निजीकरण के विरोध में उतरे विद्युत निगमों के कर्मचारी

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने निजीकरण के इस कदम को कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए विनाशकारी बताया है। समिति ने सरकार से इस प्रस्ताव को तुरंत रद्द करने की मांग की है।

Jan 5, 2025 - 14:00
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निजीकरण के विरोध में उतरे विद्युत निगमों के कर्मचारी

प्रयागराज (आरएनआई) उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण का प्रस्ताव कर्मचारियों की सेवा शर्तों और सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करता है। राज्य के दो प्रमुख निगमों—पूर्वांचल डिस्कॉम और दक्षिणांचल डिस्कॉम—में लाखों संविदा और नियमित कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनका भविष्य निजीकरण के बाद अनिश्चित हो जाएगा।

पूर्वांचल डिस्कॉम में कुल 44,330 पद हैं, जिनमें 27,000 संविदा कर्मी और 17,330 नियमित कर्मचारी शामिल हैं। निजीकरण के बाद इन सभी पदों के समाप्त होने की संभावना है। संविदा कर्मियों की सेवाएं प्रबंधन के निजी हाथों में जाते ही खत्म हो सकती हैं, जबकि नियमित कर्मचारी निजी कंपनियों के अधीन रहेंगे, जिनका रुख हमेशा अनिश्चित रहा है। दक्षिणांचल डिस्कॉम में कुल 33,161 पद हैं, जिनमें 23,000 संविदा कर्मी और 10,161 नियमित कर्मचारी हैं। यहां भी स्थिति पूर्वांचल डिस्कॉम जैसी ही रहने की संभावना है।

कॉमन कैडर के अभियंता और अवर अभियंता भी इस बदलाव से प्रभावित होंगे। पूर्वांचल डिस्कॉम में इनकी संख्या 2,094 है, जबकि दक्षिणांचल में 1,579। इन्हें अन्य विभागों में स्थानांतरित किया जा सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर पदावनति और छंटनी होगी।

निजीकरण के अन्य प्रभाव भी चिंताजनक हैं। वर्तमान में कर्मचारियों को रियायती दर पर बिजली और मेडिकल रीइम्बर्समेंट की सुविधा मिलती है। निजीकरण के बाद यह सुविधाएं समाप्त हो जाएंगी। ग्रेटर नोएडा जैसे उदाहरण स्पष्ट करते हैं कि निजी कंपनियां कर्मचारियों को यह लाभ नहीं देतीं।

वेतन पुनरीक्षण और महंगाई भत्ता जैसे लाभ भी खत्म हो जाएंगे। सरकारी क्षेत्र में महंगाई भत्ते में साल में दो बार वृद्धि होती है, और समयबद्ध वेतनमान का लाभ मिलता है। निजीकरण के बाद केवल पैकेज आधारित वेतन प्रणाली लागू होगी, जो कर्मचारियों के लिए नुकसानदेह साबित होगी।

देश के अन्य हिस्सों जैसे दिल्ली और उड़ीसा में निजीकरण के अनुभव बताते हैं कि वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना) के नाम पर बड़े पैमाने पर छंटनी की गई। मृतक आश्रित सेवा योजना भी निजी क्षेत्र में लागू नहीं होती, जिससे जोखिम भरे काम करने वाले कर्मचारियों के परिवार असुरक्षित रहेंगे।

सीपीएफ और पेंशन फंड की सुरक्षा भी निजीकरण के बाद संदिग्ध हो जाएगी। पूर्व में सरकारी क्षेत्र में सीपीएफ के घोटाले सामने आ चुके हैं। निजीकरण के बाद इन फंड्स की सुरक्षा को लेकर और भी अनिश्चितता बढ़ जाएगी।

निजीकरण का यह कदम राज्य के 27,441 नियमित और लगभग 50,000 संविदा कर्मचारियों को सीधा प्रभावित करेगा। यह केवल नौकरी छिनने का मामला नहीं, बल्कि उनकी सभी सुरक्षा सुविधाओं और लाभों को भी समाप्त करने जैसा है।

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने निजीकरण के इस कदम को कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए विनाशकारी बताया है। समिति ने सरकार से इस प्रस्ताव को तुरंत रद्द करने की मांग की है।

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