पृथ्वी को ठंडा रखने की क्षमता खो रही समुद्री बर्फ, 1980 से 15 फीसदी की आई कमी
समुद्री बर्फ में वातावरण को प्राकृतिक रूप से ठंडा करने की शक्ति होती है, लेकिन वह अपनी यह क्षमता तेजी से खो रही है। यह बदलाव पूरी दुनिया में सामने आ रहे हैं। 1980 के बाद से दुनिया में मौजूद समुद्री बर्फ पृथ्वी को ठंडा रखने की अपनी 15 फीसदी क्षमता खो चुकी है। इसकी वजह से धरती ज्यादा तेजी से गर्म हो रही है।
नई दिल्ली (आरएनआई) मिशिगन विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने 1980 से 2023 के बीच उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों का अध्ययन किया। इसमें वातावरण में मौजूद बादलों के साथ समुद्री बर्फ से परावर्तित सूर्य के प्रकाश का विश्लेषण किया गया है। अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि समुद्री बर्फ के विस्तार की तुलना में पृथ्वी को ठंडा रखने की उसकी क्षमता कहीं ज्यादा तेजी से कम हो रही है। जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक, आर्कटिक और अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ के विस्तार की तुलना में उसकी वातावरण को ठंडा रखने की शक्ति में करीब दोगुनी कमी आई है।
शोधकर्ता अलीशेर दुसपेव का कहना है कि 2016 से अंटार्कटिक में आए बदलावों से समुद्री बर्फ को भारी नुकसान हो रहा है। इसकी वजह से तापमान वृद्धि को 40 फीसदी तक बढ़ा दिया है। ऐसे में अगर हम विकिरण प्रभाव में आ रहे बदलावों पर विचार नहीं करे तो हम कुल वैश्विक ऊर्जा अवशोषण का एक बड़ा हिस्सा खो सकते हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, समुद्री बर्फ पिघलने और उसके सूर्य के प्रकाश को कम परावर्तित करने की वजह से आर्कटिक ने 1980 के बाद से वातावरण को ठंडा रखने की अपनी शक्ति का करीब एक चौथाई (21 से 27 फीसदी) हिस्सा खो दिया है। गायब होती बर्फ की परत के अलावा बची हुई बर्फ भी कम परावर्तक होती जा रही है। चूंकि बर्फ की चादरों में जमा हुआ पानी ताजा होता है, इसलिए जब बर्फ की चादर पिघलकर समुद्र में प्रवेश करती है तो यह समुद्र के पानी की लवणता, तापमान और इस प्रकार घनत्व को बदल सकती है, जिससे समुद्र का परिसंचरण प्रभावित होता है।
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