‘न्यायपालिका में सुधार की जरूरत’, यशवंत वर्मा विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व अटॉर्नी जनरल ने उठाए ये सवाल
रोहतगी ने कहा कि महाभियोग के जरिये न्यायाधीशों को हटाने की मौजूदा प्रक्रिया अत्यधिक जटिल है। इसका प्रमाण यह तथ्य है कि पिछले 75 साल में एक भी महाभियोग अपने अंजाम तक नहीं पहुंचा। उन्होंने कहा कि न्यायिक नियुक्ति प्रणाली में भी अहम सुधार की जरूरत है।

नई दिल्ली (आरएनआई) दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा मामले में पूर्व अटॉर्नी जनरल व वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि न्यायपालिका की प्रणालियों में सुधार की तत्काल आवश्यकता है। इसमें नियुक्ति, अनुशासन और हटाने की प्रक्रिया भी शामिल हैं।
रोहतगी ने कहा कि महाभियोग के जरिये न्यायाधीशों को हटाने की मौजूदा प्रक्रिया अत्यधिक जटिल है। इसका प्रमाण यह तथ्य है कि पिछले 75 साल में एक भी महाभियोग अपने अंजाम तक नहीं पहुंचा। उन्होंने कहा कि न्यायिक नियुक्ति प्रणाली में भी अहम सुधार की जरूरत है। केंद्र सरकार ने न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की शुरुआत की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया, ताकि प्रक्रिया पर उसका नियंत्रण बना रहे। मौजूदा प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है क्योंकि न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं। उन्होंने अधिक संतुलित और खुली प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए प्रसिद्ध न्यायविदों, कलाकारों, सार्वजनिक हस्तियों और विपक्षी नेताओं जैसे बाहरी हितधारकों को शामिल करने का सुझाव दिया।
रोहतगी ने मौजूदा परंपरा की भी आलोचना की, जिसमें व्यक्तियों का एक छोटा समूह यह निर्णय लेता है कि किस न्यायाधीश को किस हाईकोर्ट में नियुक्त किया जाए। उन्होंने अधिक समावेशिता और जवाबदेही की मांग की। न्यायाधीशों को हटाने के मसले पर उन्होंने कहा कि महाभियोग की प्रक्रिया अत्यधिक जटिल है। इसे सरल बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने न्यायपालिका और संसद से अपील की कि वे संबंधित हितधारकों के साथ मिलकर हटाने की प्रक्रिया पर पुनर्विचार करें तथा अधिक पारदर्शिता और दक्षता के लिए प्रणाली में सुधार करें।
उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर जस्टिस वर्मा ने स्वीकार किया कि पैसे उनके थे, तो उन्हें किसी अन्य पद पर स्थानांतरित करना पर्याप्त नहीं होगा। उनके न्यायिक कर्तव्यों को वापस लेने जैसे सख्त उपायों पर विचार किया जाना चाहिए। यदि मामला स्पष्ट है तो मुख्य न्यायाधीश को पुलिस को पूर्ण जांच करने के लिए आवश्यक मंजूरी देनी चाहिए। उन्होंने संदेह जताया कि क्या सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट फोरेंसिक विशेषज्ञों की भागीदारी के बिना ऐसी गंभीर जांच करने में सक्षम हैं। यह कोई साधारण मामला नहीं है।
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