नीतीश कुमार खेलने लगे 'सियासी खुन्नस' का खेल!
यह किसी को भी सुन कर आश्चर्य होगा कि विभागीय बैठक सीएम करें और उसमें विभाग का मंत्री ही न रहे। पर, बिहार में ऐसा हुआ है। केंद्रीय सड़क परियोजनाओं पर पथ निर्माण विभाग की बैठक सीएम नीतीश कुमार ने की। उस बैठक में दो में से कोई डेप्युटी सीएम शामिल नहीं हुआ। एक डेप्युटी सीएम के पास तो पथ निर्माण का विभाग ही है। पहले भी कई ऐसे कार्यक्रम हुए हैं, जिनमें किसी डेप्युटी सीएम की मौजूदगी नहीं रही।
पटना (आरएनआई) सुदामा पांडेय 'धूमिल' की एक कविता की ये पंक्तियां हैं- 'आदमी दाएं हाथ की नैतिकता से इस कदर मजबूर होता है कि तमाम उम्र गुजर जाती है, मगर तशरीफ सिर्फ बाएं हाथ से धोता है।' धूमिल ने यह कविता चाहे जिस संदर्भ में लिखी हो, पर बिहार की सत्ता सियासत में यह फिट बैठती है। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी सरकार को समर्थन दिया तो बिहार में उसकी इतनी महंगी कीमत वसूल रहे हैं, जितना भाजपा ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। नीतीश की नजर में भाजपा कोटे के मंत्रियों का कोई मोल नहीं। भाजपा ने भले अपने दो डेप्युटी सीएम बना कर नीतीश की नकेल कसने की व्यवस्था की थी, पर नीतीश के सामने उनकी कोई औकात नहीं। खासकर तब, जब केंद्र में सरकार बनाने लायक भाजपा को बहुमत नहीं मिला।
नीतीश ने केंद्र द्वारा स्वीकृत उन सड़क परियोजनाओं की समीक्षा के लिए गुरुवार को बैठक की, जो बिहार से गुजरेंगी। पांच सौ से अधिक किलोमीटर सड़क बिहार के हिस्से की है। पथ निर्माण विभाग के मंत्री विजय कुमार सिन्हा हैं। सिन्हा बिहार के डेप्युटी सीएम भी हैं। आश्चर्य की बात है कि विजय सिन्हा को न विभागीय मंत्री के नाते बैठक में बुलाया गया और न डेप्युटी सीएम की हैसियत से ही नीतीश ने उनकी जरूरत महसूस की। इससे भी बड़ा आश्चर्य यह कि बैठक में राज्यसभा सदस्य और जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा शामिल हुए। अगर सांसदों को भी शामिल करना था तो बाकी सांसदों को क्यों नहीं बुलाया गया। यह बात बिहार की सियासत में फिर एक बार चर्चा का विषय बनी हुई है। कयास लग रहे हैं कि एनडीए में आल इज नॉट वेल।
यह पहला मौका नहीं है, जब भाजपा कोटे के दोनों उप मुख्यमंत्रियों की उपेक्षा हुई हो। लोकसभा चुनाव के बाद कई ऐसे सरकारी कार्यक्रम हुए हैं, जिनमें उप मुख्यमंत्रियों को नहीं बुलाया गया। कुछ में वे गए भी, मगर बैनर से उनकी तस्वीरें नदारद रहीं। इसके दो कारण हो सकते हैं। सम्राट चौधरी से नीतीश कुमार की अनबन जाहिर है। विजय सिन्हा से भी नीतीश विधानसभा में उलझ गए थे, जब वे स्पीकर थे। जिन दिनों नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ सरकार चला रहे थे, सम्राट चौधरी ने बहैसियत भाजपा अध्यक्ष नीतीश को सीएम की कुर्सी से उतारने तक मुरैठा बांध रखा था। हालांकि नीतीश कुमार जब एनडीए में लौट आए और लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत नहीं मिलने पर नीतीश के साथ की जरूरत पड़ी तो तो सम्राट के सुर बदल गए। भाजपा में सबसे पहले उन्होंने ही कहा कि नीतीश के नेतृत्व में ही भाजपा अगला विधानसभा चुनाव लड़ेगी। संभव है कि नीतीश के मन में अब भी यह बात बैठी हो।
वर्ष 2020 में जब जेडीयू विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई और इसके बावजूद वे सीएम बने तो भाजपा ने पहली बार दो डेप्युटी सीएम का कांसेप्ट बनाया। तार किशोर प्रसाद और रेणु देवी डेप्युटी सीएम बने। उसके पहले भी नीतीश लंबे समय तक भाजपा के सहयोग से सरकार चलाते रहे थे, लेकिन तब एकमेव डेप्युटी सीएम भाजपा के सुशील कुमार मोदी ही बनते रहे। दो डेप्युटी सीएम से नीतीश असहज महसूस करते थे। इस बात का पता तब चला, जब वे आरजेडी के साथ आए। जिन दिनों जेडीयू में रहते उपेंद्र कुशवाहा को दूसरा डेप्युटी सीएम बनाने की चर्चा होने लगी, तब नीतीश ने उसे बकवास कहा था। साथ में टिप्पणी की थी कि दो डेप्युटी सीएम का कोई मतलब है। भाजपा के लोग जबरन दो डेप्युटी सीएम बना दिए थे। इसका मतलब साफ है कि नीतीश को दो डेप्युटी सीएम नहीं सुहाते।
यह सबको पता है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी को नीतीश कुमार का समर्थन इस बार पहले जैसा नहीं है। पहले मोदी को बहुमत के लिए सहयोगी दलों की ओर टकटकी लगाने की नौबत नहीं थी। इसलिए कि भाजपा अपने दम पर बहुमत से अधिक सीटें जीतती रही। इस बार भाजपा बहुमत से पीछे रह गई। सहयोगियों के बूते मोदी सरकार चला रहे हैं। टीडीपी के साथ जेडीयू का समर्थन भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है। नीतीश जानते हैं कि केंद्र में भाजपा को समर्थन दिया है तो बिहार में इसकी कीमत वसूली जा सकती है। केंद्र में नीतीश भाजपा की हर बात मानते रहे हैं। राज्यसभा चुनाव का मामला हो या मंत्री बनाने और उनके विभाग का, नीतीश ने नरेंद्र मोदी को खुली छूट दी। स्पीकर-डेप्युटी स्पीकर के चयन में भी नीतीश ने चूं-चपड़ नहीं किया। बिहार में नीतीश कुमार 2010 के रुतबे में अब रहना चाहते हैं। संभव है, इसी ऐंठ में उन्होंने पथ निर्माण विभाग की समीक्षा बैठक में विभागीय मंत्री को न बुलाया हो। विभाग ही है। पहले भी कई ऐसे कार्यक्रम हुए हैं, जिनमें किसी डेप्युटी सीएम की मौजूदगी नहीं रही।
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