नवरात्रि अष्टमी-नवमी पर शुभ योग में करें कन्या पूजन
महा अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन करते हुए मां की विदाई होती है। इस साल नवरात्रि पर अष्टमी और नवमी तिथि को लेकर काफी कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है।
नई दिल्ली (आरएनआई) शारदीय नवरात्रि नवमी तिथि पर माता दुर्गा के आखिरी स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना के साथ समाप्त होती है। नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि-विधान के साथ पूजा करने का विधान होता है और महा अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन करते हुए मां की विदाई होती है। इस साल नवरात्रि पर अष्टमी और नवमी तिथि को लेकर काफी कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। इस बार शारदीय नवरात्रि पर दो तिथियां एक ही दिन पड़ने की वजह से अष्टमी और नवमी तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति बन गई है। लोगों के मन में यह भ्रम बना है कि महा अष्टमी और नवमी तिथि 11 अक्तूबर को मनाएं या फिर 12 अक्तूबर को। शास्त्रों में नवरात्रि पर अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन करने का विशेष महत्व होता है। आइए जानते है कन्या पूजन की विधि और मुहूर्त।
पंचांग की गणना के मुताबिक आश्विन माह की अष्टमी तिथि की शुरुआत 10 अक्तूबर को हो गई है, जिसका समापन 11 अक्तूबर को दोपहर 12 बजकर 7 मिनट पर होगा। इस तरह से अगर उदया तिथि के आधार पर बात करें तो अष्टमी तिथि 11 अक्तूबर को ही मनाई जाएगी। जो लोग अष्टमी तिथि पर कन्या पूजन करते हैं वे लोग 11 अक्तूबर को दोपहर अष्टमी तिथि के समापन के पहले तक पूजा संपन्न कर व्रत का पारण कर सकते हैं।
नवमी तिथि पर नवरात्रि का समापन हो जाता है। पंचांग के अनुसार आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरुआत 11 अक्तूबर को 12 बजकर 7 मिनट पर हो रही है, जो अगले दिन यानी 12 अक्तूबर को सुबह 10 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार नवमी तिथि 11 अक्तूबर को ही पड़ रही है, ऐसे में 11 अक्तूबर को नवमी पर कन्या पूजन करें।
नवरात्रि पर कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। महाष्टमी पर कन्या पूजन के लिए 11 अक्तूबर को सुबह 07 बजकर 47 मिनट से लेकर 10 बजकर 41 मिनट तक का मुहूर्त है, फिर इसके बाद दोपहर 12 बजकर 08 मिनट से लेकर 01 बजकर 35 मिनट पर कन्या पूजन कर सकते हैं।
नवरात्रि में व्रत रखने के बाद कन्या पूजन करने से माता रानी प्रसन्न होती है। सुख-समृद्धि, धन-संपदा का आशीर्वाद देती है। इसके साथ ही कन्या पूजन करने से कुंडली में नौ ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है।कन्या पूजन करने से माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
मान्यता है कि बिना कन्या पूजन के नवरात्रि का पूरा फल नहीं मिलता है। कन्या पूजन करने से परिवार के सभी सदस्यों के बीच प्रेम भाव बना रहता है और सभी सदस्यों की तरक्की होती है।
2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्या की पूजा करने से व्यक्ति को अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। जैसे कुमारी की पूजा करने से आयु और बल की वृद्धि होती है।
त्रिमूर्ति की पूजा करने से धन और वंश वृद्धि, कल्याणी की पूजा से राजसुख, विद्या, विजय की प्राप्ति होती है।
कालिका की पूजा से सभी संकट दूर होते हैं और चंडिका की पूजा से ऐश्वर्य व धन की प्राप्ति होती है।
शांभवी की पूजा से विवाद खत्म होते हैं और दुर्गा की पूजा करने से सफलता मिलती है।
सुभद्रा की पूजा से रोग नाश होते हैं और रोहिणी की पूजा से सभी मनोरथ पूरे होते हैं।
कन्या पूजन के लिए कुल 2 से 10 साल की नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है। इन कन्याओं को नौ देवियों का प्रतीक माना जाता है। पहले कन्याओं को सम्मानपूर्वक आसन पर बैठाया जाता है और उनके पैरों को धोया जाता है। इसके बाद उन्हें चंदन, कुमकुम, और पुष्प से पूजित किया जाता है। भोजन में उन्हें पूरी, हलवा, चना और अन्य विशेष पकवान दिए जाते हैं। पूजा के बाद कन्याओं को वस्त्र, आभूषण, या धन देकर विदा किया जाता है।
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