जेलों में 'जाति आधारित भेदभाव' मामले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- यह अनुच्छेद 15 का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश बल्कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत 17 राज्यों से जेल के अंदर जातिगत भेदभाव और जेलों में कैदियों को जाति के आधार पर काम दिए जाने पर जवाब मांगा था।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने आज 'जाति आधारित भेदभाव' से जुड़ी याचिका पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि जेल में निचली जातियों को सफाई और झाड़ू लगाने का काम सौंपकर और उच्च जाति को खाना पकाने का काम सौंपकर सीधे तौर पर भेदभाव किया जाता है और यह अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। साथ ही शीर्ष अदालत ने कुछ राज्यों के जेल मैनुअल के भेदभावपूर्ण प्रावधानों को खारिज कर दिया तथा जाति आधारित भेदभाव, कार्य बंटवारे और कैदियों को उनकी जाति के अनुसार अलग वार्डों में रखने की प्रथा की निंदा की।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने जेलों में जाति आधारित भेदभाव रोकने के लिए कई निर्देश भी जारी किए।
शीर्ष अदालत में दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि देश के कुछ राज्यों के जेल मैनुअल जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत 17 राज्यों से जेल के अंदर जातिगत भेदभाव और जेलों में कैदियों को जाति के आधार पर काम दिए जाने पर जवाब मांगा था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल जनवरी में कई राज्यों से जवाब मांगा था। हालांकि छह महीने बीतने के बाद भी केवल उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने ही अपना जवाब कोर्ट में दाखिल किया।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि इस तरह की प्रथाओं से जेलों में श्रम का गलत बंटवारा होता है तथा जाति आदि के आधार पर श्रम आवंटन की अनुमति नहीं दी जा सकती।
पीठ ने आगे कहा कि राज्य के नियमावली के अनुसार जेलों में हाशिए पर पड़े वर्गों के कैदियों के साथ भेदभाव के लिए जाति को आधार नहीं बनाया जा सकता। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न राज्यों के जेल नियमावली में जाति-आधारित भेदभाव की प्रथा की निंदा की। अदालत ने कहा कि सभी जातियों के कैदियों के साथ मानवीय तरीके से और समान व्यवहार किया जाना चाहिए। कुछ वर्ग के कैदियों को जेलों में काम का सही बंटवारा मिलना अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि कैदियों को खतरनाक परिस्थितियों में सीवर टैंकों की सफाई करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। पीठ ने जाति के आधार पर भेदभाव के मामलों से निपटने के लिए पुलिस को ईमानदारी से काम करने का आदेश दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य जेल मैनुअल के आपत्तिजनक नियमों को खारिज कर दिया। साथ ही राज्यों से तीन महीने के भीतर इनमें संशोधन करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि किसी विशेष जाति से सफाईकर्मियों का चयन करना पूरी तरह से मौलिक समानता के विरुद्ध है।
अदालत ने इस साल जनवरी में महाराष्ट्र के कल्याण की निवासी सुकन्या शांता की याचिका पर केंद्र और उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल सहित 11 राज्यों से जवाब मांगा था। न्यायालय ने इस दलील पर गौर किया था कि इन राज्यों के जेल नियमावली उनकी जेलों के अंदर काम के आवंटन में भेदभाव करते हैं और कैदियों की जाति से ही उनके रहने की जगह तय होती है।
याचिका में केरल जेल नियमों का हवाला दिया गया था और कहा गया कि वे आदतन और फिर से दोषी ठहराए गए दोषी के बीच अंतर करते हैं। याचिका में दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल जेल संहिता में यह प्रावधान है कि जेल में काम जाति के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए, जैसे खाना पकाने का काम प्रभावशाली जातियों द्वारा किया जाएगा और झाड़ू लगाने का काम विशेष जातियों के लोगों द्वारा किया जाएगा।
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