निवर्तमान पाक पीएम शहबाज शरीफ का कबूलनामा
शहबाज शरीफ ने कहा, इमरान खान को अपने कार्यकाल के दौरान सैन्य समर्थन भी मिला। दूसरों के खिलाफ आरोपों के बावजूद उनकी सरकार विभिन्न घटकों का मिश्रण थी। हर सरकार को सेना सहित प्रमुख क्षेत्रों से समर्थन की आवश्यकता होती है।
पाकिस्तान के निवर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने स्वीकार किया है कि उनकी सरकार शक्तिशाली सेना के समर्थन के बिना नहीं चल सकती। शरीफ का यह बयान तख्तापलट की आशंका वाले देश की राजनीति में सेना की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। शरीफ जब विपक्ष के नेता थे, तो वह हाइब्रिड शासन चलाने के लिए अपने पूर्ववर्ती इमरान खान की आलोचना करते थे। लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने वही ढर्रा अपना लिया।
गुरुवार को प्रसारित जियो न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में जब एंकर ने बताया कि पाकिस्तान आज दुनिया में हाइब्रिड शासन के सबसे प्रमुख उदाहरणों में से एक है, तो शरीफ ने कहा कि इमरान खान ने पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा पर बहुत भरोसा किया था। शरीफ ने कहा, खान को अपने कार्यकाल के दौरान सैन्य समर्थन भी मिला। दूसरों के खिलाफ आरोपों के बावजूद उनकी सरकार विभिन्न घटकों का मिश्रण थी। हर सरकार को सेना सहित प्रमुख क्षेत्रों से समर्थन की आवश्यकता होती है।
सेना को आमतौर पर प्रतिष्ठान के रूप में जाना जाता है। लेकिन उसने 1947 में विभाजन के बाद से पाकिस्तान के लगभग आधे इतिहास में सीधे तौर पर शासन किया है। शेष आधे भाग में इसने पर्दे के पीछे से देश की राजनीति को नियंत्रित करने का काम किया। हालांकि, पाकिस्तान की सेना ने बार-बार कहा है कि वह देश की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करती है, लेकिन देश के मामलों में उसका प्रभाव अभी भी स्पष्ट रूप से दिखता है।
पाकिस्तान में हाल ही में सेना ने वित्तीय निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लिया और प्रधानमंत्री शरीफ ने कोई प्रतिरोध दिखाने के बजाय इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया। उन्होंने प्रमुख क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा देने के लिए एक उच्च स्तरीय विशेष निवेश सुविधा परिषद (Special Investment Facilitation Council) की स्थापना की और प्रधानमंत्री के साथ सेना प्रमुख भी इसका हिस्सा हैं।
शरीफ ने अप्रैल में कहा था कि सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने सऊदी अरब और यूएई से धन हासिल करने में अहम भूमिका निभाई। क्योंकि नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के साथ बेलआउट समझौते पर मुहर लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की यह पूर्व निर्धारित शर्त थी।
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