'जिन मामलों में पहले हो चुका अंतिम फैसला, दोबारा नहीं खोले जा सकते..', सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी मामले का अंतिम फैसला न्याय व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है और एक बार फैसला हो जाने के बाद उसे दोबारा नहीं खोला जा सकता, अन्यथा न्याय प्रणाली में अराजकता फैल सकती है। कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश वन विकास निगम के पूर्व कर्मचारियों की याचिका खारिज की।

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि किसी मामले का अंतिम फैसला न्याय व्यवस्था का मुख्य पहलू है और जिस मामले में पहले ही फैसला हो चुका हो, उसे दोबारा नहीं खोला जा सकता। ऐसा करने से न्यायिक व्यवस्था में अराजकता फैल सकती है।
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने हिमाचल प्रदेश वन विकास निगम लिमिटेड के कुछ पूर्व कर्मचारियों की याचिका खारिज कर दी। इन कर्मचारियों ने पेंशन लाभ की मांग की थी, जबकि इस मामले पर 2016 में पहले ही अंतिम फैसला दिया जा चुका है।
बेंच ने कहा, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि यह याचिका पूरी तरह से गलत है और इसे खारिज किया जाता है। हालांकि, रिकॉर्ट से अलग होने से पहले हम किसी मामले के अंतिम फैसले के सिंद्धात पर जोर देना चाहेंगे और दोहराना चाहेंगे कि यह न्याय प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जो मुकदमे समाप्त हो चुके हैं या अंतिम स्थिति तक पहुंच चुके हैं, उन्हें फिर से नहीं खोला जा सकता है।
बेंच ने यह भी कहा कि अगर किसी को अदालत के फैसले आपत्ति है, तो वह पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है। लेकिन अनुच्छेद 32 के तहत फिर से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। अगर इसकी अनुमति दी गई, तो कोई अंतिम फैसला नहीं होगा और मुकदमेबाजी का कोई अंत नहीं होगा।
कोर्ट ने कहा कि 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन व्यू टी एंड इंडस्ट्रीज बनाम कलेक्टर मामले में यह विचार व्यक्त किया था कि सुप्रीम कोर्ट के अंतिम आदेश को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
2018 में तीन पूर्व कर्मचारियों ने पेंशन योजना के तहत लाभ न मिलने पर याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि उन्हें 2004 से पहले सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों की तरह पेंशन दी जाए, लेकिन इस मुद्दे पर पहले ही 2016 में सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुका था, जिसमें हाई कोर्ट के 2013 के आदेश को पलट दिया गया था।
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