जगत गुरुदेव वंशी अली का दो दिवसीय वार्षिकोत्सव आरंभ - श्रृंगार दर्शन, भजन-कीर्तन और वंटी प्रसादी
हाथरस। रविवार को किशोर जी के परम भक्त जगत गुरु श्री वंशी अलि जी का दो दिवसीय जन्म महोत्सव भक्ति और भाव के साथ आरंभ हुआ।
ब्रजद्वार हाथरस के दिल्ली वाला मौहल्ला स्थित मंदिर ठा. श्री मथुरानाथ जी महाराज में रविवार को जगत गुरु श्री वंशी अलि जन्म महोत्सव की धूम रही। ठाकुर जी की मंगला आरती के साथ आरंभ हुए उत्सव में श्रृंगार दर्शन, भजन-कीर्तन के बाद प्रसादी वितरण की गई। इस अवसर नगर के विद्वान ज्योतिषाचार्य उपेंद्रनाथ चतुर्वेदी ने जगत गुरु के संबंध में बताया कि वह जन्म से ही श्री राधा नाम में अनुराग में थे। जन्म के पश्चात बालक वंशीधर ने माताजी के बहुत प्रयास करने के बाद भी स्तनपान नहीं किया, सभी चिंतित हो गए। उसी समय एक ब्रजवासी बरसाने से आया और बालक के पास आकर राधा राधा रटते हुए बालक को खिलाने लगा। राधा नाम सुनते ही बालक ने स्तनपान करना आरंभ कर दिया। 5 वर्ष की अवस्था में उनके आसाधारण राधा प्रेम की अभिव्यक्ति खेल के माध्यम से प्रकट हो गई। बाल्य अवस्था में ही सम्पूर्ण वेद-शास्त्र व अनेकों संस्कृत ग्रन्थों को हृदयङ्गम कर लिया था, वह तर्कशास्त्र के अद्वितीय विद्वान थे। श्रीमद्भागवत के गूढ़ श्लोकों का इस प्रकार व्याख्यान करते की बड़े-बड़े प्रकाण्ड पण्डित भी आश्चर्य चकित हो जाते। 15 वर्ष की अवस्था में ही आपका विवाह संपन्न हुआ। पुत्र की प्राप्ति हुयी जिसका नाम पुण्डरीकाक्ष रखा गया। वंशी अली 28 वर्ष के हुए तो पिता जी का धाम गमन हो गया और वह राधा प्रेम में रमण गये। उन्होंने बताया कि श्रीराधारानी की आज्ञा से महासखी श्री ललिता जी ने श्री वंशीधर जी को मन्त्र-दीक्षा प्रदान की। जिसका उन्होंने स्वयं उल्लेख किया है।
वैराग्यमय एवं निरंतर लीलाओं के चिंतन में जीवन यापन करते। बहुत से धनवान सेवक के होते हुए भी अपने पास तुम्बी और अंगोछे के सिवा और कुछ भी नहीं रखते। लेकिन राधा अष्टमी का उत्सव जब आता तो बीस पचीस हजार रुपए खर्च करके बहुत धूमधाम से उत्सव मनाते। श्रीमद् भागवत की कथा कहते-कहते भाव विह्वल हो जाते। भागवत जी के श्लोकों का अनेक बार अनेक प्रकार से अलौकिक नविन अर्थ करते।
वृन्दावन स्थित ललित कुंज में ही श्री किशोरी जी का नाम रटते हुए वंशी अली जी 1879 ई में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को नित्य निकुंज में अपनी दिव्य सखी स्वरुप में अवस्थित हो गए। यहीं ललित निकुंज में उनकी समाधि विराजमान है। आपकी चरणपादुका जी और आपके 2 श्री फल जी आज भी हाथरस में श्री मथुरानाथ जी मंदिर में सेवित है। इस अवसर पर बहुत से वैष्णव भक्त उपस्थित थे।
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