ने ट्वीटकिया था - कोई विद्यार्थी हैं और अनिर्णय की स्थिति में हैं, या किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष हैं या फिर मोक्ष की कामना रखने वाले योगी सभी को अपने हर प्रश्न का उत्तर श्रीमद्भागवत गीता में मिल जाएगा। गीता मानव जीवन की सबसे बड़ी मैन्युअल बुक है। जीवन की हर समस्या का हल गीता में मिल जाता है देश के कई बड़े संस्थान भी भागवत गीता को बच्चो को सीखने में अथक प्रयास कर रहे है। चिन्मय मिशन उनमे से एक है।
चिन्मय मिशन की स्थापना स्वामी चिन्मयानंद ने १९५१ में की थी। चिन्मय मिशन के विश्व में ३५० आश्रम हैं, भारत में ८० स्कूल हैं जिनमें एक अंतरराष्ट्रीय आवासीय विद्यालय और अस्पताल शामिल हैं। कोलकाता आश्रम में आचार्य ब्रह्मचारी दिवाकर चैतन्य जी के सानिध्य में गीता की प्रतियोगिता चल रही है। यहाँ बिना किसी जाति या पंथ के सभी को वेदांत पढ़ाने पर जोर दिया जाता हैं। ४ से १२ वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के लिए बालविहार कक्षाएं शहर के विभिन्न हिस्सों में संचालित की जाती हैं। इनकी बालाविहार सेविकाएं विभिन्न स्कूलों में जाती हैं और बच्चों को भगवत गीता का पाठ पढ़ाती हैं।
इस साल भगवत गीता का तीसरा अध्याय की प्रतियोगिता हो रहे है। जाती और धर्म से ऊपर उठते हुए क्लास ४ से १२ क्लास तक के बच्चो के लिए गीता के क्लासेस भी होते है। १ महीने का गीता की प्रतियोगिता चल रही है जिसमे २ वर्ष से लेकर १३ वर्ष तक के छात्र भाग ले रहे है। जज के रूप में जगदम्बा पिल्ले और अखिल जयरामन मौजूद है। ये प्रतियोगिता पिछले २० वर्षो से चली आ रही है। इस वर्ष १० नवंबर से सुरु हुए है और १० दिसंबर तक चली है। इसमें कोलकाता के सुशीला बिरला सहित २० स्कूल भाग ले रहे है और इस वर्ष का विषय था गीता का तृत्य अध्याय का श्लोका। जो बच्चे इसमें भाग लिए है उनमे से कुछ बच्चे सेलेक्ट हो कर दूसरे राउंड में जायेंगे और विजयी बच्चो को सर्टिफिकेट, ट्रॉफी और धन राशि भी दी जाएगी।
अगले वर्ष ये प्रतियोगिता का विषय होगा चतुर्थ अध्याय।
तृतीया अद्याय कर्मा योग है। भगवन श्री कृष्णा अर्जुन से कर्म योग के विषय में बताते है। तृत्य अद्याय का सार है-
नित्य कर्म करना चाहिए। अकर्म से अच्छा है कर्म करना। संसार कर्मो का यज्ञ है। जो व्यक्ति मूर्ख है उनको विचलित नहीं करना चाहिए। हर व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुरूप ही कार्य करता है। श्री कृष्णा ने अर्जुन से इन्द्रियों को वश में करने की प्रेरणा दी है। श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा कृष्णभावनामृत में प्रशिक्षित होना चाहिए।
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