पंचायती भ्रष्टाचार को जड़ मूल से खत्म करना निर्णायक भूमिका में पंच उपसरपंच संघ : नरेश धाकड़

Feb 3, 2023 - 20:36
Feb 3, 2023 - 20:36
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श्योपुर। पंच उपसरपंच संघ मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष नरेश धाकड़ ने बताया कि हितग्राही मूलक योजना का लाभ पात्र हितग्राही गांव गरीब किसान और मजदूर को मिले केंद्र और प्रदेश सरकार के साथ मिलकर भ्रष्टाचार को जड़ मूल से खत्म करने में कंधे से कंधा मिलाकर सरकार के साथ में पंच उपसरपंच संघ।
भ्रष्टाचार मिटाना मानव स्वभाव और सभ्यता के लिए चुनौती है भ्रष्टाचार को मिटाना कठिन है लेकिन करने वाले की कभी हार नहीं होषलो से उड़ान होती है जिन संस्थाओं को  जो  शक्तियां दी गई हैं उनका निजी हित में या निजी लाभ के लिए दुरुपयोग करना उनमें लोकसेवक, राजनेता और अन्य अधिकारीगण शामिल होते हैं। पर भ्रष्टाचार करने में निजी संस्थाएं और व्यक्ति भी शामिल हो सकते हैं। निजी कंपनियां, सरकारी कंपनियों के लिए भ्रष्टाचार करती हैं और सरकारी कंपनियां निजी कंपनियों के लिए भ्रष्टाचार करती हैं। कभी दोनों यह काम मिलकर करते हैं।
भ्रष्टाचार पूरी दुनिया के लिए बड़ी चुनौती है। शांति और स्थिरता के लिए खतरा है। उसके कारण तमाम तरह के विवाद और टकराव होते हैं। भ्रष्टाचार के कारण ही संसाधनों का गैर-कानूनी और गैर वाजिब इस्तेमाल होता है गरीबी बढ़ती है, पर्यावरण संकट पैदा होता है और स्थायी विकास के लक्ष्य को हानि पहुंचती है। भ्रष्टाचार के कारण किसी का हक मारा जाता है, किसी को नौकरी नहीं मिलती, किसी का दमन होता है और किसी का जीवन तबाह हो जाता है। इसलिए भ्रष्टाचार व्यक्ति से लेकर व्यवस्था तक को कभी घुन की तरह तो कभी विस्फोटक की तरह नष्ट करता है। निगरानी समितियां एवं जांच एजेंसियों की निष्क्रियता भ्रष्टाचार की मूल जड़।
यही वजह है कि एक लोकतांत्रिक देश जहां पर सूचना का अधिकार है, नागरिकों के मौलिक अधिकार हैं, स्वतंत्र मीडिया है और स्वतंत्र न्यायपालिका है वहां भ्रष्टाचार से लडऩे और उसकी सफाई करना तो स्वाभाविक है लेकिन पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं जनप्रतिनिधियों का दमन होगा तो भ्रष्टाचार से लडऩे की हिम्मत कौन करेगा।
ग्रामसभा को मजबूत बनाए बिना देश में स्वराज नहीं आ सकता। हमारे देश में पंचायती राज कानून बने, पर पंचायतों को उसका अधिकार नहीं दिया गया। पंचायतों को ताकत देने के लिए एक संवैधानिक सुधार की जरूरत भी है। ग्रामसभा को कुछ मांगने की जरूरत ही नहीं है। एकजुटता में वही सब कुछ समाहित है, जो एक नागरिक को चाहिए ग्रामसभा के सशक्तिकरण की दिशा में 73वां संविधान संशोधन एक ऐतिहासिक कदम था।
गांव के हित में योजना बनाना, बजट पारित करना, कर एकत्रण के नियम बनाना, योजनाओं को लागू करना, सार्वजनिक संपत्तियों की रक्षा करना, लाभार्थियों का चयन करना, जन सहभागिता निभाना तथा जनसुनवाई के माध्यम से पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने जैसे दायित्वों को लेकर ग्रामसभा की महत्वपूर्ण भूमिका है। संवैधानिक मान्यता के अनुसार ग्रामसभा के आयोजन को टाला नहीं जा सकता। मध्य प्रदेश में चार बार ग्रामसभा आयोजित करने का प्रावधान है। । ग्रामसभा की बैठक का कोरम कुल सदस्य के 20 वें भाग से होगा। पूरा नहीं होने पर बाद में 40वें भाग से भी कोरम पूर्ति की अनुमति दी गई है। प्रदेश में तीन महीने के अंतराल पर ग्रामसभा आयोजित किए जाने का प्रावधन है पंचायती राज व्यवस्था की सबसे कमजोर कड़ी ग्रामसभा हो गई। विडंबनाओं की शुरुआत ग्रामसभा के क्रियान्वयन से ही होती है।  