'बेटे के बिना नहीं रह सकती तो मर जाओ' ऐसा कहना सुसाइड के लिए उकसाना नहीं; अदालत की अहम टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 'बेटे के बिना नहीं रह सकती तो मर जाओ' जैसे वाक्यांश कहना खुदकुशी के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा, प्रेमिका को बेटे के साथ शादी की अनुमति न देना भी आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं हो सकता।

Jan 22, 2025 - 08:00
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'बेटे के बिना नहीं रह सकती तो मर जाओ' ऐसा कहना सुसाइड के लिए उकसाना नहीं; अदालत की अहम टिप्पणी

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक महिला का अपने बेटे की प्रेमिका से यह कहना कि अगर वह उसके बेटे के बिना नहीं रह सकती तो मर जाए, आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला नहीं बनता। यह टिप्पणी करते हुए शीर्ष अदालत ने एक महिला के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने में दर्ज आपराधिक मामले को खारिज कर दिया।

जस्टिस बीवी नागरत्ना व जस्टिस एससी शर्मा की पीठ कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के साथ 107 के तहत दर्ज प्राथमिकी को खारिज करने से इन्कार कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की ओर से मृतक के साथ अपने बेटे की शादी से इन्कार करना तथा उसके बिना जीने में असमर्थ होने पर अपना जीवन समाप्त करने के लिए कहना, धारा 306 आईपीसी के अंतर्गत अपराध के लिए बहुत दूरगामी तथा अप्रत्यक्ष है।

पीठ ने स्पष्ट किया कि जब धारा 306 आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) को धारा 107 आईपीसी के साथ पढ़ा जाता है तो यह स्पष्ट है कि  प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उकसावा होना चाहिए और आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के नजदीक होना चाहिए। साथ ही आत्महत्या के लिए प्रेरित करने की स्पष्ट मंशा होनी चाहिए। पीठ ने कहा कि इस मामले में अपराध के सभी उपर्युक्त तत्व आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के लिए दायित्व को आकर्षित करने के लिए अनुपस्थित थे।

पीठ ने कहा, रिकॉर्ड से पता चलता है कि अपीलकर्ता लक्ष्मी दास तथा उसके परिवार ने मृतक पर उसके तथा बाबू दास के बीच संबंध समाप्त करने के लिए कोई दबाव डालने का प्रयास नहीं किया। वास्तव में, मृतक का परिवार ही इस संबंध से नाखुश था। भले ही अपीलकर्ता लक्ष्मी दास ने बाबू दास और मृतक की शादी के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की हो लेकिन यह आत्महत्या के लिए उकसाने के प्रत्यक्ष या परोक्ष आरोप के स्तर तक नहीं पहुंचता।

इसके अलावा मृतक से यह कहना कि अगर वह अपने प्रेमी से शादी किए बिना नहीं रह सकती तो वह जीवित न रहे, जैसी टिप्पणी भी उकसाने की स्थिति में नहीं आएगी। ऐसा कोई सकारात्मक कार्य होना चाहिए जो ऐसा माहौल बनाए जहां मृतक को धारा 306 के आरोप को बनाए रखने के लिए किनारे पर धकेला जाए।

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