ज्ञानवापी की तरह ही धार भोजशाला का होगा ASI सर्वे, इंदौर हाईकोर्ट बेंच का आदेश
इंदौर (आरएनआई) मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने आज एक बड़ा फैसला दिया है, इस फैसले में कोर्ट ने धार स्थित भोजशाला के ASI सर्वे को मंजूरी दे दी है, यहाँ बता दें कि हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस द्वारा हाईकोर्ट में आवेदन दिया था जिसमें याचिकाकर्ता एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वे की मांग की थी, कोर्ट ने आज इस आवेदन को स्वीकार कर लिया और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानि एएसआई को सर्वे करने का आदेश दिया है ।
ज्ञानवापी की तरह ही अब मध्य प्रदेश के धार में स्थित माँ सरस्वती मंदिर भोजशाला का भी वैज्ञानिक सर्वे होगा, ASI यहाँ ज्ञानवापी की तरह ही वो सभी तकनीक अपनाएगी जिससे यहाँ के सही साक्ष्य सामने आ सकें, आज हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने दलील सुनने के बाद सर्वे का आदेश सुनाया।
हिंदू फ्रंट फार जस्टिस की तरफ से एडवोकेट हरिशंकर जैन और एडवोकेट विष्णुशंकर जैन ने अपना पक्ष रखा, उन्होंने याचिका में मांग की गई कि मुसलमानों को भोजशाला में नमाज पढ़ने से रोका जाए और हिंदुओं को नियमित पूजा का अधिकार दिया जाए। इस याचिका में मांग की गई थी कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानि ASI को आदेश दिया जाए कि वह ज्ञानवापी की तर्ज पर धार की भोजशाला में सर्वे करे। आज सोमवार को हिंदू फ्रंट फार जस्टिस के इसी अंतरिम आवेदन पर कोर्ट में सुनवाई हुई।
सुनवाई के दौरान ASI ने बताया कि 1902-03 में भोजशाल का सर्वे हो चुका है जिसकी रिपोर्ट भी कोर्ट के रिकॉर्ड में है इसलिए नए सर्वेकी जरुरत नहीं है मुस्लिम पक्ष ने भी नए सर्वे को गैर जरूरी बताया, मुस्लिम पक्ष ने कहा कि उसी ASI सर्वे रिपोर्ट के आधार पर मुसलमानों को शुक्रवार के दिन भोजशाला में नमाज पढ़ने का अधिकार 2003 में मिला था तभी से नमाज पढ़ी जाती है।
उधर एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने कहा पहले जो सर्वे हुआ उसकी रिपोर्ट में ये स्पष्ट है कि भोजशाला वांग्देवी (सरस्वती) का मंदिर है और कुछ नहीं इसलिए यहाँ हिन्दुओं को पूजा करने का पूरा अधिकार है और ये अधिकार देने से भोजशाला के धार्मिक चरित्र नहीं बदलेगा।
आपको बात दें परमार वंश के राजा भोज ने धार में सन 1034 में सरस्वती सदन केव नाम से एक महाविद्यालय की स्थापना की थी जो बाद में भोजशाला के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके पास ही खुदाई के दौरान मां वांग्देवी (सरस्वती) की मूर्ति मिली थी जिसकी स्थापना राजा भोज के शासनकाल में ही यहां की गई थी। 1456 में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का यहाँ निर्माण करवाया। उसके बाद 1880 में अंग्रेज माँ सरस्वती की मूर्ति को अपने साथ लंदन ले गए।
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