ग्रामसभा होती भी है तो लोगों की संख्या नहीं होती। कभी-कभार आयोजित ग्रामसभा में लोगों की भागीदारी रस्म अदायगी भर होती है।   ओर योजनाओं के क्रियान्वयन की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है  लेकिन मनरेगा के अधिनियम की अनदेखी ग्रामसभा के सशक्त नहीं रहने के कारण होती रही है। मोटे तौर पर हम यह कह सकते हैं कि ग्रामसभाओं की सक्रियता से ग्राम पंचायत ग्रामीण विकास का काम ईमानदारी और निष्ठा से कर सकती है। ग्रामसभा ही ग्राम पंचायतों पर नियंत्रण कर सकती है। ग्रामवासियों को ग्रामसभा के महत्वपूर्ण कार्य और अधिकारों को समझना होगा, क्योंक यही एक ऐसा मंच है जहां पर सामाजिक अंकेक्षण हो सकता है। सरकार ने प्रतिनिधियों को अधिकार तो दिया है लेकिन उसके अनुपालन के प्रति पदाधिकारियों में कोई उत्साह नहीें होता। जनप्रतिनिधि कभी-कभी खुद को उपेक्षित समझने लगते हैं। पर अराजकता का माहौल है। सरकारी योजनाएं भ्रष्टाचारियों की भेंट चढ़ गई हैं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में निचले स्तर पर लोगों को जोड़ने की जरूरत है। आम लोगों में यह शिकायत है कि भ्रष्टाचार की वजह से उनका कोई काम नहीं हो सकता है। इसकी सर्वाधिक मार गरीबों के ऊपर ही पड़ती है। मौजूदा समय में कानून तो हैं, लेकिन जांच एजेंसियों पर सरकार का दबाव नहीं होता है। आम लोगों को जरूरी कामों के लिए मुखिया तथा प्रखंड मुख्यालय के बार-बार चक्कर काटने पड़ते हैं। बिना पैसे खर्च किए आम लोगों का काम ही नहीं हो पाता है। इस काम में पंचायतें कारगर भूमिका निभा सकती हैं। तमाम लोकोपयोगी योजनाओं को दिशा देने के साथ ही लोकतंत्र को सशक्त करने में पंचायत की भूमिका है, लेकिन बीते वर्षों में पंचायतों की विश्वसनीयता घटी है, जो गांधी के ग्राम स्वराज के दर्शन के विपरीत है। लोकतंत्र की जड़ें जिन गावों में पोषित होती हैं वहां तो भ्रष्टाचार की दीमक लगी है। बीते वर्षों में पंचायत प्रतिनिधियों की चर्चा भ्रष्टाचार के कारण ज्यादा हुई है। ग्रामसभा को मजबूत बनाए बिना देश में स्वराज नहीं आ सकता। हमारे देश में पंचायती राज कानून बने, पर पंचायतों को उसका अधिकार नहीं दिया गया। पंचायतों को ताकत देने के लिए एक संवैधानिक सुधार की जरूरत भी है। ग्रामसभा को कुछ मांगने की जरूरत ही नहीं है। एकजुटता में वही सब कुछ समाहित है, जो एक नागरिक को चाहिए।
73वें संविधान संशोधन की भावना के अनुरूप गांव के मामले में ग्रामसभा की सार्वभौमिकता को अक्षुण्ण रखते हुए बीपीएल निर्धारण, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, प्रधानमंत्री आवास, कर निर्धारण, राजस्व वसूली सहित सभी विकास और कल्याण योजनाओं का निर्धारण सिर्फ ग्रामसभा में हो सूचना का अधिकार हमारे परिपक्व लोकतंत्र का परिचायक है। मगर इस कानून को जमीनी रूप देने के लिए निचले तबकों की जागरुकता पर जोर देना होगा। इस अधिकार से जनता को अपनी समस्याओं से निजात पाने में सफलता मिल सकती हैं। बशर्ते इसे ईमानदारी से लागू किया जाए और जनता जागरूक होकर इस अधिकार का प्रयोग करे। तमाम लोकापयोग योजनाओं को क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी पंचायतों की है, लेकिन जागरुकता एवं भ्रष्टाचार की वजह से इन कार्यक्रमों का हाल चिंताजनक है।
