दिग्विजय सिंह ने कहा ‘मैं हिंदू हूं, धार्मिक हूं और ये मेरा नितांत निजी विषय है, वसुधैव कुटुंबकम् की भावना ही हमारे देश की असली पहचान है’
भोपाल (आरएनआई) पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा है कि ‘मैं हिंदू हूं, मैं धार्मिक हूं ये मेरा नितांत निजी विषय है। अपने धर्म को मानने का तरीका किसी की परेशानी का सबब नही बनना चाहिए। वसुधैव कुटुंबकम् की भावना ही हमारे देश की असली पहचान है।’ कांग्रेस ने राम मंदिर उद्घाटन में जाने का न्योता अस्वीकार कर दिया है जिसके बाद से बीजेपी लगातार कांग्रेसी नेताओं पर हमलावर है और उन्हें रामविरोधी और सनातन धर्म विरोध बता रही है। इन्हीं आरोपो के जवाब में दिग्विजय सिंह ने ये बात कही है।
दिग्विजय सिंह ने कहा ‘मेरा परिवार बहुत धार्मिक प्रवृत्ति का रहा है’
वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि ‘मैं उस परिवार से हूं जो बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का रहा है। मैं ऐसा नही मानता हूं कि सिर्फ वही मेरी एक पहचान है। मेरे परिवार में हमेशा से धार्मिक प्रवृत्ति के लोग रहे हैं और आज भी हमारे गृहस्थान में कई मंदिर हैं। राघोगढ़ का नाम राघव जी के नाम पर है। जगदीश जी का, माता जी का, गणेश जी का, हनुमान जी का, कल्याण दास जी का, लड्ड गोपाल जी के मंदिर हैं। मेरी मां बहुत धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। मेरे पिता उतने नहीं थे लेकिन वे अपने धर्म कर्म से उनकी विचारधारा ऐसी थी कि मैं धार्मिक हूं लेकिन ये धार्मिकता मुझ बताने की आवश्यता नहीं है। वे महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे। 1940-41 में गांधी जी और कांग्रेस की विचारधारा से प्रभावित होकर कांग्रेस जॉइन कर ली। और हमारे मंदिर में सन 1941 से ही दलितों का प्रवेश करा दिया गया था। उस समय कोई सोच भी नहीं सकता था कि किसी मंदिर में दलितों के प्रवेश को स्वीकृति मिल जाएंगी।’
जनसंघ जॉइन करने का प्रस्ताव मिला था
उन्होने कहा कि मेरे परिवार में धार्मिकता रही है। स्वामी रामानंद जी के 12 शिष्यों में एक शिष्य प्रतार राव जी मेरे पूर्वज थे। पूरे तरीके से हमारे घर में विचारधारा रही कि सारे धर्मों का सम्मान किया जाए। दिग्विजय सिंह ने कहा कि हमारे राघव जी के मंदिर में जो द्वार लगे हुए हैं, उनपर उर्दू में लिखा हुआ है। हमारे यहां धर्मों को लेकर कोई फर्क नहीं रहा। उन्होने कहा कि अपने छात्र जीवन में राजनीति को लेकर मेरी कोई रुचि नहीं थी लेकिन पिताजी के निधन के बाद वो राजनीति में आए और निर्विरोध नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गए। उन्होने अपनी राजनीतिक यात्रा के बारे में बताया कि उस समय वहां से कांग्रेस से राजमाता सिंधिया सांसद चुनीं गई थीं। उन्होने 67 में कांग्रेस छोड़ी। इसके बाद वे जनसंघ में शामिल हुईं और मुझे भी जनसंघ में आने को कहा। कई बड़े संघ नेताओं ने मुझसे संपर्क किया लेकिनतब गोविंद नारायण सिंह जी मुख्यमंत्री थे और उन्होने मुझे कहा कि पहले उनके विचार समझो और साथ में गांधी नेहरू को भी पढ़ो।
‘भारत का मूल चरित्र सभी धर्मों का सम्मान करना है’
दिग्विजय सिंह ने कहा कि सारी किताबें पढ़ने के बाद मैंने निर्णय लिया कि मैं जनसंघ में नहीं जा सकता, मैं कांग्रेस में जाऊंगा। उन्होने कहा कि 1970-71 में कांग्रेस में आया और तबसे मैं देख रहा हूं कि ये किस प्रकार कटुता फैलाते हैं हिंदु मुसलमानों के बीच इसलिए कभी इनकी विचारधारा को नहीं स्वीकारा। विश्व में सिर्फ आरएसएस ही नहीं है, विश्व में कई धर्म और संप्रदाय के ऐसे कट्टरपंथी लोग हैं जो अपने धर्म को दूसरे धर्मों को बड़ा बताने के लिए अनेक बातें करते हैं। जहां सत्ता की लड़ाई होती है और जहां धार्मिक युद्ध शुरु हो जाते हैं तो हमेशा से कटुता, वैमन्स्यता, नफरत फैलना स्वाभाविक है। भारत में कभी धार्मिक युद्ध नहीं हुए, सियासी युद्ध हुए। भारत का चरित्र और सनातन धर्म मूल रूप से सभी धर्मों का सम्मान करना ही सिखाता है, यही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।
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