पीएम मोदी का देश में 50% वोट हासिल करने का लक्ष्य
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने इस बार स्वयं अपने लिए इतना बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर लिया है जो आज तक कोई नहीं कर पाया। वह लक्ष्य है अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए 51 प्रतिशत वोट हासिल करना।
नई दिल्ली (आरएनआई) भारतीय जनता पार्टी के नेता अनेक अवसरों पर दावा करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनेक ऐसे काम किए हैं जो जवाहरलाल नेहरू से लेकर आज तक देश का कोई दूसरा नेता नहीं कर पाया। इसमें वे कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विवादित प्रावधानों की समाप्ति, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और तीन तलाक जैसी विवादित सामाजिक प्रथाओं को समाप्त करने के लिए कानून बनाने को मोदी की ऐतिहासिक उपलब्धियों के तौर पर गिनाते हैं। हालांकि, इन मुद्दों पर कांग्रेस सहित अनेक लोगों के विचार अलग हैं।
लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने इस बार स्वयं अपने लिए इतना बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर लिया है जो आज तक कोई नहीं कर पाया। वह लक्ष्य है अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए 51 प्रतिशत वोट हासिल करना। यह काम बिल्कुल भी आसान नहीं है, बल्कि कहें तो यह असंभव सा लक्ष्य है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय थे। उस समय देश में कोई दूसरा मजबूत विपक्ष भी नहीं था। जनता के बीच नेहरू को स्वतंत्रता के नायक के रूप में देखा जाता था।
इसके बाद भी पंडित नेहरू के नेतृत्व में लड़े गए पहले चुनाव में कांग्रेस को केवल 44.99 प्रतिशत वोट ही मिले। कांग्रेस को इस चुनाव में 364 सीटें प्राप्त हुई थीं। तत्कालीन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने 86 लोकसभा सीटों में से 81 सीटें जीती थीं। दूसरे स्थान पर रही सोशलिस्ट पार्टी को इस चुनाव में केवल 10.59 प्रतिशत वोट और 12 सीटें ही मिली थीं।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 47.78 प्रतिशत वोटों के साथ 371 सीटों पर सफलता मिली। नेहरू युग में कांग्रेस की यह सबसे बड़ी चुनावी सफलता थी। तीसरा आम चुनाव भी कांग्रेस ने पंडित नेहरू के नेतृत्व में ही लड़ा था, लेकिन उस चुनाव में कांग्रेस के मत प्रतिशत और सीटों दोनों में कमी आ गई थी।
नेहरू के बाद इंदिरा गांधी को दूसरा करिश्माई नेता माना जाता है। लेकिन उनके नेतृत्व में भी कांग्रेस कभी इतना शानदार प्रदर्शन नहीं कर पाई। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 1967 में पहला चुनाव लड़ा और 40.78 प्रतिशत वोटों के साथ 283 सीटों पर सफलता प्राप्त की। 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 43.68 प्रतिशत वोटों के साथ 352 सीटों पर जीत हासिल की। यह इंदिरा गांधी की मत प्रतिशत के मामले में सबसे बड़ी जीत थी।
1977 में जनता पार्टी ने 41.32 प्रतिशत वोटों के साथ 295 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस 34.52 प्रतिशत वोटों के साथ 154 सीटों पर जीत हासिल की। तीन साल बाद ही दुबारा हुए चुनाव में इंदिरा ने वापसी की और 42.69 प्रतिशत वोटों के साथ 353 सीटों पर जीत हासिल की। सीटों के मामले में यह इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी जीत है।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के ठीक बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को जनता की सहानुभूति का लाभ मिला। उसने ऐतिहासिक रूप से अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन करते हुए लगभग 49 प्रतिशत वोटों के साथ 414 सीटों पर जीत हासिल की। यह कांग्रेस के साथ-साथ देश में किसी भी राजनीतिक दल का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में काम करते हुए भाजपा ने नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव में अपना चेहरा बनाया। मोदी ने एक इतिहास रचते हुए तीन दशक के बाद केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। भाजपा को इस चुनाव में 31 प्रतिशत वोटों के साथ 282 सीटों पर जीत हासिल हुई। एनडीए को 38.5 प्रतिशत वोट 336 सीटों पर सफलता मिली।
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 37.36 प्रतिशत वोटों के साथ 303 सीटों पर जीत मिली। लेकिन अपनी प्रचंड लोकप्रियता के बाद भी मोदी कांग्रेस के नेहरू-इंदिरा-राजीव के उस करिश्मे के आसपास भी नहीं पहुंच पाए जिसमें इन नेताओं ने 40 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर हासिल कर अपनी पार्टी को प्रचंड जीत दिलाई। ऐसे में मोदी-शाह ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 51 प्रतिशत का जो वोट शेयर हासिल करने की बात कही है, उसको लेकर संदेह किया जा सकता है।
लेकिन भाजपा नेता मानते हैं कि यह लक्ष्य असंभव नहीं है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 136 लोकसभा सीटों पर 50 प्रतिशत या इससे ज्यादा वोट लेकर जीत हासिल की थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 224 सीटों पर 50 प्रतिशत या उससे ज्यादा मत प्रतिशत हासिल कर जीत प्राप्त की थी। जिस प्रकार भाजपा ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में शानदार जीत हासिल की है, और वह अपने प्रदर्शन में लगातार सुधार कर रही है, यदि भाजपा 51 प्रतिशत का लक्ष्य हासिल कर ले तो इस पर बहुत आश्चर्च नहीं होगा। हालांकि, विपक्षी दलों में एकता को देखते हुए यह लक्ष्य हासिल करना बहुत आसान नहीं होगा। पूर्वोत्तर, दक्षिण और पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्य भी मोदी की राह में रोड़ा अटकाने का काम कर सकते हैं।
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