निराशा की बुनियाद पर गुना जिले के नवागत एसपी से नूतन परिवर्तन की उम्मीदें

Mar 30, 2023 - 22:06
Mar 30, 2023 - 22:53
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निराशा की बुनियाद पर गुना जिले के नवागत एसपी से नूतन परिवर्तन की उम्मीदें

गुना। नौकरी की दृष्टि से उर्वरता से भरपूर गुना जिले में दस महीने के छोटे से किंतु निर्विवादित कार्यकाल को पूर्ण कर जिले के 40वें एसपी पंकज श्रीवास्तव की विदाई हो गई। उनके स्थान पर आगर मालवा में तीन साल तक एसपी रहे राकेश सगर को शिवराज सरकार ने गुना जिले का 41वां एसपी बनाकर भेजा है। नए पुलिस कप्तान के रूप में श्री सगर ने कुर्सी सम्हाल ली है। एसपी ऑफिस में वर्षों से जमे, अफसरों के आंख कान रहने वाले जनों ने उन्हें जिले की स्थिति से अवगत कराना शुरू कर ही दिया होगा।

कौन सा थाना कितना 'गर्म' है और कौन सा ठंडा। कौन सा नेता किस मिजाज का है। मातहतों में कौन कितना काबिल है, कौन खिलाड़ी है। जिले की राजनैतिक स्थिति, भोगौलिक स्थिति, संवेदनशील स्थान, त्यौहार, बड़े मेले आदि की जानकारी भी नवागत एसपी तक पहुंच ही रही होगी। इस सबके बीच हर आने वाले नए एसपी की तरह नवागत एसपी राकेश सगर से भी जिले की "निराश जनता" को काफी अपेक्षाएं हैं।

यहां "निराश जनता", लिखा है। निराश इसलिए कि जिले में एक दो अपवाद को छोड़ दिया जाए तो जनता की आवाज उठाने वाला कोई नेता दिखाई नहीं देता। बड़े नेताओं को अपने क्षेत्र से मतलब है कि अच्छे बुरे जैसे भी हैं, जो उनके हैं उन्हें न छेड़ा जाए। अधिकांश नेता बेहद सरल हैं। द्वितीय पंक्ति के नेता इतने बेचारे हैं कि अफसरों द्वारा पिलाई गई चाय बिस्किट में ही खुश हो जाते हैं। अफसरों से मोबाइल पर बात होने को ही अपना राजनैतिक प्रभाव मानकर आत्ममुग्ध रहते हैं। दरअसल, उन्हें हकीकत पता है कि वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में इज्जत बचाकर राजनीति कैसे करना है। हालांकि अपवाद सभी जगह होते हैं तो यहां भी हैं।

लेकिन, जनता हर बार की तरह इस बार भी नए एसपी से बड़ी उम्मीदें हैं कि भर्राशाही के आलम में कुछ तो सुधार होगा। 

गुना जिला क्रिकेट के ऑन लाइन सट्टे का हब बन गया है। युवा पीढ़ी इसमें उलझकर बर्बाद हो रही है। आईपीएल का सट्टा गुना में अपराधियों की गैंग भी खड़ी कर रहा है। आईपीएल सट्टे में उलझ कर कंगाल व्यक्ति से सट्टे की उधारी वसूलने के लिए हिस्ट्रीशीटर और गुंडों की टीमें मारपीट करती हैं। और दुर्भाग्य ये है कि इस अवैध खेल में महकमे के ही कुछ कर्मियों का संरक्षण और खाईवाल होने के आरोप भी सार्वजनिक हैं। उम्मीद है इस पर लगाम लगाने के लिए सुधार की शुरुआत पहले घर से ही होगी।

इसी तरह नशा माफिया भी हावी है। गुना शहर में टिकिट (स्मैक) का कारोबार उफान पर है। इसे लेकर गुना में ही एक फिल्म "टिकिट एक संघर्ष" भी बन चुकी है। चाचौड़ा, मृगवास, कुंभराज जैसे राजस्थान सीमा से सटे थाना क्षेत्र नशा तस्करों के पिकनिक स्पॉट हैं। अभी तक तो तस्करों पर छोटी मोटी कार्यवाही को ही प्रेस नोट में बड़ा बता कर पुलिस अपने होने का एहसास कराती रही है। बड़े तस्कर, हेंडलर, विक्रेता बचे रहे हैं। स्मैक की लत छोटी चोरियों में इजाफा कर रही है। मुख्यालय समेत जिले भर के कबाड़ियों पर स्मैकचियों से चोरी का सामान खरीदने के आरोप कमाई की जगह कार्यवाही की वजह नहीं बन पाए हैं।