सूचना अधिकार के प्रयोग से योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता आ सकती है। लोगों को जागरुक करना होगा। ग्रामीणों में जागरुकता के बाद ही वित्तीय वर्ष का लेखा-जोखा, ऑडिट रिपोर्ट, गांव की योजना से संबंधित रजिस्टर, अगले वर्ष होने वाले खर्च का लेखा-जोखा भी देखा जा सकता है। इसके अलावा निगरानी समिति का गठन, पंचायतों को वित्तीय अधिकार देने, अफसरशाही पर अंकुश, पंचायत प्रतिनिधियों के अपमानपूर्ण व्यवहारों, भयादोहन आदि को रोकना होगा। निचले स्तर पर भ्रष्टाचार मिटाने के गंभीर प्रयास करने जैसे कार्यों से ही ग्रामसभा सशक्त होगी। जनसंख्या की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। इसलिए पंचायती राज व्यवस्था को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। पंचायती राज व ग्रामसभा की वास्तविक संभावनाओं का उपयोग अभी तक नहीं हो पाया है। इसके लिए अभी अनेक प्रयास करने होंगे। ग्रामसभा को मजबूत बनाए बिना गांधी के ग्राम स्वराज्य के सपनों को साकार नहीं किया जा सकता। पंचायती राज व्यवस्था में संवैधानिक तब्दीली के साथ-साथ आम लोगों को जागरुक करने की जरूरत भी है।
पंच ग्राम पंचायत की सबसे छोटी और महत्वपूर्ण इकाई है, पंच अपने वार्ड का मुखिया होता है, इनका अधिकार सुरक्षित किया जाए, भ्रष्टाचार की मिलीभगत से अधिकारी कर्मचारी और सरपंच मिलकर इनके अधिकारों का खनन करते हैं। यहां तक कि इनको सम्मान भी नहीं मिलता, जबकि अपने वार्ड का मुखिया होने के बाद भी ना तो हितग्राही मूलक योजनाओं में भागीदारी होती है। और नाही वार्ड विकास एवं निर्माण कार्य में, उपसरपंच भी इनका नेता होता है। और पंचायत में दूसरे नंबर का मुखिया होता है जो सरपंच की गैरमजूदगी में गांव का प्रधान होता है। ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार चरम सीमा से पार हे, ग्राम में निर्माण कार्य की स्थिति चिंताजनक है। निर्माण होने के उपरांत ही निर्माण क्षतिग्रस्त हो जाता है, क्योंकि घटिया सामग्री और मनरेगा के अंतर्गत मशीनों का इस्तेमाल कर मजदूरों के हक पर डाका डाल कर  जनता की संपत्ति का खनन करते हैं। प्राथमिकता के आधार पर निर्माण कार्य नहीं करते ग्राम सभाओं में न तो लेखा-जोखा दिया जाता है और न ही किसी भी योजना के बारे में जानकारी दी जाती है। ग्राम सभा मैं नोडल भी उपस्थित नहीं होते, जो प्रस्ताव किए जाते है सरपंच सचिव मनमानी से कर लेते हैं। इसके विषय में कोई भी जानकारी नहीं देते हैं। जनसुनवाई जैसे कार्यक्रम पंचायतों में नहीं होते, यहां तक कि सचिव ग्राम पंचायत में उपस्थिति नहीं होता, जबकि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालयों पर भी प्रमुख सचिव नियमित उपस्थित रहते हे। लेकिन ग्राम पंचायतों के 6 माह तक ताले भी नहीं खोले जाते मध्यप्रदेश में 8 माह बाद भी पंचायत सदस्य यानी पंच सरपंच और उपसरपंच की बैठक भी अभी तक नहीं हुई है। ना सरपंच सचिव ने पंचायत की बैठक बुलाने के लिए अभी तक कोई सूचना पंच उपसरपंच को पहुंचाई गई हे। जब ग्राम सभा विधाईका होती है, तो ग्राम पंचायत कार्यपालिका, लेकिन कार्यपालिका की  बिना बैठक के ही ग्राम की पंचायतों में निर्माण कार्य किए जा रहे हैं, निर्माण स्थल पर ना बोर्ड लगाया जाता है ना मनरेगा के तहत मस्टर या मजदूरों के नाम ऑनलाइन किए जाते है। घटिया निर्माण कार्य को रोकने के लिए पूर्णता प्रमाण पत्र पर उप सरपंचों के हस्ताक्षर जरूरी किए जाए, निर्माण कार्य के लिए निर्माण समिति को ही मजबूत किया जाए, गांव की सफाई हेतु स्वच्छता समिति, शिक्षा हेतु शिक्षा समिति, स्वच्छ जल के लिए जल प्रबंधन समिति, खाद्यान्न हेतु ग्राम विकास समिति, सभी समितियों को अधिकार देकर प्रभावशाली बनाया जाए, लेकिन मध्य प्रदेश की त्रिस्तरीय पंचायत राज अधिनियम मैं होने के बाद भी समितियों का गठन 8 महा पूर्ण होने पर भी नहीं किया गया, भ्रष्टाचार कि इससे बड़ी वजह और क्या हो सकती है। पंच उपसरपंच की भी वेतन वृद्धि की जाए।

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