जी20 के शेरपा ने चीन को सख्त भाषा में क्यों दिया संदेश
चीन को लग रहा है कि भारत इसके सहारे अपनी विश्वगुरू की थीम को आगे कर रहा है। वह जी-20 के संयुक्त वक्तव्य में अपनी महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड की इंट्री के पक्ष पक्ष में बताया जा रहा है। भारत इससे इत्तेफाक नहीं रखता। माना जा रहा है कि इसी ऐतराज को केन्द्र में रखकर वह आम सहमति के जी-20 के संयुक्त घोषणा पत्र पर दस्तखत करने में आनाकानी कर रहा है।
नई दिल्ली। (आरएनआई) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-20 के शिखर सम्मेलन के बहाने बड़ी कूटनीतिक पारी खेल रहे हैं। इस पारी का संकेत अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ द्विपक्षीय वार्ता के बाद जारी होने वाले संयुक्त वक्तव्य में मिल सकता है। जी-20 को लेकर दो तथ्य बड़े चौंकाने वाले हैं। पहला तो यह कि शेरपा अमिताभ कांत ने बड़े सख्त लहजे में चीन को संदेश दे दिया है। उसी अंदाज में प्रधानमंत्री मोदी के ग्लोबल साउथ विजन को रखा है। दूसरा विदेश सचिव विनय क्वात्रा, शेरपा अमिताभ कांत और अन्य ने जी-20 शिखर सम्मेलन के समग्र नतीजे पर पहुंचने, संयुक्त घोषणा पत्र के जारी होने के संकेत दिए हैं। सबसे दिलचस्प तथ्य है कि यह सब चीन को न पसंद आने वाले वसुधैव कुटुम्बकम के संदेश के साथ होगा।
वसुधैव कुटुम्बकम की थीम पर चीन को खासा ऐतराज है। इसे भारत ने तीन दर्शन (एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य) में पिरोया है। भारत कहना चाहता है कि पूरी दुनिया एक है। आपस में एक परिवार है। एक-दूसरे पर पड़ने वाले असर दुनिया को प्रभावित करते हैं। इसलिए साझा भविष्य में सभी की भलाई है। जी-20 शिखर सम्मेलन में 09 सितंबर की सुबह एक पृथ्वी की थीम पर इसकी शुरुआत होगी। इसके बाद अगला चरण दुनिया एक परिवार का रहेगा। तीसरा चरण एक भविष्य पर टिका होगा। चीन को यही थीम नापसंद है।
भारत इसके सहारे अपनी विश्वगुरू की थीम को आगे कर रहा है। वह जी-20 के संयुक्त वक्तव्य में अपनी महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड की इंट्री के पक्ष पक्ष में बताया जा रहा है। भारत इससे इत्तेफाक नहीं रखता। माना जा रहा है कि इसी ऐतराज को केन्द्र में रखकर वह आम सहमति के जी-20 के संयुक्त घोषणा पत्र पर दस्तखत करने में आनाकानी कर रहा है।
शेरपा अमिताभ कांत प्रेसवार्ता के दौरान आत्मविश्वास से लबरेज नजर आए। स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ अपनी बात रखी। अमिताभ कांत ने चीन का साफ तौर पर नाम लिया। उन्होंने कहा कि चीन को ध्यान रखना चाहिए। उसे द्विपक्षीय मुद्दे को बहुपक्षीय मंच का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। भारत के इस सख्त लहजे में चीन के लिए काफी कुछ है।
इसमें जी-20 शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के न आने का कारण भी निहित है। यह एक बहुत दिलचस्प पक्ष है कि जब विदेश सचिव विनय क्वात्रा, शेरपा अमिताभ कांत और जी-20 के समन्वय और पूर्व विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला से शी जिनपिंग को लेकर सवाल पूछे गए तो कोई उत्तर नहीं आया। सभी ने इस पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। यह भी नहीं बता सके कि शी के जी-20 शिखर सम्मेलन में न शामिल हो पाने के पीछे चीन के विदेश मंत्रालय ने क्या कारण बताए।
भारत का चीन को इस तरह से सख्त संदेश देने के कई मायने निकाले जा रहे हैं। अभी तक भारत चीन को इस तरह के संदेश नहीं देता था। यह भी सही है कि जी-20 की स्थापना से अब तक पहली बार चीन के राष्ट्राध्यक्ष ने जी-20 के शिखर सम्मेलन से किनारा किया है। प्रतिनिधि के तौर पर प्रधानमंत्री ली छ्यांग को भेजा है। हालांकि उसके प्रधानमंत्री शामिल होकर अपने देश की उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने बहुत गर्मजोशी भरा निमंत्रण नहीं दिया। प्रधानमंत्री ब्रिक्स के सम्मेलन में जोहान्सबर्ग गए थे। डायनिंग रूम में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से संक्षिप्त मुलाकात (अनौपचारिक भेंट) हुई थी। इस दौरान प्रधानमंत्री ने संभवत: जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए शी जिनपिंग से कोई अनुरोध नहीं किया था।
इस कयास का कारण विदेश सचिव विनय क्वात्रा से जोहान्सबर्ग में पूछा गया सवाल था। क्वात्रा से जब शी जिनपिंग को प्रधानमंत्री द्वारा जी-20 में आने के निमंत्रण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया था। कहने का अर्थ यह कि भारत ने पड़ोसी देश को खास भाव नहीं दिया और केवल भारत के राष्ट्रपति का औपचारिक निमंत्रण भेज दिया।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जी-20 के संदर्भ में बताया कि भारत ग्लोबल साऊथ की आवाज बन रहा है। शेरपा अमिताभ कांत ने इस पर कई बार जोर दिया। उन्होंने इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दृष्टिकोण बताया। जी-20 का मुख्य एजेंडा बताया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मारीशस के प्रधानमंत्री प्रविन्द जगन्नाथ से ग्लोबल साऊथ के प्रति वचनबद्धता दोहराई है। समझा जा रहा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन से भी इसको लेकर चर्चा होगी। जी-20 के संयुक्त घोषणा पत्र और विजन डाक्यूमेंट में इसे स्थान मिलने की संभावना है। अर्थात भारत कहना चाहता है कि जी-20 का परिदृश्य केवल इसके सदस्य देशों, साथियों की आवाज से ही नहीं तय होना चाहिए, बल्कि इसमें हमारे ग्लोबल साऊथ के साथियों की चिंताओं को भी शामिल किया जाना चाहिए।
दुनिया में दो शब्द (ग्लोबल नार्थ और ग्लोबल साऊथ) खूब प्रचलित हैं। ग्लोबल नार्थ में दुनिया के अमीर, विकसित, संपन्न देश हैं। इसमें अमेरिका, कनाडा, आस्टेलिया, न्यूजीलैंड, एशिया के विकसित देश (जापान, दक्षिण कोरिया,हांगकांग, ताइवान,सिंगापुर), यूरोप आते हैं। शेष देश दक्षिण में आते हैं। इन्हें ग्लोबल साऊथ कहा जाता है। इस श्रेणी में 100 से अधिक देश हैं। भारत का कहना है कि आर्थिक असमानता का सामना कर रहे इन देशों के हित भी विश्व के एजेंडे में शामिल होना चाहिए।
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