ज्ञानवापी केस: सुनवाई में पहुंचा बंदर, सीजेएम कोर्ट में टेबल पर बैठा
वाराणसी में जिला जज की कोर्ट में ज्ञानवापी केस की सुनवाई हो रही थी। इसी दौरान एक बंदर सीजेएम कोर्ट में घुसकर टेबल पर बैठ गया। करीब घंटे भर तक सुनवाई चली, इस दौरान यह बंदर सीजेएम कोर्ट में मौजूद रहा। इसके बाद कोर्ट परिसर में केस की कम बंदर की चर्चा ज्यादा हुई।
वाराणसी (आरएनआई) वाराणसी की जिला अदालत में शनिवार को ज्ञानवापी केस की सुनवाई के दौरान कुछ ऐसा हुआ कि 39 साल पुराना राममंदिर से जुड़ा घटनाक्रम याद आ गया। यह घटनाक्रम ही ऐसा था कि लोगों के बीच ज्ञानवापी केस की कम इस घटनाक्रम की चर्चा ज्यादा होने लगी। इस सुनवाई में एक बंदर भी पहुंच गया था। यह बंदर पूरे समय तक कभी सीजेएम कोर्ट में टेबल पर तो कभी जिला जज के कोर्ट परिसर में घूमता रहा। इस बंदर ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और सुनवाई पूरी होने के बाद अपने आप वहां से चला गया। जिसने भी इस बंदर को देखा, हैरान रह गया।
कई लोगों ने इस बंदर की हरकत को अपने मोबाइल फोन के कैमरे में भी कैद किया। वहीं इस घटनाक्रम को देखने के बाद हिन्दू पक्ष के वकील उत्साह से भर गए। कहा कि अयोध्या की तरह अब काशी में भी विजय पताका फहराएगा। शनिवार को ज्ञानवापी केस की जिला जज की कोर्ट में सुनवाई थी। शैलेन्द्र पाठक और लक्ष्मी देवी के फास्ट ट्रैक कोर्ट से ट्रांसफर होकर यह मामला जिला जज की कोर्ट में पहुंचा है। इस मामले में हिन्दू पक्ष के वकील सुधीर त्रिपाठी ने जिला जज संजीव पाण्डेय की अदालत में लिखित प्रार्थनापत्र दिया।
इन दोनों मामले में अब अगली सुनवाई 18 जनवरी को होगी। मामले की सुनवाई चल ही रही थी कि कोर्ट परिसर में एक बंदर की चर्चा होने लगी। यह बंदर कभी जिला जज की अदालत परिसर में तो कभी सीजेएम कोर्ट के अंदर टेबल पर जाकर बैठ जा रहा था। इस दौरान कोर्ट रूम के कर्मचारी फाइलें देखते रहे, लेकिन इस बंदर ने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया और मामले की सुनवाई खत्म होने के बाद बंदर उठकर वहां से चला गया। हिन्दू पक्ष के वकीलों ने बंदर की इस हरकत को अयोध्या के राममंदिर की सुनवाई से जोड़ कर बताया। कहा कि वकील मदन मोहन यादव के मुताबिक ठीक ऐसी ही घटना अयोध्या में हुई तो राम मंदिर का रास्ता क्लियर हुआ।
आज से ठीक 39 साल पहले 1 फरवरी 1986 को अयोध्या में विवादित ढांचे के परिसर को जिला एवं सेशन जज के आदेश पर खोला गया था। अयोध्या के तत्कालीन जिला जज केएम पांडेय ने साल 1991 में छपी अपनी आत्मकथा में उस घटना का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि वह जब ताला खोलने का आदेश लिख रहे थे, उनकी अदालत की छत पर एक काला बंदर पूरे दिन फ्लैग पोस्ट पकड़कर बैठा रहा। जो लोग फैसला सुनने के लिए आए थे, वह बंदर को फल और मूंगफली खिला रहे थे, लेकिन उसने कुछ नहीं खाया। फैसला सुनाने के बाद वह बंदर चला गया। इसके बाद डीएम और एसएसपी उन्हें छोड़ने के लिए घर तक आए. उस समय भी वह बंदर उनके घर के बरामदे में बैठा मिला। उन्होंने लिखा है कि वह दैवीय ताकत थी और उन्होंने उसे प्रणाम किया।
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