दो दशक में दोगुनी गति से गर्म हो रहा महासागरीय जल, ग्रीनहाउस गैसें जिम्मेदार
शोधकर्ताओं का कहना है कि मानव गतिविधियों के कारण वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि हवा, भूमि और महासागरों को गर्म करती है और ध्रुवीय बर्फ को पिघलाती है। वायुमंडल से बाहर नहीं निकलने वाली इस गर्मी का करीब 90 फीसदी हिस्सा महासागर सोखते हैं।
नई दिल्ली (आरएनआई) दक्षिणी अंटार्कटिका महासागर का पानी पिछले दो दशकों में मानव गतिविधि के कारण तेजी से गर्मी सोख रहा है। यह अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागर से कहीं अधिक है। शोध के मुताबिक 1990 के दशक के बाद से महासागरों के गर्म होने में नाटकीय रूप से तेजी आई है। 1990-2000 की तुलना में 2010-2020 के दौरान महासागरीय जल के गर्म होने की गति दोगुनी हो गई है।
ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में किया गया अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसके मुताबिक, समुद्र के तापमान में वृद्धि का क्षेत्रवार वितरण एक समान नहीं है। शोधकर्ताओं का कहना है कि मानव गतिविधियों के कारण वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि हवा, भूमि और महासागरों को गर्म करती है और ध्रुवीय बर्फ को पिघलाती है। वायुमंडल से बाहर नहीं निकलने वाली इस गर्मी का करीब 90 फीसदी हिस्सा महासागर सोखते हैं।
पारिस्थितिक तंत्र पर बुरा असर 2023 में महासागरों का तापमान अब तक का सबसे ज्यादा रहा है। इससे समुद्री जलस्तर भी बढ़ रहा है। पृथ्वी के पूरे पारिस्थितिक तंत्र पर इस गर्मी की वजह से तनाव महसूस किया जा सकता है, जो चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता के रूप में व्यक्त हो रहा है।
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