ऐसे वाकये भी सामने आते रहे हैं जो पुलिस पर सवाल खड़े करते हैं। तीन साल पहले मृगवास में एक दरोगा जी तस्कर को पकड़ कर बैठाए रहे, कार्यवाही नहीं की, कहानी लीक हुई तो निलंबित किए गए थे। इसी तरह रूठियाई चौकी की निगरानी में अवैध शराब से भरा ट्रक रात भर खड़ा रहा, महकमे की ही फूट से पत्रकारों तक उसकी वीडियो पहुंच गई। तो अगले दिन उसे जंजाली पर पकड़ना पड़ा। इसी तरह दो करोड़ के कमर्शियल क्वांटिटी से भरे गांजे के ट्रक में सिर्फ ड्राइवर का ही मुल्जिम बनना सवाल खड़े कर गया। ऐसे ही भानपुरा गांव उपलब्धि का एक ऐसा पिटारा बना हुआ है जो नशे के खिलाफ अभियान को हर बार सफल बनाता है। यहां हर दबिश पर हजारों लीटर अवैध शराब, लहान आदि मिल जाती है। कभी पुलिस यहां से निराश नहीं लौटी और भानपुरा ने भी शराब उगलना बंद नही किया। उम्मीद है कि नशा तस्करों पर कार्यवाही सिर्फ खबरों में वाहवाही लूटने तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि उनके मेरुदंड को तोड़ने के उद्देश्य से की जाएगी। 

इसके अलावा चाय, कॉफी, सुट्टा बार या केबिन सेंटर भी एक समस्या और व्यभिचार व अपराध को बढ़ावा देने की वजह बन रहे हैं। जिला मुख्यालय पर ऐसे अनेक सेंटर संचालित हैं जिनमें छोटे छोटे केबिन प्रति घंटा के किराए पर उपलब्ध हैं। ये केबिन शहर की संस्कृति और माहौल को प्रदूषित कर स्कूल कॉलेज के लड़के लड़कियों के मिलन स्थल और अश्लीलता के अड्डों के रूप में उभरे हैं। फ्लेवर्ड स्मोकिंग की आड़ में नशा भी इनमें बंटने की सूचना आती रहती हैं। इनके लाइसेंस, क्लोज स्पेस देने से संचालकों द्वारा विजिटर रजिस्टर, उपयोग के प्रकार के अनुसार आवश्यक अनुमतियां भी इन पर नहीं हैं। उम्मीद है कि इस पर भी नज़रें इनायत की जाएंगी।

इसी तरह जनता की नज़र में दुर्दांत अपराधी और कुछेक पुलिस वालों के यार धरनावदा थाना क्षेत्र में बसे पारदी कौम के बदमाशों द्वारा किए जाने वाले अपराध, और उन्हें पकड़ने के लिए अन्य राज्यों की पुलिस द्वारा दर्ज कराई जाने वाली आमद जिले की साख पर बट्टा लगाती रहीं हैं। पारदियों द्वारा दिल्ली में डाली गई डकैती ज्यादा ही शर्मसार करने वाली है। क्योंकि इस केस में दिल्ली में पकड़े गए बदमाश ने एक पुलिस वाले का नाम लेकर महकमे की साख पर बट्टा लगा दिया।

पारदियों के विरुद्ध होने वाली लूट, डकैती की एफआईआर और विवेचनाएं भी सवालों में रही हैं। इनमें आहत फरियादी को चोरी का माल न मिलना और आरोपियों का बरी हो जाना कार्यवाही पर संदेह पैदा करता रहा है। उम्मीद है कि पारदी समस्या पर भी कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे और पूरा ध्यान इधर उधर के आरोपियों को पकड़कर उपलब्धि दर्शाने के स्थान पर चोरी गए माल की शत प्रतिशत रिकवरी पर दिया जाएगा।

अव्यवस्थित यातायात और अतिक्रमण ने भी आमजन को तकलीफ दे रखी है। शहर में कई दुकानदार अपनी दुकान के सामने की सरकारी जगह और फुटपाथ को रेहड़ी वालों को किराए पर देकर अतिक्रमण को बढ़ावा दे रहे हैं। फल सब्जी के ठेले मंडी की सीमाओं से बाहर लगते हैं। ऑटो वाले भी "सारी सड़कें ऑटोवालों की" वाले अंदाज में यातायात को बिगाड़ चुके हैं। यातायात पुलिस का ध्यान सुव्यवस्थित यातायात छोड़कर अन्य सारी "व्यवस्थाओं" पर देखा जाता है। जनता को उम्मीद है कि इस दिशा में भी कोई सुधार देखने मिलेगा।

