नेपाल के पहाड़ों की एक-तिहाई बर्फ पिघली
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2009 से 2021 तक के बीच 30 प्रतिशत तक अधिक हिमालयी क्षेत्रों, ग्लेशियर से बनी झीलों और जल निकाय क्षेत्रों में वृद्धि हुई है। इसमें केवल 50 हेक्टेयर से बड़े क्षेत्र वाली ग्लेशियर से बनी झीलों और जल निकायों के आंकड़ों को संकलित किया गया है।
काठमांडो, (आरएनआई) जलवायु परिवर्तन के कारण नेपाल के पहाड़ों की करीब एक-तिहाई बर्फ खत्म हो चुकी है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा, इसे खत्म होने में करीब 30 वर्षों का समय लगा है। इस दौरान हिमालय के पहाड़ों में वैश्विक औसत से ज्यादा तापमान बढ़ा है।
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2009 से 2021 तक के बीच 30 प्रतिशत तक अधिक हिमालयी क्षेत्रों, ग्लेशियर से बनी झीलों और जल निकाय क्षेत्रों में वृद्धि हुई है। इसमें केवल 50 हेक्टेयर से बड़े क्षेत्र वाली ग्लेशियर से बनी झीलों और जल निकायों के आंकड़ों को संकलित किया गया है।
गुटेरस ने एक वीडियो संदेश में कहा, नेपाल के ग्लेशियर पिछले दशक में उससे पहले के दशक के मुकाबले 65 प्रतिशत ज्यादा तेजी से पिघले हैं। उन्होंने आगे कहा, मैं आज यहां आया हूं ताकि दुनिया की छत से चिल्ला कर कह सकूं, यह पागलपन बंद कीजिए। जीवाश्म ईंधन युग के अंत की मांग करते हुए उन्होंने चेतावनी भी दी कि ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों और तालाबों में उफान आ जाएगा। पूरे के पूरे समुदाय बह जाएंगे हुए और समुद्रों के जलस्तर में भी रिकॉर्ड बढ़ोतरी होगी।
जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले 100 वर्षों में धरती के तापमान में औसत 0.74 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन हिमालय के इलाकों में वैश्विक औसत से ज्यादा तेजी से तापमान बढ़ा है। इस वर्ष जून में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन की इस शताब्दी के अंत तक हिंदू कुश-हिमालय इलाके के ग्लेशियरों का फैलाव 75 प्रतिशत कम हो सकता है।
इस इलाके में रहने वाले 24 करोड़ लोगों पर बाढ़ का खतरा हो सकता है। पर्वतारोहियों का कहना है कि पहाड़ बीतते समय के साथ अधिक सूखा और भूरे रंग का होता जा रहा है। इससे मालूम पड़ता है कि आने वाले समय में पानी का भी संकट हो सकता है। 18वीं शताब्दी के बाद से तेजी से घटे ग्लेशियर दुनियाभर के अध्ययनों से पता चला है कि 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से ग्लेशियर तेजी से घट रहे हैं। अक्तूबर 2023 की शुरुआत में ग्लेशियल झील में बाढ़ के विस्फोट से तीस्ता नदी के जल में अचानक वृद्धि हुई।
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