बमोरी विधानसभा क्षेत्र मार की मऊ मे आदिवासी बाहुल्य इलाकों में भगोरिया की धूम
गुना। बमोरी विधानसभा क्षेत्र में जगह-जगह पर भगोरिया मेला लगा हुआ है। इस भगोरिया मेले में आदिवासी लोकसंस्कृति के रंग चरम पर नजर आते हैं। पर्व की तारीखों की घोषणा के साथ ही जगह-जगह पर भगोरिया हाट को लेकर तैयारियां शुरू हो जाती है। इन मेलों में आदिवासी संस्कृति और आधुनिकता की झलक देखने को मिलती है। कहा जाता है कि आदिवासियों के जीवन में यह उल्लास का पर्व है। भगोरिया उत्सव के लिए बाहर से आदिवासी अपने घर आते हैं।
होली के सात दिन पहले मनाए जाने वाले इस उत्सव में आदिवासी समाज डूबा रहता है। इन सात दिनों के दौरान आदिवासी समाज के लोग खुलकर अपनी जिंदगी जीते हैं। कहा जाता है कि देश के किसी भी कोने में काम के लिए गए आदिवासी, भगोरिया पर अपने गांव लौट आता है। घर पहुंचने के बाद ये लोग हर दिन परिवार के साथ भगोरिया मेले में जाते हैं। मेले का नजारा खूबसूरत होता है। पूरे दिन भगोरिया मेलों में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इसलिए भगोरिया को उल्लास का पर्व भी कहा जाता है। आदिवासी समाज के लोग सात दिनों तक अपनी जिंदगी अपने अंदाज में जीते हैं।
मान्यता के अनुसार भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के समय से हुई थी। उस समय दो भील राजाओं कासूमरा और बालून ने अपनी राजधानी में भगोर मेले का आयोजन शुरू किया था। इसके बाद दूसरे भील राजाओं ने भी अपने क्षेत्रों में इसका अनुसरण शुरू कर दिया। उस समय इसे भगोर कहा जाता था। वहीं, स्थानीय हाट और मेलों में लोग इसे भगोरिया कहने लगे। इसके बाद से ही आदिवासी बाहुल्य इलाकों में भगोरिया उत्सव मनाया जा रहा है।
भगोरिया मेलों में आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। आदिवासी लोगों की अलग-अलग टोलियां मेले में बांसुरी, ढोल और मांदल बजाते नजर आते हैं। इस दौरान आदिवासी लड़कियां भी मेले में सजधज कर आती हैं। वह पूरी तरह से पारंपरिक वेश-भूषा में होती हैं। साथ ही मेले में हाथों पर टैटू गुदवाती हैं।
जयस जिला अध्यक्ष रणविजय भूरिया, गुना ब्लॉक अध्यक्ष अजित पटलिप्तया, सुरेश पटेलिया अजय बारेला, जयपाल जामोद आदि जयस के हजारों कार्यकर्ता मौजूद रहे।
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