जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और वनों में आग का कुचक्र, यह स्वास्थ्य के लिए बड़ा जोखिम
यूएन मौसम एजेंसी अधिकारी लैब्राडोर ने जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि आस-पास नजर आने वाले वायु प्रदूषण के लिए अधिकांश रूप से वाहन और उद्योग जिम्मेदार हैं, जिसके कारण हर साल 45 लाख से अधिक असामयिक मौतें हो जाती हैं।
नई दिल्ली (आरएनआई) यूएन एजेंसी में वैज्ञानिक अधिकारी लॉरेन्जो लैब्राडोर ने गुरुवार को बताया कि पृथ्वी पर लगभग हर कोई यानी करीब हर 10 में से एक व्यक्ति ऐसी वायु में सांस ले रहा है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं है। प्रदूषित वायु का मौजूदा स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से अधिक है और उसमें प्रदूषक तत्वों का ऊंचा स्तर है। निम्न और मध्य-आय वाले देश सर्वाधिक प्रभावितों में हैं।
यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी का यह आकलन वायु गुणवत्ता और जलवायु बुलेटिन के नवीनतम अंक में प्रकाशित हुआ है, जिसमें दोनों के बीच सम्बन्ध की पड़ताल की गई है। जिन रासायनिक तत्वों की वजह से वायु गुणवत्ता खराब होती है, वे ग्रीनहाउस गैस के साथ उत्सर्जित होते हैं और एक में बदलाव होने के साथ, दूसरा भी प्रभावित होता है। नाइट्रोजन, सल्फर और ओजोन के जमा होने से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों द्वारा प्रदत्त सेवाओं, जैसेकि स्वच्छ जल, जैवविविधता और कार्बन भंडारण पर असर होता है।
बुलेटिन के अनुसार, वर्ष 2024 के शुरुआती आठ महीनों के दौरान दुनिया भर में भीषण गर्मी या सूखे में कोई कमी नहीं आई है, जिससे वायु प्रदूषण और जंगलों में आग लगने का जोखिम बढ़ा है। लॉरेन्जो लैब्राडोर ने सचेत किया जलवायु बदलने का अर्थ है कि हम ऐसी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ने की ओर देख रहे हैं। इन चुनौतियों के समाधान के लिए एक साथ कई विषयों में शोध व विज्ञान को साथ लेकर चलना होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रदूषित वायु और ख़राब स्वास्थ्य में स्पष्ट सम्बन्ध है और हृदय रोग, फेफड़ों का कैंसर, दमा व श्वसन तंत्र सम्बन्धी बीमारियों समेत अन्य समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है। इसके मद्देनजर WHO ने स्वास्थ्य के लिए विशालतम पर्यावरणीय खतरे से निपटने के लिए वैश्विक कार्रवाई की पुकार लगाई है।
यूएन मौसम एजेंसी अधिकारी लैब्राडोर ने जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि आस-पास नजर आने वाले वायु प्रदूषण के लिए अधिकांश रूप से वाहन और उद्योग जिम्मेदार हैं, जिसके कारण हर साल 45 लाख से अधिक असामयिक मौतें हो जाती हैं। यह मलेरिया और एचआईवी एड्स के कारण होने वाली मौतों के जोड़ से भी अधिक है। इसलिए वायु प्रदूषण हमारे समय का सबसे बड़ा पर्यावरणीय जोखिम है. लेकिन यह अपने आप में केवल स्वास्थ्य जोखिम ही नहीं है, बल्कि इससे जलवायु परिवर्तन भी गहराता है।
यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी की रिपोर्ट में क्षेत्रीय स्तर पर उत्सर्जन स्तर में भिन्नताओं को प्रस्तुत किया गया है। उदाहरण के तौर पर योरोपीय देशों और चीन में प्रदूषण का स्तर भारत और उत्तरी अमेरिका की तुलना में कम है, जहां मानव और औद्योगिक गतिविधियों के कारण प्रदूषण में वृद्धि हुई है।
PM2.5 आकार के पार्टिकुलेट मैटर (सूक्ष्म कण) – वे कण जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम है – से प्रदूषित वायु में लम्बे समय तक सांस लेने से गम्भीर स्वास्थ्य खतरा हो सकता है। जीवाश्म ईंधन के दहन, जंगलों में आग लगने और रेगिस्तान की धूल उड़ने से ये कण फैलते हैं। ये सूक्ष्म कण उत्तरी अमेरिका के जंगलों में लगी आग में पाए गए हैं और इनका औसत से अधिक स्तर भारत में भी दर्ज हुआ है।
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