भागवत कथा का पांचवा दिन: श्रीकृष्ण के जन्म पिर बधाइयों से गूंजा कथा परिसर, बृज में हो रही जय-जयकार नंदरानी ने लाला जायो है

Jan 24, 2024 - 21:51
Jan 24, 2024 - 21:51
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भागवत कथा का पांचवा दिन: श्रीकृष्ण के जन्म पिर बधाइयों से गूंजा कथा परिसर, बृज में हो रही जय-जयकार नंदरानी ने लाला जायो है

गुना (आरएनआई) सामरसिंगा परिवार द्वारा आयोजित की जा रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव मनाया गया। कथा वाचक इंद्रेशजी ने जैसे ही भगवान के जन्म का प्रसंग पूर्ण किया पूरा कथा परिसर बधाइयों से गूंजने लगा। कथा प्रांगण में मौजूद हर श्रद्धालु बधाई हो, बधाई हो के जयकारे लगाते दिखा। इस प्रसंग के दौरान के इंद्रेशजी ने बृज में हो रही जय-जयकार नंदरानी ने लाला जायो है... भजन सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। भजन का आनंद ले रहे हजारों श्रद्धालु अपने स्थान से खड़े हुए और मगन होकर नृत्य करते नजर आए।

एक निजी होटल श्रीमद् भागवत कथा में बुधवार को इंद्रेशजी उपाध्याय ने राजा परीक्षित द्वारा सुकदेव से कथा सुनने और महाराज धु्रव के जीवन व तारा बनने के बाद श्रद्धालुओं को दर्शन देने का प्रसंग सुनाया। इंद्रेशजी ने बताया कि धु्रवजी चाहते थे कि उन्हें ठाकुरजी की कथा सुनने का व्यसन हो जाए। लेकिन ठाकुरजी ने धु्रवजी को 36 हजार वर्ष तक राज्य करने की आज्ञा दी। हालांकि धु्रवजी से इससे निराश थे, वे चाहते थे कि प्रभु दर्शन करने के बाद अब उन्हें ठाकुरजी अपने साथ ले जाएं। 36 हजार वर्ष बाद ऐसा ही हुआ और धु्रवजी तारे के रूप में विद्यमान हो गए। वर्तमान में 12 वर्ष तक यदि किसी व्यक्ति ने नित्य-प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में धु्रवजी का दर्शन किया तो धु्रवजी स्वयं श्रीमन नारायण को लेकर उसके सामने प्रकट होते हैं। 


इंद्रेशजी महाराज ने धु्रव के वंशज महाराज प्रथु की कथा भी सुनाई। उन्होंने बताया कि प्रथु महाराज ने ही इस पृथ्वी के आधे से ज्यादा हिस्से को समतल किया, ताकि मानव जाति यहां रह सके। कथा का मुख्य आकर्षक भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का प्रसंग रहा। इंद्रेशजी ने बताया कि भगवान की आज्ञा पर वसुदेव जी उन्हें टोकरी में रखकर यशोदा जी के पास छोड़ आए और उनकी लाली अपने साथ लाकर कंस को दे दी, जो बाद में अष्टभुजा माता बनीं। भगवान के रूप में पुत्र की प्राप्ति पर नंदबाबा अविभूत हो गए।

 गोकुल में जमकर उत्सव मनाया गया। इसी तर्ज पर कथा स्थल पर वातावरण दिखाई दिया। भगवान श्रीकृष्ण बाल स्वरूप में टोकरी पर सवार होकर आए और देखते ही देखते सभी लोग उत्सव में शामिल हो गए। भगवान पर फूलों की बारिश की गई, उत्सव मना रहे लोगों पर फूल बरसाए गए। हर कोई सुध-बुध खाकर नाचता गाता नजर आया।

राम नाम सत्य को अपशगुन मानना कलियुग का प्रभाव
इंदेशजी उपाध्याय ने प्रतिदिन की तरह कथा के प्रसंगों के दौरान महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किसी की मृत्यु पर राम नाम सत्य कहा जाता है। कलियुग में अवधारण हो गई है कि ऐसा कहना अपशगुन है। यह कलियुग का प्रभाव है। जबकि राम नाम सत्य है। इसलिए जीवन में कुछ भी कमाइए पर राम के नाम को जरूर कमाइए। यही साथ जाएगा।

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