"न खाता वही, अफसर जो बोलें वो ही सही"
7 साल की सीआर जमा कराने का फरमान, शिक्षक हो रहे परेशान
गुना। इन दिनों जिले भर के शिक्षक हैरान परेशान हैं। एक फरमान ने उनका चैन छीन लिया है। फरमान आया है कि सभी शिक्षक अपने सेवाकाल के सत्र 2015 - 2016 से अभी तक के 7 सालों की "कांफिडेंशियल रिपोर्ट" (सीआर) जिसे हिंदी में गोपनीय चत्रितावली कहा जाता है, वह एक निर्धारित प्रोफार्मा में 7 प्रतियों में भरकर जमा करें। बताया जा रहा है कि पदोन्नति, क्रमोन्नति और नवीन वेतनमान का लाभ दिए जाने के लिए शिक्षकों का सर्विस रिकॉर्ड अपडेट किया जाना है, इसके लिए यह कवायद कराई जा रही है।
इस कवायद से विभाग की कार्यप्रणाली, अनुशासन लागू करने के तरीके और अधिकारियों की जिम्मेदारी पर सवालिया निशान लग गया है। दरअसल, किसी भी अधिकारी कर्मचारी की सीआर उसके आचरण का दस्तावेज होता है। शासकीय सेवा के नियमों के मुताबिक प्रत्येक शासकीय सेवक की सीआर हर साल नियमित रूप से लिखी जाना अनिवार्य है। यह जिम्मेदारी वरिष्ठ और सुपरविजन अधिकारियों की होती है, न कि कर्मचारी की।
शिक्षकों से मिली जानकारी से लगता है कि सबको शिक्षा बांटने वाले विभाग ने इस महत्वपूर्ण काम को मजाक बना दिया है। विभाग ने यह जिम्मेदारी उन शिक्षकों पर ही डाल दी है जिनकी सीआर लिखी जाना है। इसके लिए दो पेज का एक प्रोफार्मा बाजार में प्रिंटिंग प्रेस और स्टेशनरी की दुकानों पर बिक रहा है। इसमें कुल पांच भागों में जानकारी भरी जाना है पहले दो भाग शिक्षक को खुद भरना है। तीसरा भाग रिपोर्टिंग ऑफिसर द्वारा भरा जाएगा। चौथा भाग समीक्षक अधिकारी भरेगा और पांचवा भाग स्वीकृतकर्ता अधिकारी भरेगा।
सवाल उठ रहा है कि चालू सत्र को छोड़ दिया जाए तो क्या पिछले 6 सालों में शिक्षकों की सीआर किसी ने भी नही भरी? यदि भरी गई तो फिर शिक्षक की सर्विस बुक में इसका लेख होगा और सर्विस बुक संबंधित शिक्षक के सुपरविजन अधिकारी के कार्यालय के रिकॉर्ड में ही होगी। ऐसे में पिछले 7 सालों की सीआर मांगना कई सवाल खड़े कर रहा है। सवाल है कि कई प्राचार्य और डीडीओ (drawing distribution officer) इस दौरान सेवानिवृत हो चुके हैं, या बाहर जा चुके हैं तो क्या ऐसे में उनके स्थान पर बाद में पदस्थ हुए अधिकारी पिछले अधिकारी के कार्यकाल की सीआर भरेंगे?
कई शिक्षक व अधिकारी स्थानांतरण होकर अन्य संस्थाओं और जिलों में नौकरी कर रहे हैं ऐसे में उनकी या उनके द्वारा सीआर कैसे लिखी होगी? सवाल ये भी है कि यदि सभी की सर्विस बुक में सीआर हर साल अंकित की जा रही है तो फिर नए सिरे से नए प्रोफार्मा में सात साल की सीआर मांगने का औचित्य क्या है? एक सवाल ये भी है कि जिन अधिकारियों ने समय पर अपने अधीनस्थों की सीआर नहीं भरी उन पर क्या कार्यवाही होगी? क्योंकि ये काम तो अधिकारियों का था जिसे अब शिक्षकों पर डाला जा रहा है। साथ ही जब इस कवायद में "गोपनीयता" जैसा क्या रहेगा? इस कवायद में सबसे ज्यादा परेशान महिला शिक्षक हो रही हैं।
विभाग के इस फरमान का शिक्षकों ने ही विरोध करना भी शुरू कर दिया है। राज्य शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष Damodar Dhakad Panchora इस कवायद को गलत बता रहे हैं। इसी तरह राज्य शिक्षक संघ के प्रांत उपाध्यक्ष Narendra Bhargava का कहना है कि "शिक्षा विभाग में इस समय यह मुद्दा सबसे ऊपर है। प्रत्येक वर्ष गोपनीय चरित्रावली लिखने का नियम है। एक साथ 7 वर्ष की गोपीनीय चरित्रावली मांगना कहां तक उचित है?"
बहरहाल, गुना जिले में सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां लोगों की समस्या को समझकर सकारात्मक ढंग से उठाने वाला एक भी ऐसा चेहरा नज़र नहीं आता जो जानबूझकर खड़ी की जाने वाली परेशानियों को लेकर अफसरों से सवाल कर सके, और अफसर भी उनकी अनदेखी न कर पाएं। इसलिए गुना में वह जुमला फिट बैठता है कि "न खाता न वही, अफसर जो बोलें वो ही सही।"
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