डायबिटीज पर बनने जा रही फिल्म, क्यों नहीं विकसित हो पा रही डायबिटीज की सटीक दबायें?
उषा/मीनाक्षी/मधुबाला
नई दिल्ली (आरएनआई) अनियंत्रित खान पान एवं जीवन शैली से डायबिटीज रोग विश्व के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। इस रोग से औसतन 10 लाख लोग दुनियांभर में मारे जा रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में इस समय 42.2 करोड़ लोग डायबिटीज़ यानी मधुमेह से पीड़ित हैं।बीते चार दशकों में मधुमेह की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या चार गुना बढ़ गई है।भारत में भी करोड़ों लोग इससे पीड़ित हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य केरल एवं गोवा है,शिक्षा के साथ लोगों के जीवन शैली में काफी परिवर्तन आया है।
यह एक ऐसी बीमारी के तौर पर उभरी है,जो बेहद तेज़ी से बच्चों से लेकर युवाओं को अपनी चपेट में ले रही है।दरअसल यह बीमारी तब होती है,जब शरीर के अंदर रक्त में ग्लूकोज या शुगर की मात्रा जमा होने लगती है।
सुप्रसिद्ध वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. गिरिजेश रस्तोगी कहते हैं, कि इस रोग का 5 हज़ार वर्षों से अधिक का इतिहास है। प्राचीन समय में इसे मधुमेह के रूप में जाना जाता था और इसके रोगियों की संख्या बहुत कम होती थी, लेकिन ज्यों ज्यों लोगों के जीवन शैली में बदलाव आया है। खान पान एवं रहन सहन अनियंत्रित हुए हैं,इस रोग का प्रचार प्रसार दुनियांभर में तेजी से हुआ है।
उन्होंने कहा कि इस रोग की वज़ह से इससे लोगों को हार्ट अटैक,अंधापन, किडनी फेल और पैरों के निष्क्रिय होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।यह रोग आजकल कम उम्र के लोगों को भी होने लगा है।
वरिष्ठ पत्रकार एवं सार्क जर्नलिस्ट फोरम के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. समरेन्द्र पाठक कहते हैं कि दुनियां भर में इस बीमारी से करोड़ों लोग पीड़ित हैं। बड़े पैमाने पर यह रोग फैल रहा है,किंतु इसके कारणों एवं बचाव को लेकर जागरूकता का अभाव है। इसकी चपेट में आए आधे से ज़्यादा लोगों को बीमारी के बारे में मालूम नहीं होता है।
उन्होंने कहा कि इस रोग के सटीक इलाज को लेकर दावे तो जरूर किए जा रहे हैं, किन्तु वास्तविकता यह है कि अभी तक इस रोग के लिए सटीक दबा का आविष्कार नहीं हो सका है। इस ओर विश्व समुदाय को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।
दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के प्रो. शशि शेखर प्रसाद सिंह कहते हैं, कि यह एक ऐसा रोग है, जिससे भारत सहित दुनियाभर के लोग बड़े पैमाने पर ग्रस्त हैं, लेकिन इसका उपचार अबतक क्यों नहीं निकला?क्या दुनियाभर में दवा जगत की कंपनियों का व्यापारिक हित इसके अंतिम उपचार में रुकावट है?
उन्होंने यह भी कहा कि विश्वस्तर पर स्वास्थ्य उद्योग के ऐसे आर्थिक हित जुड़े है, जो विकसित राष्ट्रों के व्यावसायिक हितों के लिए पहले विकासशील देशों में अलग अलग रोगों की भयावहता का प्रचार करते हैं,और फिर व्यापार को अंजाम देते हैं ।
सुप्रसिद्ध भौतिक शास्त्री एवं फिल्म निर्माता प्रो.योगेश कुमार कहते हैँ,कि जब हमलोग खाना खाते हैं तो हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट तोड़कर ग्लूकोज़ में बदलता है।उन्होंने कहा कि पैंक्रियाज़ से इंसुलिन नामक हार्मोन निकलता है, जिसकी मदद से हमारे शरीर की कोशिकाएं शुगर को सोख कर ऊर्जा बनाती है।
प्रो.कुमार ने कहा कि जब हमारे शरीर में इंसुलिन का बनना कम हो जाता है या वह ठीक से काम नहीं करता है, तो कोशिकाएं ख़ून में मौजूद शुगर की मात्रा को सोखने में असमर्थ हो जाती हैं।ये स्थिति डायबिटीज़ को जन्म देती है।
एक सवाल के जवाब में फिल्म निर्माता प्रो.कुमार ने कहा कि यह बात सही है, कि इस रोग को लेकर बड़ा व्यापार हो रहा है, जिसमें सभी तरह के माफिया सक्रिय हैं। हमारी आने वाली फिल्म में इन तमाम चीजों का समावेश होगा। शूटिंग अगले माह शुरू होगी।एल.एस।
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