पांडवों की तपोभूमि पर प्रकट हुई मां बीसभुजा देवी
नौ साल तक कर्ण ने किया था घोर तप तब प्रकट हुई थीं मां और 20 भुजाओं से दिया था उन्हें आशीर्वाद वर्तमान में भी जिन भक्तों पर पर माता रानी की कृपा हो जाए वही गिन पाते हैं मां की 20 भुजाएं हर बार गिनती में अलग अलग संख्याओं में आती है माता की भुजाएं ।
गुना (आरएनआई) जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर बजरंगगढ़ में विंध्याचल पर्वतमाला की एक सुरम्य पहाड़ी पर मां बीसभुजा देवी का मंदिर अति प्राचीन है। बताते हैं कि मूर्ति की किसी ने स्थापना नहीं की, बल्कि हजारों वर्ष पहले बांस के वृक्षों के बीच से देवी की प्रतिमा प्रकट हुई है। पुजारी महेश शर्मा के अनुसार तकरीबन 5500 साल पहले जब दानवीर अंगराज कर्ण ने इसी पहाड़ी पर बैठकर 9 साल तक मां की घोर आराधना की तब उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता प्रकट हुईं और अपने 20 भुजा रूप में उन्होंने कर्ण को दर्शन देकर आशीर्वाद दिया। तभी से यहां माता दुर्गा 20 भुजा रूप में स्थापित हैं। इसका वर्णन भविष्य पुराण और स्कंद पुराण में भी उल्लेखित है।यह स्थल चमत्कारों से भरा पड़ा है यहां दिन में तीन रूपों में माता रानी के दर्शन होते हैं। खास बात यह है कि माँ की कृपा होती है, उसी भक्त को बीसों भुजा गिनने का सौभाग्य प्राप्त होता है। हर बार गिनती में अलग अलग संख्याओं में आती है माता की भुजाएं। शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र के दौरान इस मंदिर में परंपरागत धार्मिक संस्कार और मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर परिसर में लगने वाला यह मेला नवमी के दिन तक चलता है। इस समय में यहां विशेष पूजा और अभिषेक का आयोजन भी किया जाता है। दुर्गा अष्टमी के मौके पर आयोजित होने वाले इस मेले के दौरान यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में काफी इजाफा हो जाता है। गुना जिले के अलावा प्रदेश के अन्य शहरों और उत्तर प्रदेश व राजस्थान समेत आसपास के प्रदेशों से भी श्रद्धालु यहां मत्था टेकने के लिए आते हैं।
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