छह हफ्तों में तीन ट्रेन हादसे, 17 लोगों ने गंवाई जान; 100 से ज्यादा हुए घायल
रेलवे को इस साल 2.52 लाख करोड़ रुपये का आवंटन मिला है। रेलवे मंत्रालय के डेटा के अनुसार, ट्रेन दुर्घटनाओं में गिरावट आई है। 2000-01 तक 473 ट्रेन घटनाएं हुई थीं। इसके बाद 2014-15 में यह संख्या घटकर 135 हो गई और 2022 में यह संख्या घटकर 48 हो गई।
नई दिल्ली (आरएनआई) पिछले साल ओडिशा रेल हादसा के बाद से सुरक्षा को लेकर चिंता जस की तस बनी हुई है। इस हादसे में करीब 290 लोगों की मौत हुई थी। हालांकि, ओडिशा रेल हादसे के बाद भी कई रेल दुर्घटनाएं देखने को मिली। मंगलवार को झारखंड के बाराबाम्बो में हावड़ा-मुंबई मेल की 18 बोगिया पटरी से उतर गई। इस हादसे में दो की मौत हो गई, जबकि 20 से ज्यादा घायल हुए। इस हादसे को लेकर पिछले छह हफ्तों में कई ट्रेन पटरी से उतर गईं और तीन यात्री ट्रेन दुर्घटनाएं हुई, जिसमें 17 लोगों की मौत हो चुकी है।
तीन मुख्य ट्रेन हादसों पर गौर किया जाए तो ये सारी दुर्घटनाएं इस साल जून से जुलाई के बीच घटी, जिसमें 17 की मौत और 100 से अधिक घायल हुए। पिछले महीने 17 जून को कंचनजंगा एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी, जिसमें 11 लोगों की मौत और 60 से अधिक घायल हुए थे। अधिकारियों के अनुसार, न्यू जलपाईगुड़ी के पास टक्कर इसलिए हुई, क्योंकि एक मालगाड़ी सिग्नल को अनदेखा करते हुए कंचनजंगा एक्सप्रेस से टकरा गई।
इसी महीने 18 जुलाई को उत्तर प्रदेश के गोंडा रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन की आठ बोगियां पटरी से उतर गई, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 35 से ज्यादा घायल हुए। इस हादसे को लेकर अधिकारियों का कहना है कि चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ ट्रेन दुर्घटना ट्रैक में तोड़फोड़ के कारण हुई। इसके बाद 30 जुलाई को हावड़ा-मुंबई मेल और एक मालगाड़ी का आपस में टक्कर होने की आशंका है।
रेलवे को इस साल 2.52 लाख करोड़ रुपये का आवंटन मिला है। रेलवे मंत्रालय के डेटा के अनुसार, ट्रेन दुर्घटनाओं में गिरावट आई है। 2000-01 तक 473 ट्रेन घटनाएं हुई थीं। इसके बाद 2014-15 में यह संख्या घटकर 135 हो गई और 2022 में यह संख्या घटकर 48 हो गई। रेल दुर्घटनाओं को देखते हुए कवज प्रणाली की स्थापना में बार-बार तेज गति की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
यह एक खास तरह का ऑटोमेटिक प्रोटेक्शन सिस्टम है। कवच प्रोटेक्शन तकनीक को रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन की मदद से बनाया गया है। गौरतलब बात है कि इस तकनीक पर भारतीय रेलवे ने साल 2012 में ही काम करना शुरू कर दिया था। उस दौरान इस तकनीक का नाम Train Collision Avoidance System (TCAS) था। इस तकनीक का पहला ट्रायल साल 2016 में किया गया था।
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