ज्योतिष में अष्टकवर्ग क्या है जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से
ज्योतिष का क्षेत्र अपने आप में एक विस्तृत क्षेत्र है। ज्योतिष गणनाओ की पूछ राज घरानो से ले कर सांसदों के घरो में होती है , न केवल माध्यम वर्ग परन्तु हर वर्ग का व्यक्ति अपनी जन्मपत्रिका को जानने में उत्सुक रहता है। ज्योतिर्विदों एवं विद्वानों में कई विधियां निकाली हैं, जिससे कि सही एवं प्रामाणिक फलकथन किया जा सके। फलकथन के लिए मुख्यरूप से तीन विधियां प्रचलित हैं-१ .जन्म कुण्डली द्वारा, २ . चन्द्र कुण्डली द्वारा, ३ . नवांश कुण्डली द्वारा ।
जन्म कुण्डली और शरीर
जन्म कुण्डली से शरीर, शारीरिक स्थितियां आदि का विचार किया जाता हैं, जन्म राशि से व्यक्ति की मानसिक स्थितियों का ज्ञान किया जा सकता हैं, एवं नवांश कुण्डली से उसके जीवन की विभन्न समस्याओं का हल जाना जाता हैं।
जन्म राशि द्वारा की गयी गणना स्थूल होती हैं, इसकी सूक्ष्मता के लिए गोचर पद्धति का आश्रय लिया जाता हैं, परंतु गोचर पद्धति भी अपने आप में स्थूल पद्धति हैं। सूक्ष्मातिसूक्ष्म गणनाओ के लिए आवश्यकता पड़ती है अष्टकवर्ग विधि की ।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में मूलरूप से सात ग्रह सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ही माने गए हैं, पर ज्योतिर्विदों ने लग्न को भी उतनी ही मान्यता दी, जितनी सूर्यादि ग्रह को । फलस्वरूप सूर्यादि सातग्रह और लग्न इस प्रकार इन आठों की विवेचना को अष्टकवर्ग की संज्ञा दी ।
इस अष्टकवर्ग में सूर्य कुण्डली को सूर्याष्टक वर्ग, चन्द्रकुण्डली को चन्द्राष्टक वर्ग। मंगल कुण्डली को मंगलाष्टक वर्ग, बुध कुण्डली को बुधाष्टक वर्ग, गुरु कुण्डली गुरु अष्टकवर्ग, शुक्र कुण्डली को शुक्राष्टक वर्ग, शनि कुण्डली को शनिअष्ट वर्ग तथा लग्न कुण्डली को लग्न अष्टक वर्ग कहते हैं। इन आठों अष्टक वर्ग को सार्वाष्टक वर्ग कहते हैं।
सूर्याष्टक वर्ग क्या है ?
सूर्याष्टक वर्ग का अर्थ यह होता हैं कि जन्मकुण्डली में सूर्य की क्या स्थिति है? उसका कितना बल है? और उसका अन्य ग्रहों से क्या सम्बन्ध है।
आयु निर्णय में अष्टक वर्ग पद्धति ही प्रामाणिक मानी गई है। अष्टक वर्ग का उपयोग जीवन की किसी घटना को ज्ञात करने एवं उसका सही-सही काल निर्णय में किया जा सकता है। कई बार जन्मपत्रिका में धनयोग होने पर भी व्यक्ति साधारण या दरिद्रता में होता है। इस गुत्थी को केवल अष्टक वर्ग ही सुलझा सकता है।
इस प्रकार अष्टक वर्ग से प्रत्येक ग्रह की शुभाशुभता एवं उनके बल को, उसके कारकत्व को ज्ञात किया जा सकता है, तथा तदनुरूप फल स्पष्ट किया जा सकता है। अष्टक वर्ग में बिन्द एवं रेखा इन दो प्रतीकों का उपयोग किया जाता है। शुभता के लिए रेखा का उपयोग तथा अशुभता प्रदर्शित करने के लिए बिन्दु का उपयोग किया जाता है कुछ विद्वान इसका विपरीत भी करते है।
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