बिहार में नेतृत्व को लेकर उलझी भाजपा-जदयू की गुत्थी, लालू के न्योते व नीतीश की मुस्कान ने बढ़ा दी हलचल
बिहार की राजनीति में राजग में जारी उठापटक का मुख्य कारण इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में बड़े भाई की भूमिका और नेतृत्व को लेकर है। जदयू चाहता है कि भाजपा पहले की भांति राज्य में न सिर्फ जदयू को बड़े भाई की भूमिका दे, बल्कि नेतृत्व के संबंध में भी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट करे।
नई दिल्ली (आरएनआई) बिहार में राजग में नेतृत्व को लेकर भाजपा-जदयू के बीच गुत्थी उलझ गई है। गठबंधन में उत्पन्न उलझन के बीच राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने नीतीश को महागठबंधन में वापस आने का न्योता दे दिया। लालू के प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुस्कुराहट ने राज्य की सियासी तपिश बढ़ा दी है।
लालू के नीतीश को दिए न्योते को उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने सिरे से नकार दिया। इस सारे घटनाक्रम की वजह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की वह टिप्पणी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री पद का चेहरा राजग के घटक दल मिल बैठ कर तय करेंगे।
राजग में जारी उठापटक का मुख्य कारण इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में बड़े भाई की भूमिका और नेतृत्व को लेकर है। जदयू चाहता है कि भाजपा पहले की भांति राज्य में न सिर्फ जदयू को बड़े भाई की भूमिका दे, बल्कि नेतृत्व के संबंध में भी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट करे। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि गृह मंत्री के बयान से भ्रम की स्थिति पैदा हुई है। नीतीश स्वाभाविक रूप से राज्य में गठबंधन का चेहरा हैं। इसे सभी को स्वीकार करना चाहिए।
नीतीश को लालू के प्रस्ताव और बेटे तेजस्वी के सिरे से खारिज करने की भी अपनी वजह है। तेजस्वी चाहते हैं कि राजग की अंदरूनी लड़ाई में नीतीश अलग-थलग पड़ जाएं। अगर नीतीश कमजोर होकर महागठबंधन में नहीं आएंगे तो महागठबंधन का नेतृत्व फिर से उन्हीं के हाथ में होगा। यही कारण है कि उन्होंने अपने पिता के बयान के उलट कहा कि महागठबंधन में नीतीश के लिए कोई जगह नहीं है।
जदयू सांसद और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने कहा कि हम लोग राजग में हैं और राजग में ही रहेंगे। महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि लालू के सपने ही रहेंगे, पूरे नहीं होंगे।
जदयू के नेताओं का मानना है कि अगर अभी से चेहरा तय नहीं किया गया तो भाजपा बिहार में भी महाराष्ट्र का फॉर्मूला अपना सकती है। महाराष्ट्र में भाजपा ने पहले शिवसेना के एकनाथ शिंदे को सीएम बनाया लेकिन चुनाव बाद उन्हें किनारे कर देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बना दिया। इसलिए जदयू चाहती है कि भाजपा सार्वजनिक रूप से चेहरे के रूप में नीतीश का नाम घोषित करे।
इस बार राजग में घटक दलों की संख्या ज्यादा है। बीते चुनाव में भाजपा का जदयू, हम और वीआईपी से समझौता था। इस बार नए घटक के रूप में उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान की पार्टी भी है। वीआईपी भी साथ आ सकती है। बीते चुनाव में जदयू 115, भाजपा 110 सीटों पर लड़ी थी, जबकि घटक दलों के हिस्से 18 सीटें आई थीं। जदयू इस चुनाव में भी गठबंधन का बड़ा भाई होने का संदेश देने के लिए सबसे अधिक सीटें चाहती है, जबकि हरियाणा और महाराष्ट्र में बेहतर प्रदर्शन से उत्साहित भाजपा बड़े भाई की भूमिका हासिल करना चाहती है।
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