जड़ों से दूर नहीं होना चाहते ग्रामीण, सेना से अपनी भूमि वापस मिलने की चाह
1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान सेना ने स्थानीय लोगों की जमीन ले ली थी। अब जोशीमठ के लोग सेना से अपनी भूमि, वापस चाहते हैं। और उसी जमीन पर अपना नया आशियाना बसाना चाहते हैं।
देहरादून (आरएनआई) जोशीमठ भू-धंसाव के चलते नगर क्षेत्र के आवासीय भवनों में से 48 फीसदी भवन हाई रिस्क जोन में चिह्नित किए गए हैं। इनमें रह रहे लोगों को सरकार की ओर से गौचर के पास बमोथ गांव में पुनर्वास का विकल्प दिया गया, जिसको स्थानीय लोगों ने सिरे से नकार दिया है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान उनकी सैकड़ों नाली उपजाऊ भूमि सेना द्वारा अधिग्रहित की गई थी, जिसका भुगतान आजतक नहीं मिल पाया है। हालांकि वर्ष 1992 तक सेना की ओर से ली गई जमीन का किराये के रूप में उन्हें कुछ धनराशि दी जाती थी, जो अब बंद कर दी गई है।
गत वर्ष जनवरी में जोशीमठ में अचानक हुए भू-धंसाव के बाद शहर पर मंडरा रहे खतरे से लोग डरे हुए हैं। इसके बाद विभिन्न एजेंसियों द्वारा जोशीमठ नगर क्षेत्र का सर्वे किया गया। सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) के वैज्ञानिकों के मुताबिक जोशीमठ शहर के 2500 आवासीय भवनों में से 1200 भवन हाई रिस्क जोन में चिह्नित किए गए हैं। शासन को भेजी रिपोर्ट में सीबीआरआई ने पुनर्वास की सिफारिश की है।
शासन की ओर प्रभावित लोगों को विकल्प के तौर पर गौचर के समीप बमोथ गांव में पुनर्वास का विकल्प दिया गया है, लेकिन स्थानीय लोग अपनी जड़ों से दूर नहीं होना चाहते हैं। उन्होंने दूसरी जगह विस्थापित किए जाने के प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सेना के पास जो उनकी सैकड़ों नाली भूमि है, जिसका उन्हें आजतक कोई मुआवजा भी नहीं दिया गया है उसे उन्हें लौटा दें। सेना क्षेत्र सुरक्षित जोन में है। ऐसे में वे कहीं ओर क्यों जाएं।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति एवं स्थानीय लोगों ने रक्षामंत्री, सेना के उच्च अधिकारियों को भेजे पत्र में कहा गया है कि वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय जोशीमठ के काश्तकारों की सैकड़ों नाली भूमि सेना (रक्षा मंत्रालय) द्वारा बिना सहमति के अधिग्रहित की गई थी, जिसका लोगों को मुआवजा भी नहीं दिया गया। लोगों ने जब अपनी भूमि लौटने या फिर मुआवजा देने की मांग की, तो सेना द्वारा ली गई भूमि व अन्य अधिग्रहित भूमि का संयुक्त निरीक्षण तत्कालीन संयुक्त मजिस्ट्रेट/उपजिलाधिकारी जोशीमठ के निर्देश पर 26, 27, 28 व 29 अक्तूबर 2009 को किया जा चुका है, लेकिन उस सर्वे में क्या निकला इसका आजतक खुलासा नहीं हो पाया। तब ग्रामीणों से उनकी जमीन के दस्तावेज भी लिए गए थे। हालांकि मामले में चमोली जिलाधिकारी हिमांशु खुराना का कहना है कि इस प्रकार का कोई मामला उनके संज्ञान में नहीं आया है और न ही शासन से इस संबंध में कुछ पूछा गया है।
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