'दुबई कोर्ट का बच्चे पर यात्रा प्रतिबंध लगाना मानवाधिकार का उल्लंघन', शीर्ष अदालत ने आदेश की आलोचना की
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने बच्ची के पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर नोटिस जारी किया है। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवाद में अदालत की ओर से यात्रा प्रतिबंध लगाना वस्तुतः घर में नजरबंद करने के समान है।

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद मामले में एक नाबालिग बच्चे पर यात्रा प्रतिबंध लगाने संबंधी दुबई की एक कोर्ट के आदेश की आलोचना की है। शीर्ष अदालत ने इसे अत्याचारी और मानवाधिकारों का उल्लंघन करार दिया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने बच्ची के पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर नोटिस जारी किया है। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवाद में अदालत की ओर से यात्रा प्रतिबंध लगाना वस्तुतः घर में नजरबंद करने के समान है। पिता घाना के नागरिक हैं और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के दुबई में रहते हैं। पीठ ने 17 अप्रैल को आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को अन्य राहतों के साथ मुलाकात का अधिकार देने के सीमित उद्देश्य के लिए नोटिस जारी किया जाए और इसका जवाब 28 अप्रैल तक दिया जाए। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में पिता ने अपने बेटे की कस्टडी मांगी है। इसमें आरोप लगाया कि बंगलूरू में रहने वाली उसकी पूर्व पत्नी उसकी जानकारी के बिना और दुबई की एक अदालत के आदेश के बावजूद दुबई स्थित घर से बच्चे को ले गई। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इसके बाद दुबई कोर्ट ने बेटे पर यात्रा करने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था।
तथ्यों पर गौर करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील निखिल गोयल से कहा कि आरोप लगाया गया है कि उसे (पत्नी को) वस्तुत: बंधक बनाकर रखा गया है। आपने अदालत से एक ‘अत्याचारी’ आदेश हासिल किया जो मानवाधिकारों का पूर्ण उल्लंघन है। वैवाहिक विवाद में एक अदालत बच्चे पर यात्रा प्रतिबंध कैसे लगा सकती है। पीठ ने कहा कि मानवाधिकारों में विश्वास रखने वाली कोई भी अदालत ऐसा कोई आदेश पारित नहीं करना चाहेगी, क्योंकि यह किसी को दोषी ठहराए बिना ही घर में नजरबंद करने के समान होगा। शीर्ष अदालत ने तलाक का आदेश पारित करने में दुबल परिवार अदालत के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया और कहा कि पति और पत्नी दोनों ईसाई हैं और शरिया कानून से बंधे नहीं हैं। गोयल ने दलील दी कि दोनों पक्षों की शादी दुबई में हुई थी और वे वहीं रह रहे थे।
पत्नी ने फरार होने या अदालत के आदेशों की अवहेलना करने के आरोपों से इन्कार किया और कहा कि उसके अलग हुए पति द्वारा उसे दिए गए शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार के कारण पहले मस्कट और फिर भारत वापस लौटना पड़ा। इसका बच्चे पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। उन्होंने तर्क दिया कि उनके अलग हुए पति ने उनके बेटे पर गैरकानूनी यात्रा प्रतिबंध लगाया है। उन्होंने कहा कि पति को बच्चे की कस्टडी देने का दुबई कोर्ट का फैसला शरिया कानून पर आधारित है, जो दोनों पक्षों पर लागू नहीं होता, क्योंकि वे ईसाई थे और विदेशी विवाह अधिनियम के तहत विवाहित थे।
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