जमीन माफिया ओर भूमाफिया भी भविष्य में जिले को अपराध पर ले जाने की ओर अग्रसर है। ये नया काम पिछले कुछ समय में देखने में आया है। विवादित या कमजोरों की जमीन पर कब्जा कर उसे औने पौने दाम पर खरीदने का बकायदा एक धंधा शुरू हुआ है। इसे फाइनेंसर, अपराधी, दलाल मिलकर अंजाम देते हैं। भला आदमी विवाद से डरकर लुट जाता है। क्योंकि उसे विश्वास है कि जमीन माफिया द्वारा बिछाई जा चुकी बिछात के चलते उसे कहीं न्याय नहीं मिलेगा। इस नई बीमारी को शुरुआत में ही मिटाना जरूरी है। उम्मीद है कि ऐसे तत्वों से पीड़ित व्यक्ति की सुनवाई होगी।

तीन सालों में अपराधियों का निरंकुश होना नागरिकों को सतर्क करने वाली आहट है। गुना में पिछले तीन चार सालों में पुलिस की एक रिवर्स इमेज बनीं है। यहां सभ्य नागरिक पुलिस से डरता है और अपराधिक तत्व बेखौफ अपराध करते हैं। पिछले कुछ समय में यहां दिन दहाड़े प्रोफेशनल स्टाइल में मर्डर और घात लगाकर गैंग द्वारा मारपीट की घटनाएं और फायरिंग भी बच्चों के खेल की तरह हुई हैं। इसकी जड़ में अपराधियों के विरुद्ध कार्यवाही का हवा महल खड़ा करना एक बड़ी वजह है। ये हवा महल कोर्ट में धराशाई हो जाता है। कोई ठोस और परिणाम मूलक कार्यवाही अपराधियों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए नहीं की जाती। परिणाम स्वरूप जेल से छूटे हत्या, हत्या के प्रयास के मुलजिल रहे असामाजिक तत्व अपने अपराधों को डिग्री की तरह पेश कर अवैध धंधों से खुद कमाई करने और भ्रष्टों को कमाई कराने का जरिया बने हुए हैं। संरक्षण मिलने पर जुआ, सट्टे के फड़ ये ही जमा रहे हैं। इस पर पुलिस का रवैया कितना बदलेगा इसकी भी जनता में उत्सुकता है। 

इनके अलावा जो समस्या हाईवे पर स्थित हर जिले में है, वो यहां भी हैं। जैसे अवैध शराब और गौवंश के अवैध परिवहन को अनुकूल माहौल और क्लियर रूट मुहैया कराने के बदले में मोटी रकम लेने वाला सिंडिकेट। हालांकि इससे गुना के आम नागरिक को ज्यादा लेना देना कभी नही रहा। फिर भी सिस्टम तो जमा हुआ है ही। 

विदित ही है कि गुना जिले के एसपी की निर्लिप्त कुर्सी ने 65 सालों में अलग अलग मिजाज के दर्जनों अधिकारी देखे भी हैं और सहे भी हैं। इस कुर्सी पर आईपीएस मैथलीशरण गुप्त, योगेश चौधरी, निमिष अग्रवाल, राहुल कुमार लोढ़ा जैसे ईमानदार और जनता में पुलिस के प्रति विश्वास बढ़ाने वाले अफसर भी सुशोभित हुए हैं और अपनी अलग तरह की कार्यशैली से सुर्खियों में रहे सुरेश शर्मा, विवेक शर्मा, राजेश सिंह और राजीव कुमार मिश्रा जैसे दिग्गज भी इस पर विराजे हैं।

गुना की गुणी जनता की विशेषता यह है कि ये मौन भले ही रहती है, लेकिन अंधी, बहरी और विवेकशून्य कतई नहीं है। अधिकारियों के आने से पहले ही उनकी पुरानी ख्याति से रूबरू हो जाती है। इसने अच्छे अधिकारियों को सिर आंखों पर बैठाया है तो भ्रष्ट और बनावटी ईमानदारों को राजनैतिक संरक्षण के बाद भी यथायोग्य प्रतिफल दिया है। ईमानदार यहां से शानदार और यादगार विदाई लेकर गए हैं तो बनावटी और भ्रष्ट बे-आबरू और लानत के साथ रुखसत हुए हैं।

किसी ने कहा है कि :-
हक़ीक़त छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से 
कि ख़ुशबू आ नहीं सकती कभी काग़ज़ के फूलों से,,,

नवागत एसपी से जिले के आम नागरिक उम्मीद करते हैं कि वो बदमाशों को संरक्षण देने वाले नेताओं के अनुचित दबाव को दरकिनार कर जन भावनाओं के अनुरूप पुलिसिंग को उस मुकाम तक पहुंचाएंगे जिससे शिवराज सरकार की छवि उज्ज्वल होगी। आमजन में पुलिस के प्रति विश्वास बढ़ेगा, अवैध धंधों पर अंकुश लगेगा, अपराधी कानून से थर्राएंगे और महकमे के भ्रष्ट और गोरख धंधों में लिप्त कर्मियों पर भी कार्यवाही होगी।

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