पंजाब-हरियाणा HC का बर्खास्त अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद नहीं हुआ बहाल
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के रवैये को लेकर निराशा प्रकट की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट के बर्खास्त अधिकारी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बहाल नहीं किया जाना काफी चिंताजनक है। मामला न्यायिक पदाधिकारी के कथित अवैध संबंध / अफेयर से जुड़ा है।
नई दिल्ली (आरएनआई) पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के एक न्यायिक पदाधिकारी को अफेयर होने के आधार पर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और न्यायिक अधिकारी को पद पर दोबारा बहाल करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत के आदेश के बावजूद उसकी सेवाओं को बहाल नहीं किया गया। अदालत ने हाईकोर्ट के ऐसे रवैये को निराशाजनक करार दिया। शीर्ष अदालत में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की खंडपीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत 20 अप्रैल, 2022 को उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर चुकी है। 25 अक्टूबर, 2018 को आदेश पारित हाईकोर्ट ने पुरुष न्यायिक अधिकारी को राहत देने से इन्कार कर दिया था। पदाधिकारी को न्यायिक सेवा में ही कार्यरत किसी महिला से अफेयर रखने के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने वाले पदाधिकारी की याचिका खारिज कर दी गई थी।सुप्रीम कोर्ट ने 29 महीने पहले हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए पुरुष न्यायिक अधिकारी की सेवाओं को दोबारा बहाल करने का निर्देश दिया था। हैरान करने वाली बात यह भी है कि यह मुद्दा 2009 से ही हाईकोर्ट और शीर्ष अदालत के बीच घूम रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय की पूर्ण अदालत को न्यायिक अधिकारी को बर्खास्त करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में इस बात को भी रेखांकित किया था कि 26 अक्तूबर, 2018 को उच्च न्यायालय की उसी खंडपीठ ने अवैध संबंध के आरोपों को बेबुनियाद माना था। हाईकोर्ट की बेंच में महिला न्यायिक अधिकारी की याचिका स्वीकार कर ली गई थी। साथ ही बर्खास्तगी आदेश को खारिज कर दिया गया था। इसके बावजूद कर्मचारी को सेवा में वापस नहीं लिया जाना निराशाजनक है। गौरतलब है कि अगर अदालत एक बार बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर देती है तो कर्मचारी को सेवा में बहाल माना जाता है।
इस पूरे घटनाक्रम पर शीर्ष अदालत ने कहा, 'जब बर्खास्तगी आदेश को साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट रद्द कर चुकी है और उक्त बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज करने वाले उच्च न्यायालय का फैसले भी निरस्त कर दिया गया है, तो स्वाभाविक है कि कर्मचारी को सेवा में वापस ले लिया जाना चाहिए। बहाली के बाद ही अदालत के निर्देशों के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया, 20 अप्रैल, 2022 के आदेश के बाद अपीलकर्ता (न्यायिक अधिकारी) को सेवा में वापस नहीं लिया गया। अदालत को उच्च न्यायालय और राज्य सरकार की निष्क्रियता के पीछे कोई उचित कारण नहीं दिखता है।
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