प्रकाश प्रदूषण से पेड़ों की पत्तियां सख्त, घट रहे पोषक तत्व

प्रकाश प्रदूषण का असर पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा है। प्रदूषण के कारण पेड़ों की पत्तियां सख्त हो रही हैं और इसके पोषक तत्व भी घट रह हैं। 

Aug 12, 2024 - 06:02
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प्रकाश प्रदूषण से पेड़ों की पत्तियां सख्त, घट रहे पोषक तत्व

नई दिल्ली (आरएनआई) रातभर जलने वाली स्ट्रीट लाइट पेड़ की पत्तियों को इतना सख्त कर देती हैं कि कीट उसे खा नहीं पाते। इससे खाद्य शृंखला के साथ ही शहरों की जैव विविधता पर खतरा मंडराने लगा है। यह जानकारी फंटियर्स इन प्लांट साइंस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में सामने आई है।

इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों ने हमेशा प्रकाश के संपर्क में रहने वाले जापानी पेगौडा पौधे और बीजिंग में ग्रीन एश ट्री की जांच की। उन्होंने पाया कि प्रकाश प्रदूषण से उनकी पत्तियां सख्त हो गई हैं और उनके पोषक तत्व कम हुए हैं।

चाइनीज अकादमी ऑफ साइंसेस के वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार, प्रकाश प्रदूषण सर्केडियन रिदम और दुनियाभर में पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करता है, लेकिन जो पौधे प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश पर निर्भर हैं उन पर इसका प्रभाव गंभीर हो सकता है। सर्केडियन रिदम 24 घंटे के शारीरिक, मानसिक और व्यवहारिक परिवर्तनों के चक्र हैं।

अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने 30 सैंपलिंग स्थलों को चुना जो रातभर रोशन रहने वाली मुख्य सड़कों से करीब 100 मीटर दूर थे। यहां 5,500 पत्तियों को एकत्रित किया गया। पत्तियों का कीटों के शाकाहारी स्वभाव व कृत्रिम प्रकाश से प्रभावित होने वाले गुणों का मूल्यांकन किया गया। पता चला कि पत्तियां जितनी सख्ती हुईं, कीटों का आना उतना की कम हो गया।

प्रमुख अध्ययनकर्ता शुआंग जैंग के मुताबिक, हमने यह पाया कि प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों की पेड़ों की पत्तियां कीटों से कम प्रभावित रहती हैं। पता चला कि कृत्रिम प्रकाश के कारण ऐसा हो रहा है। कृत्रिम प्रकाश ने रात की चमक को करीब 10% तक बढ़ा दिया है। दुनियाभर में कीट पतंगों की ज्यादातर आबादी हर रात प्रकाश प्रदूषण को महसूस कर रही है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, वनस्पति की गुणवत्ता में गिरावट की वजह से उसे खाने वाले कीटों की संख्या गिरती है, जिसका नतीजा यह होता है कि शिकारी कीट और कीट खाने वाले पक्षी ज्यादा दिखाई नहीं देते। इस वजह से प्राकृतिक परिवेश प्रभावित होता है। कीटों की घटती संख्या दुनियाभर में देखी जा रही है। इसलिए इस परिस्थिति पर ध्यान देने की जरूरत है।

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