दुनिया का सबसे बड़ा सोने का सिक्का, जिसे मुगल बादशाह जहांगीर ने बनवाया
आगरा की टकसाल में 1000 तोले के दो सोने के सिक्के ढले थे। इन सिक्कों को मुगल बादशाह जहांगीर ने शुद्ध सोने से बनवाया था। जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुज्क-ए-जहांगीरी में इनका जिक्र किया है।
आगरा, (आरएनआई) अपने इतिहास के पन्ने मुगल साम्राज्य के स्वर्णिम युग से भरे पड़े हैं। मुगल बादशाह जहांगीर ने आगरा में 1000 तोले के शुद्ध सोने से दो सिक्के बनवाए थे। जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुज्क-ए-जहांगीरी में लिखा है कि उन्होंने 1000 मुहर का सिक्का ईरान के राजदूत जमील बेग को तोहफे में दिया था। 1980 दशक के अंतिम दिनों में स्विटजरलैंड में नीलामी के लिए रखे गए थे। इस सिक्के को नीलामी के लिए रखने वाला मुगलों का पुराना जागीरदार और हैदराबाद का अंतिम निजाम मुक्करम शाह था जो दीवालिया हो गया था।
सोने के 12 किलो के इस सिक्के से बड़ा सिक्का कभी बना ही नहीं था। इस सिक्के का व्यास 21 सेमी है और इसे डिजाइन करने में काफी कारीगर लगे थे। सिक्के के बीच में बादशाह का नाम और खिताब अंकित है। इस पर लिखा है ‘बा-हुक्म शाह जहांगीर याफ़्त सद ज़ेवर, बनाम नूरजहां बादशाह बेगम ज़र’।
वर्ष 1987 तक माना जाता रहा था कि ये सिक्का अब मौजूद नहीं है, लेकिन जब स्विटजरलैंड से नीलामी की खबर आई तो लोगों में उत्सुकता पैदा हो गई।
दस्तावेज के अनुसार एक हजार मूल्य का सोने का सिक्का जहांगीर ने नवाब गाजीउद्दीन खां सिद्दीकी बहादुर, फिरोज जंग प्रथम को तोहफे में दिया था। इनके पुत्र निजाम-उल-मुल्क ने आसफशाही राजवंश की स्थापना की थी। दो शताब्दियों से ज्यादा समय तक ये सिक्का निजाम की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के हाथों में जाता रहा और आखिर में ये मुकर्रम शाह के पास पहुंच गया जो 8वें निजाम थे। सिक्के की नीलामी हुई और इसे एक अज्ञात व्यक्ति ने एक करोड़ डालर में खरीद लिया।
1000 वजनी सोने के सिक्के की कीमत ताजा भाव से करीब 7.25 करोड़ रुपये है। सिक्के की एंटीक वैल्यू उसे बेशकीमती बना देती है। 80 के दशक में भनक लगी कि जाह इस सिक्के की स्विस बैंक में नीलामी करवाने वाले हैं, मगर सीबीआई सिक्का नहीं ढूंढ सकी। चार दशक तक इस सिक्के की खोज बेनतीजा साबित हुई। अब केंद्र सरकार ने फिर इसका पता लगाने की कवायद शुरू की है। लगभग 400 साल पुराने इस सिक्के के साथ भारत का इतिहास जुड़ा हुआ है। भारत सरकार के दस्तावेजों में यह सिक्का ‘मुहर’ के रूप में दर्ज है। 1970 में निजाम के खजाने से यह सिक्का गायब हो गया। तब से इसका कुछ पता नहीं।
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