नोटबंदी के फायदों पर छह साल बाद भी जारी है बहस

नोटबंदी के छह साल बीत जाने के बाद भी इसके फायदे-नुकसान को लेकर बहस जारी है। सरकार का दावा है कि इससे अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने में मदद मिली, जबकि आलोचकों का कहना है कि यह फैसला काले धन पर अंकुश लगाने और नकदी पर निर्भरता को कम करने में विफल रहा है।

Nov 8, 2022 - 19:30
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नोटबंदी के फायदों पर छह साल बाद भी जारी है बहस

नयी दिल्ली, 8 नवंबर 2022, (आरएनआई)। नोटबंदी के छह साल बीत जाने के बाद भी इसके फायदे-नुकसान को लेकर बहस जारी है। सरकार का दावा है कि इससे अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने में मदद मिली, जबकि आलोचकों का कहना है कि यह फैसला काले धन पर अंकुश लगाने और नकदी पर निर्भरता को कम करने में विफल रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर, 2016 को अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार और काले धन की समस्या को दूर करने के उद्देश्य से 500 और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था।

इस कदम का उद्देश्य भारत को ‘कम नकदी’ वाली अर्थव्यवस्था बनाना था। यह भी कहा गया कि इससे काले धन पर अंकुश लगाने तथा आतंकवाद के वित्तपोषण को खत्म करने में मदद मिलेगी।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से पखवाड़े के आधार पर शुक्रवार को जारी धन आपूर्ति आंकड़ों के अनुसार, इस साल 21 अक्टूबर तक जनता के बीच चलन में मौजूद मुद्रा का स्तर बढ़कर 30.88 लाख करोड़ रुपये हो गया। यह आंकड़ा चार नवंबर, 2016 को समाप्त पखवाड़े में 17.7 लाख करोड़ रुपये था। इस तरह चलन में मौजूद मुद्रा का स्तर नोटबंदी से अब तक 71 प्रतिशत बढ़ा।

एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल दिवाली वाले सप्ताह में प्रणाली में नकदी या मुद्रा (सीआईसी) में 7,600 करोड़ रुपये की कमी हुई। लोगों के बीच डिजिटल भुगतान के लोकप्रिय होने के कारण ऐसा हुआ। रिपोर्ट में साथ ही कहा गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय एक संरचनात्मक बदलाव के दौर से गुजर रही है।

एसबीआई की शोध रिपोर्ट के मुताबिक भुगतान प्रणाली में सीआईसी की हिस्सेदारी 2015-16 में 88 प्रतिशत से घटकर 2021-22 में 20 प्रतिशत रह गई। इसके 2026-27 तक घटकर 11.15 प्रतिशत रह जाने का अनुमान है। इसी तरह डिजिटल लेनदेन 2015-16 में 11.26 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 80.4 प्रतिशत हो गया। इसके 2026-27 तक बढ़कर 88 प्रतिशत होने की उम्मीद है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने नोटबंदी के फैसले की आलोचना करते हुए एक ट्वीट में कहा कि देश को काले धन से मुक्त करने के लिए नोटबंदी का वादा किया गया था, ”लेकिन इसने व्यापार को नुकसान पहुंचाया और नौकरियों को खत्म कर दिया।”

उन्होंने आगे कहा, ”इस ‘मास्टरस्ट्रोक’ के छह साल बाद लोगों के पास 2016 के मुकाबले 72 प्रतिशत अधिक नकदी है। प्रधानमंत्री ने अभी तक इस विफलता को स्वीकार नहीं किया है, जिसके चलते अर्थव्यवस्था में गिरावट हुई।”

अमेरिका के मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जयति घोष ने कहा कि नोटबंदी के लिए दिया गया तर्क (काले धन की वजह नकदी है), इसकी योजना (अनौपचारिक क्षेत्र में नकदी की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार न करना, जिस पर 85 प्रतिशत आबादी निर्भर है) और कार्यान्वयन (सरकारी एजेंसियों तथा बैंकों को तैयारी का मौका दिए बिना अचानक की गई नोटबंदी), सभी पूरी तरह गलतियों से भरे थे।

इसबीच एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष ने एक ट्वीट में कहा कि डिजिटल लेनदेन बढ़ने से प्रणाली में मौजूद नकदी उल्लेखनीय रूप से कम हुई है।

लोकलसर्किल की एक रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के छह साल बाद भी यह स्पष्ट नहीं है कि इस बड़े फैसले ने अपने लक्ष्य को हासिल किया या नहीं। उपलब्ध सबूतों से पता चलता है कि लोग अभी भी रियल एस्टेट लेनदेन में काले धन का लेनदेन कर रहे हैं। इसके अलावा हार्डवेयर, पेंट और कई अन्य घरेलू उत्पादों की बिक्री बिना उचित रसीद के की जा रही है।

नोटबंदी के बाद सरकार ने 2,000 रुपये के नये नोट जारी किए। साथ ही 500 रुपये के नोटों की नई श्रृंखला पेश की गई। इसके बाद 200 रुपये के नये नोट भी जारी किए गए।

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