'जमानत पर रिहा आरोपी के निजी जीवन में ताक-झांक नहीं कर सकती जांच एजेंसी', शीर्ष अदालत की दो टूक

देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जांच एजेंसी को आरोपी की गतिविधियों पर लगातार नजर रखने की अनुमति देने वाली जमानत की शर्तें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत निजता के अधिकार का उल्लंघन करती हैं।

Jul 8, 2024 - 22:40
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'जमानत पर रिहा आरोपी के निजी जीवन में ताक-झांक नहीं कर सकती जांच एजेंसी', शीर्ष अदालत की दो टूक

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने नाइजीरियाई नागरिक फ्रैंक विटस पर ड्रग्स मामले में लगाई गई जमानत की शर्त को हटा दिया है। जिसके तहत उसे गूगल मैप पर पिन डालना अनिवार्य था, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मामले के जांच अधिकारी को उसकी लोकेशन उपलब्ध हो सके, इस पीठ ने कहा कि इस अदालत ने माना है कि जमानत की शर्तें काल्पनिक, मनमानी या विचित्र नहीं हो सकतीं।

मामले में पीठ ने कहा, जांच एजेंसी को जमानत पर रिहा आरोपी के निजी जीवन में लगातार ताक-झांक करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि मनमानी शर्तें लगाकर ऐसा करना आरोपी के निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा, जिसकी गारंटी अनुच्छेद 21 द्वारा दी गई है। पीठ ने कहा कि यदि जमानत पर रिहा किए गए आरोपी की हर गतिविधि पर प्रौद्योगिकी या अन्य माध्यम से लगातार नजर रखी जाती है, तो यह अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी के निजता के अधिकार सहित गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन होगा।

पीठ ने कहा, कारण यह है कि जमानत की कठोर शर्तें लगाकर आरोपी पर लगातार नजर रखने का असर यह होगा कि आरोपी को जमानत पर रिहा होने के बाद भी किसी तरह की कैद में रखा जाएगा। ऐसी शर्त जमानत की शर्त नहीं हो सकती। पीठ ने आगे कहा कि जमानत की कोई भी शर्त लगाना, जो पुलिस/जांच एजेंसी को किसी भी प्रौद्योगिकी या अन्य माध्यम से जमानत पर रिहा किए गए आरोपी की हर गतिविधि पर नजर रखने में सक्षम बनाती है, निस्संदेह अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। 

पीठ ने कहा, कि इस मामले में, पिन डालने के तकनीकी प्रभाव और जमानत की शर्त के रूप में उक्त शर्त की प्रासंगिकता पर विचार किए बिना ही गूगल मैप्स पर पिन डालने की शर्त को शामिल किया गया है। यह जमानत की शर्त नहीं हो सकती। इस शर्त को हटाया जाना चाहिए और तदनुसार आदेश दिया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि इस मामले में वह एक ऐसे आरोपी के मामले से निपट रही है जिसका अपराध अभी तक साबित नहीं हुआ है और जब तक उसे दोषी नहीं ठहराया जाता, तब तक निर्दोष होने का अनुमान लागू होता है।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि जमानत की शर्तें इतनी कठोर नहीं हो सकतीं कि जमानत का आदेश ही निरस्त हो जाए। पीठ ने कहा कि अदालत समय-समय पर पुलिस स्टेशन/अदालत में उपस्थित होने या बिना पूर्व अनुमति के विदेश यात्रा न करने की शर्त लगा सकती है। जहां परिस्थितियों की आवश्यकता हो, अदालत अभियोजन पक्ष के गवाहों या पीड़ितों की सुरक्षा के लिए किसी आरोपी को किसी विशेष क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकने के लिए शर्त लगा सकती है। लेकिन अदालत आरोपी पर यह शर्त नहीं लगा सकती कि वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपनी आवाजाही के बारे में पुलिस को लगातार सूचित करता रहे।

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